लखीमपुर खीरी प्रकरण बड़ी साजिश है, जाँच में कई चौंकाने वाली बात सामने आ सकती हैं
किसान आंदोलन में लोगों को तोड़फोड़ के लिए उकसाने वाले अलगाववादी संगठन सिख फॉर जस्टिस का मुखिया गुरपतवंत सिंह पन्नू का बयान आने के बाद यह साफ होता जा रहा है कि लखीमपुर खीरी प्रकरण अपने आप नहीं हुआ। इसके पीछे साजिश की बू आने लगी है।
लखीमपुर खीरी प्रकरण में मृतकों का अंतिम संस्कार भले ही हो गया हो, पर इस प्रकरण को लेकर राजनीति जारी है। चिंगारी अभी दहक रही है। किसान नेताओं ने मृतकों की अरदास 12 अक्तूबर को उसी जगह करने की घोषणा ही है, जहां आंदोलनकारी किसानों की मौत हुई है। वे केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र की बर्खास्तगी की मांग पर अड़े हैं। इस प्रकरण को लेकर देशभर में राजनीति हो रही है। महाराष्ट्र में तो शिवसेना नीत गठबंधन ने 11 अक्तूबर को बंद का आह्वान किया है। विपक्ष के नेता सक्रिय हुए तो दो प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री भी आगे आए। यह भी स्पष्ट हो रहा है कि राज्यों के मुख्यमंत्री सरकारी कोष को अपनी संपदा समझकर इस्तेमाल कर रहे हैं। मनमर्जी से उसका प्रयोग हो रहा है। उनसे पूछने वाला नहीं, कोई रोकने वाला नहीं।
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किसान आंदोलन में लोगों को तोड़फोड़ के लिए उकसाने वाले अलगाववादी संगठन सिख फॉर जस्टिस का मुखिया गुरपतवंत सिंह पन्नू का बयान आने के बाद यह साफ होता जा रहा है कि लखीमपुर खीरी प्रकरण अपने आप नहीं हुआ। इसके पीछे साजिश की बू आने लगी है। पन्नू ने मृतकों के परिवारों से कहा है कि वह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दी गई मुआवजा राशि को लेने से मना कर दें। उसने यह भी घोषणा की कि वह मृतकों के परिवारों को सरकार से दुगनी राशि प्रदान करेंगे।
लखीमपुर खीरी में जो हुआ वह यहां तक तो ठीक लगता है कि किसान उप मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर स्थल पर चले गए। वे अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। पर उप मुख्यमंत्री के सड़क मार्ग से आने की सूचना पर जाकर हंगामा करना, कारों को रोकने की कोशिश करना नारेबाजी करना, उन पर हमला करना यह तो आंदोलन में नहीं आता। आंदोलनकारियों के बीच भिंडरावाला की फोटो की शर्ट पहने युवक और भिंडरवाला के निशान छपे काले झंडे देखकर तो कुछ और ही लगता है। यह भी आ रहा है उप मुख्यमंत्री के कार्यक्रम के विरोध के लिए कोई ग्रुप बनाया गया था। जो भी हो न्यायिक जांच में सब साफ हो जाएगा।
उधर मुख्मंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ कर दिया है कि किसी के दबाव में कोई गिरफ्तारी नहीं होगी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के हवाले से कहा कि किसी की गिरफ्तारी से पूर्व पर्याप्त सुबूत होने चाहिए। जबकि लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्रवाई पर शुक्रवार को निराशा जताई। कोर्ट ने आरोपित को गिरफ्तार नहीं किए जाने और नोटिस भेजे जाने पर सवाल उठाए। हालांकि कोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच की संभावनाओं को भी नकारते हुए दूसरे विकल्प पर ध्यान देने की बात कही।
कोर्ट ने कहा कि सीबीआई हल नहीं है, कारण आप जानते हैं.. कुछ लोगों के कारण.. बेहतर हो कि कुछ और विकल्प देखा जाए। उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट से कुछ समय मांगते हुए दोषियों पर कार्रवाई का भरोसा दिलाया। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को कार्रवाई करने का समय देते हुए डीजीपी को मामले से जुड़े सुबूत और सामग्री सुरक्षित रखने का आदेश दिया। इस पूरे प्रकरण में हो रही राजनीति का सही कारण दो माह बाद उत्तर प्रदेश में होने वाला चुनाव है। इसीलिए पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मृतक किसानों के परिवारजनों को 50−50 लाख रूपया देने की घोषणा की है। वे यह राशि सरकारी कोष ने दे रहे हैं, अपने पास से नहीं। ये राशि उनकी नहीं, सरकारी है। सरकारी कोष में पैसा राज्य के टैक्स प्रदाताओं का होता है। उसे ऐसे ही नहीं लुटाया जा सकता। दूसरे, दूसरे प्रदेश की व्यवस्था में जिस तरह वह दखल दे रहे हैं, ऐसे यदि अन्य प्रदेश के मुख्यमंत्री उनके यहां दखल देने लगें तो क्या होगाॽ व्यवस्थागत परेशानी आएगी। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लखीमपुर खीरी के मृतक किसानों के परिवार को 50−50 लाख रुपया दे रहे हैं। उन्हें चाहिए कि वे अपने प्रदेश के किसानों की हालत सुधारने के लिए कार्य करें। छत्तीसगढ़ विधानसभा में दिये गए एक सवाल के जवाब में बताया गया कि फरवरी से अब तक के दस माह में राज्य में 141 किसानों ने आत्म हत्या की। प्रश्न उठता है कि मुखयमंत्री भूपेश बघेल को अपने राज्य के आत्महत्या करने वाले किसानों का ख्याल नहीं आया। उन्हें कोई मदद नहीं की। दूर के प्रदेश, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के किसानों की मदद की जा रही है।
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सारे राजनैतिक दल सिर्फ मृतक किसानों के आंसू पोंछते नजर आए। कार में सवार उन व्यक्तियों के परिवार से मिलना या मदद करना आप के अलावा किसी ने गंवारा नहीं किया, जिन्हें उत्तेजित किसानों ने पीट− पीटकर मार डाला। सभी राजनैतिक दल उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटर को रिझाने का प्रयास कर रहे हैं, किसानों की पिटाई से मरने वाले कार सवार दो व्यक्ति तो ब्राह्मण थे। इस प्रकरण में कार चालक की गलती मानी जा सकती है। माना जा सकता कि उसने प्रदर्शन करते किसानों पर कार चढ़ाई, पर कार में सवार की क्या गलती थी ॽ वे तो निरपराध थे। राजनैतिक नेताओं को उनके घर भी तो जाना चाहिए था। उनके आंसू पोंछने का काम भाजपा ने ही किया है। उसने कार सवार मृतकों के परिवार वालों को भी किसानों की तरह 45−45 लाख रुपये और एक−एक परिवारजन को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है। उसने इनके घाव पर मरहम लगाने का काम किया है।
अब आंदोलनकारी किसान और उनके नेता राकेश टिकैत ने घोषणा की है कि मृतकों की अरदास 12 को वहीं होगी, जहां उनकी मृत्यु हुई है। दरअसल ये किसान नेता भी यह जानते हैं कि किसानों पर कार चढ़ाने वाला कार का चालक जितना दोषी है, उतने ही दोषी वे किसान भी हैं जिन्होंने कार चालक और कार के सवार को पीट−पीटकर मार डाला। किसानों पर तो कार चढ़ाने वाला एक या दो कार चालक ही दोषी होंगे, पर कार में सवार को पीट−पीटकर मारने वाले तो बड़ी तादाद में हैं। आंदोलनकारी किसान ओर उनके नेताओं का प्रयास है कि कार में सवार को मारने वाले बच जाएं, इसीलिए वह दबाव बनाए हुए हैं, किंतु प्रदेश की योगी सरकार ऐसा करेगी नहीं। कार सवार मरने वाले भाजपा कार्यकर्ता हैं। भाजपा को उनके परिवारजनों को भी जवाब देना है। उधर किसान नेता दबाव दे रहे हैं कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र को बर्खास्त किया जाए, इसमें कार्रवाई करते भाजपा को ध्यान रखना होगा, कि उसका ब्राह्मण वोटर उससे नाराज हो सकता है, हालांकि लखीमपुर खीरी प्रकरण को लेकर अन्य दलों से भी ब्राहमण मतदाता खुश नहीं हैं।
अब अजय मिश्र के बेटे आशीष क्राइम ब्रांच के सामने पेश हो गए हैं। उनसे पूछताछ हो रही है। जल्द ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि वह उस कार में थे या नहीं, जिसने किसान को कथित रूप से कुचला। दूसरा दोषी तो कार चालक होगा, जिसने कार चढ़ाई, कार में बैठने वाला नहीं, वह तो कार चालक को उकसाने का ही दोषी हो सकता है। कार का चालक और उसके सवार ही जब जिंदा नहीं बचे तो यह भी सिद्ध करना सरल नहीं होगा कि कार में बैठे किसी ने चालक को लोगों को कुचलने के लिए उकसाया। इस प्रकरण का प्रमुख गवाह है, थार से कूद कर भागने वाला। सब कुछ उसकी गवाही तय करेंगी कि क्या हुआ ॽ ये जांच ऐसे ही पूरी नहीं हो जाएगी, इसमें बहुत कुछ निकल कर सामने आएगा।
-अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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