वैश्विक हालातों को देखते हुए अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए त्वरित निर्णय ले रही है मोदी सरकार
तेल का उत्पादन करने वाली कम्पनियां जो कच्चे तेल को परिष्कृत कर पेट्रोल एवं डीजल के रूप में इसका निर्यात के व्यवसाय से जुड़ी हुई हैं, उनके उत्पादों पर निर्यात कर लागू कर देने से इन कम्पनियों के निर्यात की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।
1 जुलाई 2022 से केंद्र सरकार ने भारत से निर्यात किए जा रहे पेट्रोल, डीजल और एविएशन फ्यूल पर निर्यात कर बढ़ा दिया है। साथ ही, भारत में आयात किए जा रहे स्वर्ण पर आयात कर में भी भारी इजाफा कर दिया है। भारत में स्वर्ण के आयात को नियंत्रित करने के लिये, स्वर्ण पर सीमा शुल्क को 10.75 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया है। कच्चे तेल पर प्रति टन के हिसाब से 23,250 रुपये का उपकर लगाया गया है; यह उपकर कच्चे तेल के आयात पर लागू नहीं होगा। पेट्रोल और डीजल के निर्यात पर विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क/उपकर, पेट्रोल पर 6 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से लागू किया गया है। विमानन टर्बाइन ईंधन के निर्यात पर 6 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क लागू किया गया है। उपरोक्त कदमों का घरेलू ईंधन की कीमतों पर कोई असर नहीं होगा।
रूस एवं यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के चलते, हाल ही के समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। अमेरिका सहित कई यूरोपीयन देशों ने रूस पर कई प्रकार के प्रतिबंध लागू कर दिए हैं जिसके कारण रूस को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल एवं गैस का निर्यात करने में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे समय में भारत रूस की सहायता में आगे आया है और रूस से कच्चे तेल का आयात (भारी डिस्काउंट एवं इस कच्चे तेल की कीमत डॉलर में अदा न करते हुए रुपए/रूबल में करने की शर्त पर) करने की ओर अग्रसर हुआ है। चूंकि भारत में कच्चे तेल को परिष्कृत कर पेट्रोल एवं डीजल बनाने की बहुत बड़ी क्षमता उपलब्ध है एवं इस कार्य में कुछ निजी क्षेत्र की कम्पनियां भी संलग्न हैं अतः ये कम्पनियां रूस से डिस्काउंट पर आयातित कच्चे तेल को पेट्रोल एवं डीजल में परिष्कृत कर अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर निर्यात करने लगी थीं एवं इस मद पर भारी लाभ अर्जित कर रहीं थीं। इस प्रकार के व्यवहार को विंडफाल गेन (अप्रत्याशित लाभ) कहा जा रहा है। इस विंडफाल गेन पर अब केंद्र सरकार ने कर आरोपित कर दिया है। साथ ही, इन समस्त कम्पनियों को कहा गया है कि उनके द्वारा कच्चे तेल को परिष्कृत कर बनाए जा रहे पेट्रोल एवं डीजल के कुछ भाग को भारत में बेचें अन्यथा निर्यात कर अदा करें। पेट्रोल के 50 प्रतिशत भाग को एवं डीजल के 30 प्रतिशत भाग को भारत में बेचने हेतु अनिवार्य कर दिया गया है अन्यथा की स्थिति में इन कम्पनियों को इन मदों के निर्यात पर निर्यात कर अदा करना होगा।
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तेल का उत्पादन करने वाली कम्पनियां जो कच्चे तेल को परिष्कृत कर पेट्रोल एवं डीजल के रूप में इसका निर्यात के व्यवसाय से जुड़ी हुई हैं, उनके उत्पादों पर निर्यात कर लागू कर देने से इन कम्पनियों के निर्यात की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी। पेट्रोल एवं डीजल का देश में ही उत्पादन कर ये कम्पनियां अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से इनका निर्यात कर रही है जबकि इन्हें देश में ही इन उत्पादों की आपूर्ति बढ़ाने में मदद करनी चाहिए। निजी क्षेत्र की तेल कम्पनियां रूस से सस्ते दामों पर कच्चे तेल का आयात बढ़ा रही हैं और उसे परिष्कृत कर निर्यात कर रही हैं। रूस से पहले जहां केवल 2 प्रतिशत कच्चे तेल का आयात हो रहा था अब यह बढ़कर 20 प्रतिशत हो गया है और वह भी डिस्काउंट पर। अतः ये कम्पनियां कच्चा तेल आयात कर उसे परिष्कृत कर भारत में आपूर्ति करने के बजाय ऊंची दरों पर निर्यात कर रही हैं। इसी कारण से पेट्रोल एवं डीजल के निर्यात पर केंद्र सरकार ने निर्यात कर लगाया है एवं इससे देश में पेट्रोल एवं डीजल की आपूर्ति भी बढ़ेगी।
