मणिपुर हिंसा पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने काफी प्रासंगिक सवाल उठाये हैं
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने विजयादशमी संबोधन में कई गंभीर सवाल उठाते हुए पूछा है कि मणिपुर की वर्तमान स्थिति को देखते हैं तो यह बात ध्यान में आती है कि लगभग एक दशक से शांत मणिपुर में अचानक यह आपसी फूट की आग कैसे लग गई?
अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में कई बार ऐसी परिस्थितियां बन जाती है कि कोई देश चाहकर भी उन सारी बातों का सार्वजनिक तौर पर खुलासा नहीं कर सकता है जिन बातों को जानना, उस देश विशेष के नागरिकों के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए बहुत जरूरी है।
कनाडा के साथ जारी तनाव के मसले पर विदेश मंत्री एस जयशंकर का यह बयान कि भारत कनाडा के कर्मचारियों के लगातार दखल से चिंतित था, भारत ने इस मुद्दे पर बहुत कुछ सार्वजनिक नहीं किया है और उनके हिसाब से समय के साथ-साथ अधिक चीजें बाहर आ जाएंगी और लोग समझेंगे कि भारत को किस तरह की असहजता थी। उन्होंने कहा कि भारत और कनाडा के संबंध इस समय बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं लेकिन वह बताना चाहते हैं कि भारत को कनाडाई राजनीति के कुछ हिस्सों और नीतियों से दिक्कत है। साफ-साफ समझ आ रहा है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कनाडा के साथ जारी विवाद के बीच जितना कुछ बताया है, उससे कहीं ज्यादा छुपाया है और यह अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का तकाजा होता है कि बहुत सारी बातें खुलकर नहीं कही जाती, इशारों में ही कही जाती है या फिर एक्शन के जरिए बताया जाता है।
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कुछ इसी तरह का मसला मणिपुर में जारी हिंसा का भी नजर आ रहा है। सरकार भले ही मणिपुर हिंसा से जुड़े तमाम पहलुओं पर खुलकर बहुत कुछ नहीं कह पा रही हो लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मणिपुर में जारी हिंसा के सच को उजागर कर दिया है।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को विजयादशमी के अवसर पर नागपुर में अपना भाषण देते हुए मणिपुर हिंसा को लेकर जो भी कहा उसका एक-एक वाक्य अपने आप में यह बताता हुआ नजर आ रहा है कि भारत की बढ़ती साख और वैश्विक प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए केंद्र में एक मजबूत सरकार होने के बावजूद किस तरह से मणिपुर को हिंसा की आग में झोंका गया और अभी भी लगातार इस राज्य में हिंसा को बढ़ावा देने की साजिशें रची जा रही हैं।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई गंभीर सवाल उठाते हुए पूछा, मणिपुर की वर्तमान स्थिति को देखते हैं तो यह बात ध्यान में आती है कि लगभग एक दशक से शांत मणिपुर में अचानक यह आपसी फूट की आग कैसे लग गई? क्या हिंसा करने वाले लोगों में सीमापार के अतिवादी भी थे? अपने अस्तित्व के भविष्य के प्रति आशंकित मणिपुरी मैतेयी समाज और कुकी समाज के इस आपसी संघर्ष को सांप्रदायिक रूप देने का प्रयास क्यों और किसके द्वारा हुआ? वर्षों से वहाँ पर सबकी समदृष्टि से सेवा करने में लगे संघ जैसे संगठन को बिना कारण इसमें घसीटने का प्रयास करने में किसका निहित स्वार्थ है? इस सीमा क्षेत्र में नागाभूमि व मिजोरम के बीच स्थित मणिपुर में ऐसी अशांति व अस्थिरता का लाभ प्राप्त करने में किन विदेशी सत्ताओं को रुचि हो सकती है? क्या इन घटनाओं के कारण परंपराओं में दक्षिण पूर्व एशिया की भू- राजनीति की भी कोई भूमिका है? देश में मजबूत सरकार के होते हुए भी यह हिंसा किन के बलबूते इतने दिन बेरोकटोक चलती रही है? गत 9 वर्षों से चल रही शान्ति की स्थिति को बरकरार रखना चाहने वाली राज्य सरकार होकर भी यह हिंसा क्यों भड़की और चलती रही? आज की स्थिति में जब संघर्षरत दोनों पक्षों के लोग शांति चाह रहे हैं, उस दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठता हुआ दिखते ही कोई हादसा करवा कर, फिर से विद्वेष व हिंसा भड़काने वाली ताकतें कौन-सी हैं?
दक्षिण पूर्व एशिया की भू राजनीति और हिंसा में सीमा पार के अतिवादियों की भूमिका के बारे में सवाल उठाकर संघ प्रमुख ने एक बड़ा इशारा तो कर ही दिया है कि मणिपुर हिंसा के लिए कितनी बड़ी ताकतें जिम्मेदार हैं।
ऐसे में शायद सरकार के लिए भी अब सही समय आ गया है कि जिस दो टूक अंदाज में कनाडा के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है उसी अंदाज में मणिपुर हिंसा को उकसाने और बढ़ाने वाले विदेशी ताकतों और उनका सहयोग करने वाले घरेलू संगठनों को भी मुंहतोड़ जवाब दिया जाए।
-संतोष पाठक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)
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