झटका तो चीन को दिया है, पर हमारे यहाँ कुछ लोग क्यों हिले नजर आ रहे हैं ?
अमेरिकी सरकार को ऐसे भी कई मामले मिले हैं जहाँ चीन ने विभिन्न निवेशों, स्कॉलरशिप और शोध के नाम पर बड़ी धनराशि देकर अमेरिका के पत्रकारों और वैज्ञानिकों को अपने पक्ष में कर रखा है। ऑस्ट्रेलिया ने भी एक एमपी को चाइना के साथ सांठगाँठ के लिए गिरफ्तार किया है।
भारत चीन के बीच हुए सीमा विवाद के बाद देश में चीन से बदला लाने की मांग तेज हो गयी। सैनिक मोर्चे पर तो हमारे सैनिकों ने चीन की गुस्ताखी का जवाब उसी रात दे दिया था और जवाब ऐसा दिया था कि चीन खुद अपने हताहत सैनिकों की संख्या तक नहीं बता पा रहा। सैनिकों के साथ पूरा देश भी खड़ा हुआ और आर्थिक मोर्चे पर बहिष्कार की मांग तेज हुई, सरकार ने कुछ चीनी कंपनियों के टेंडर रद्द कर दिए, चीन से आने वाले हर शिपमेंट की जांच जरूरी कर दी। सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया से बिलकुल साफ़ कर दिया कि भारत की सीमा के साथ की जाने वाली किसी भी हरकत को नजरंदाज नहीं किया जायेगा।
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भारत के सैनिकों पर जब पाकिस्तान ने हमला किया तो हमने एयर स्ट्राइक करके उनके घुसपैठियों को तबाह कर दिया और अब सरकार ने चाइना के घुसपैठिये 59 एप्प को बैन करके डिजिटल स्ट्राइक किया है। चाइना के सरकारी समाचारपत्र ग्लोबल टाइम्स की भाषा बता रही है कि इस स्ट्राइक की मार अन्दर तक लगी है। सूचना क्रांति के इस दौर में चाइना के एप्प उसकी बड़ी ताकतों में से एक हैं जो किसी और देश के नागरिकों और सरकार की ख़ुफ़िया जानकारी चीन की कम्युनिस्ट सरकार तक पहुंचाती हैं। ऐसे में चाइना के एप्प को बैन किये जाने पर चाइना से ये प्रतिक्रिया आनी अपेक्षित भी थी लेकिन हैरानी की बात ये है कि चीन से ज्यादा दुखी हमारे ही देश के कुछ लोग नज़र आ रहे हैं। जब देश मुश्किल समय का सामना कर रहा हो तब सैनिकों के साथ देश के नागरिकों का भी कर्त्तव्य हो जाता है कि वो घुसपैठियों को पहचानें। जरूरी नहीं की ये घुसपैठिये बन्दुक और गोलियां लेकर घुसे हों, चीनी प्रोपगेंडा भी उतना ही खतरनाक है। तो ऐसे में इन लोगों की मानसिकता का विश्लेषण जरूरी हो जाता है जो देश का नमक खाकर चीन की भाषा बोल रहे हैं।
रोने के नए बहाने, दर्द वही पुराना
आप पार्टी के नेता संजय सिंह ने ट्वीट किया “App बंद करने की नौटंकी इसलिये की गई कि चंदा वापस करने की माँग पीछे हो जाये Paytm tiktok समेत तमाम कम्पनियों से PM Cares में सैंकड़ों करोड़ चंदा लिया गया है इसमें वो कम्पनियाँ भी शामिल हैं जिनका सम्बंध चीनी सेना से है इन कम्पनियों का चंदा वापस करो मोदी जी।”App बंद करने की नौटंकी इसलिये की गई कि चंदा वापस करने की माँग पीछे हो जाय Paytm tiktok समेत तमाम कम्पनियों से PM Cares में सैंकड़ों करोड़ चंदा लिया गया है इसमें वो कम्पनियाँ भी शामिल हैं जिनका सम्बंध चीनी सेना है इन कम्पनियों का चंदा वापस करो मोदी जी। pic.twitter.com/XPkBZwtE2E