इसी प्रकार, जब भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ता दिखाई दे रहा है तो यह ध्यान में आया कि यह मुख्य रूप से दो मदों के आयात में हुई भारी वृद्धि के चलते हो रहा है। एक तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है जिसके कारण भारत में भारी मात्रा में आयात किये जा रहे कच्चे तेल पर भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ रही है। दूसरे, इस वर्ष स्वर्ण के आयात में भी भारी वृद्धि दृष्टिगोचर है। अतः स्वर्ण के आयात को कम किए जाने के उद्देश्य से स्वर्ण पर आयात कर को बढ़ा दिया गया है। स्वर्ण के आयात को रोकना भी चाहिए क्योंकि स्वर्ण वैसे भी अनुत्पादक आस्ति की श्रेणी में आता है। इस प्रकार उक्त दोनों निर्णयों से विदेश व्यापार में लगातार बढ़ रहे व्यापार घाटे को कम किया जा सकेगा।
केंद्र सरकार द्वारा लिए गए उक्त निर्णयों के पीछे एक और अन्य महत्वपूर्ण कारण भी जिम्मेदार है। विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद से भारत सहित दुनिया के सभी देशों में वित्तीय घाटा बहुत तेजी से बढ़ा है। इसे नियंत्रित करने के लिए विभिन्न देश अपनी परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय ले रहे हैं। भारत में भी वित्तीय वर्ष 2022-23 में खाद्य अनुदान का खर्च लगभग 80,000 करोड़ रुपए से बढ़ जाने की सम्भावना है, किसानों को प्रदान की जा रही खाद (फर्टिलाइजर) अनुदान की राशि भी भारी मात्रा में बढ़ने की सम्भावना है क्योंकि रूस यूक्रेन युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद के दामों में बहुत बड़ी बढ़ोतरी हुई है, केंद्र सरकार ने पेट्रोल एवं डीजल पर इक्साइज ड्यूटी में जो कमी की थी उसके कारण लगभग 85,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ केंद्र सरकार पर आने की सम्भावना है। इसी प्रकार उज्जवला योजना को लागू करने से वित्तीय वर्ष 2022-23 में 6,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार केंद्र सरकार पर आने वाला है एवं हाल ही में निर्यातकों को प्रदान की गई छूट पर भी 15,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भारत केंद्र सरकार को वहन करना होगा। कुल मिलाकर वित्तीय वर्ष 2022-23 में 3 लाख 30 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार केंद्र सरकार को वहन करना है। यदि उक्त प्रकार के कर सम्बंधी फैसले केंद्र सरकार नहीं लेती तो वित्तीय वर्ष 2022-23 वित्तीय घाटा अनियंत्रित हो सकता है।
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यदि वित्तीय घाटे को नियंत्रण में नहीं रखा जाता है तो मुद्रास्फीति की दर तेजी से बढ़ने लगती है। दूसरे, विदेशी व्यापार के व्यापार घाटा एवं चालू खाता घाटे को यदि नियंत्रण में नहीं रखा जाता है तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत कम होने लगती है और देश में आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि दृष्टिगोचर होती है। देश में मुद्रास्फीति की दर बढ़ने में यह भी एक मुख्य कारण बन जाता है। अतः वित्तीय घाटे एवं चालू खाता घाटे को नियंत्रण में लाने के लिए केंद्र सरकार के लिए उक्त निर्णय लेना आवश्यक हो गया था। हालांकि इससे भारत के आंतरिक बाजार में वस्तुओं की कीमतों में कोई असर नहीं आएगा। अप्रत्याशित लाभ पर विंडफाल कर भी सभी सम्बंधित कम्पनियों को अपने लाभ में से देना होगा अतः इसका असर इन कम्पनियों एवं जनता पर नहीं पड़ेगा। इस सेस से घरेलू स्तर पर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा। प्रति बैरल 40 अमेरिकी डॉलर का लाभ जो तेल कम्पनियों को मिल रहा था वह अब इन कम्पनियों को सीधा न जाकर, इसका कुछ हिस्सा केंद्र सरकार को भी मिलेगा। हालांकि सामान्यतः सरकारी तेल कम्पनियां तो वर्ष के अंत में इस प्रकार के लाभ को केंद्र सरकार को लाभांश के रूप में हस्तांतरित कर देती हैं परंतु अब निजी क्षेत्र की तेल कम्पनियों (विशेष रूप से रिलायंस कम्पनी) को भी आकस्मिक लाभ पर कर केंद्र को देना होगा। केंद्र सरकार द्वारा यह निर्णय देश के हितों को सर्वोपरि मानकर लिया गया है। यूरोपीयन देश, ब्रिटेन आदि, पहिले ही इस प्रकार के निर्णय ले चुके हैं और लगभग 25 प्रतिशत का अतिरिक्त कर लागू कर चुके हैं।
केंद्र सरकार द्वारा निर्यात एवं आयात कर सम्बंधी लिए गए उक्त निर्णयों की प्रत्येक 15 दिवस पश्चात समीक्षा की जाएगी क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं और यदि आने वाले समय में कच्चे तेल के दाम कम होने लगते हैं तो उक्त नियमों में परिवर्तन भी सम्भव होगा।
-प्रह्लाद सबनानी
सेवानिवृत्त उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
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