— Sanjay Singh AAP (@SanjayAzadSln) June 30, 2020
Tik Tok's humble contribution of 30 Crores to humble Chaiwala's fund! So ungrateful! https://t.co/Ht5t22oJEI
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) June 30, 2020
प्रशांत भूषण समेत एक पूरी फ़ौज ट्विटर पर रोने का नया बहाना लेकर आ गयी। इन लोगों का दर्द है कि अब टिकटॉक बैन हो गया तो सरकार उसके द्वारा पीएम केयर फण्ड में दिए 30 करोड़ रूपए वापस कर दे। कुछ लोगों ने यह भी लिखा कि भारतीयों की नौकरी चली जाएगी। गौर कीजियेगा कि टिकटॉक पैसे वापस नहीं मांग रहा, जिनकी नौकरी गयी वो सरकार को गलियां नहीं दे रहे, लेकिन कोसने का काम वो कर रहे हैं जो कम्युनिस्ट चीन के पेरोल पर भारत में पल रहे हैं।Tiktok बंद होने से बेरोजगारी बढ़ चुकी हैं
— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) June 30, 2020
देखिये 30 करोड़ के कमीशन के लिए कितनी धक्का मुक्की pic.twitter.com/zh5zyTdTcD
एक यूजर ने संजय सिंह के ट्वीट का उत्तर देते हुए लिखा कि
When they attack Patanjali, do they show care for people it employs?
— मनोज कुमार (@manojsom6) June 30, 2020
When they attack statue of unity, do they talk of unemployment of people it provides livelihood?
But..
The moment you attack China, same people come defending crying about job loss.
It's crocodile tears
ये सवाल सारे प्रोपगेंडा की असलियत खोलकर रख देता है? आखिर क्यूँ उन्हें चीनी कंपनी के पैसों की फिकर है लेकिन भारतीयों की नहीं। उन्हें कुछ लोगों के नौकरी जाने की चिंता खाए जा रही है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई मतलब नहीं है। आखिर ये लोग किस मानसिकता के शिकार हैं कि उन्हें देश की अखंडता और संप्रभुता से ज्यादा अपना एजेंडा प्यारा है? आखिर क्यूँ ये देश में आग लगाकर अपने मतलब की रोटी सेंकना चाहते हैं।
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आप अगर समय में थोड़ा पीछे जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि ये वही लोग हैं जो सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सबूत मांग रहे थे। ये वही लोग हैं जो भारतीय सेना के आधिकारिक बयान के बावजूद चीनी मीडिया पर ज्यादा भरोसा कर सरकार से सवाल पर सवाल पूछ रहे थे। ये वही लोग हैं जिन्हें इस बात से तकलीफ हो रही थी कि भारतीय सेना के जवानों ने चीन के 43 जवान मार गिराए। इनका पैटर्न देखने के बाद समझ आता है कि इनका विरोध किसी मुद्दे से नहीं देश से है। इन्हें सरकार के नहीं राष्ट्रीय भावना के विपरीत जाना है। हर बार इनके रोने के नए बहाने हैं लेकिन दर्द वही पुराना है।
चीन के बिछाये मोहरे हैं ये नेता ?
ऐसा नहीं है कि चीन के समर्थन में सिर्फ भारत में ही घर के भेदी खड़े हो रहे हैं। चीन अपने प्रोपगेंडा के जाल को दुनिया भर में फैला रहा है। इसी साल के जनवरी में कुछ दस्तावेज़ सामने आये। चीनी सरकार के एक प्रचार आउटलेट ने पिछले 4 वर्षों में अमेरिकी अखबारों को विज्ञापन और मुद्रण शुल्क के रूप में $ 19 मिलियन का भुगतान किया है।
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जस्टिस डिपार्टमेंट में चाइना डेली द्वारा दायर दस्तावेजों के अनुसार, कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ने वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) को $ 6 मिलियन, वाशिंगटन पोस्ट को $ 4.6 मिलियन, फॉरेन अफेयर्स को 2,40,000 डॉलर, न्यूयॉर्क टाइम्स को $ 50,000 का भुगतान किया था। चीन के द्वारा जनमत को प्रभावित करने के इस प्रयास का अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी विरोध कर चुके हैं।
अमेरिकी सरकार को ऐसे भी कई मामले मिले हैं जहाँ चीन ने विभिन्न निवेशों, स्कॉलरशिप और शोध के नाम पर बड़ी धनराशि देकर अमेरिका के पत्रकारों और वैज्ञानिकों को अपने पक्ष में कर रखा है। ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने एक निर्वाचित एमपी को चाइना के साथ सांठगाँठ के लिए गिरफ्तार किया है।China is actually placing propaganda ads in the Des Moines Register and other papers, made to look like news. That’s because we are beating them on Trade, opening markets, and the farmers will make a fortune when this is over! pic.twitter.com/ppdvTX7oz1
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) September 26, 2018
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अमेरिका में हो रही इन गतिविधियों और सबूतों को देखने के बाद आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि चीन ने ऐसे प्रयास भारत में नहीं किये होंगे। तो देश के खिलाफ जाकर चीन का बाजा बजने वाले कहीं चीन के बिछाये मोहरे तो नहीं हैं? अगर आपको लगता है कि भारत में इस तरह का हस्तक्षेप संभव नहीं है तो आपको एक बार वसिली मित्रोखिन द्वारा लिखित मित्रोखिन आर्काइव पढ़नी चाहिए, जिसे कई देशों ने प्रमाणिक दस्तावेज मानते हुए मुक़दमे चलाये हैं। कभी रूसी ख़ुफ़िया विभाग के लिए काम करने वाले मित्रोखिन ने अपने किताब में भारत से भी जुड़े कुछ खुलासे किये हैं। इनमें से कुछ आपकी जानकारी में जरूर होने चाहिए-
-इंदिरा गांधी को KGB ने VANO कोडनेम दिया था। एक अवसर पर, पोलित ब्यूरो से कांग्रेस (आर) को 2 मिलियन रुपये का एक गुप्त उपहार व्यक्तिगत रूप से भारत में केजीबी प्रमुख लियोनिद शबरशीन द्वारा दिया गया था। श्रीमती गांधी का समर्थन करने वाले एक अखबार को उसी अवसर पर एक और करोड़ रुपये दिए गए।
-1959 में, सीपीआई के महासचिव अजॉय घोष ने सोवियत ब्लॉक के साथ व्यापार के लिए एक आयात-निर्यात व्यापार की शुरुआत की थी। एक दशक से भी कम समय में इसका वार्षिक मुनाफा 3 करोड़ रुपये से अधिक हो गया।
-1975 के दौरान इंदिरा गांधी के समर्थन को मजबूत करने और उनके राजनीतिक विरोधियों को कमजोर करने के लिए रूस ने कुल 10.6 मिलियन रूबल खर्च किए गए थे।
-1973 तक, केजीबी के पास पेरोल और एक भारतीय प्रेस एजेंसी और 10 भारतीय समाचार पत्र थे। 1975 के दौरान केजीबी ने भारतीय समाचार पत्रों में 5,510 प्रोपगेंडा लेख लगाए।
आज संचार के तरीके बदल गए हैं लेकिन कम्युनिस्ट प्रोपगेंडा आज भी नहीं बदला है। जो कल तक रूस के कम्युनिस्ट कर रहे थे क्या आज चीन वही तरीका अपना रहा है? चीन के समर्थन में देश का विरोध करने वाले कहीं चीन की रोटियों पर तो नहीं पल रहे?
-सौरभ कुमार
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में अध्ययनरत हैं)
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