देखो दोस्त अमेरिका, अबकी बार पाकिस्तान के झांसे में मत आ जाना
कश्मीर को लेकर भारत का स्टैंड बिल्कुल साफ है, यह बात अमेरिका से बेहतर कौन समझ सकता है। वो अमेरिका जो कई बार इस मुद्दे पर भारत के खिलाफ सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव तक ला चुका है।
भारत और अमेरिका के दोस्ताना संबंधों की नींव वैसे तो उदारीकरण के दौर की शुरूआत के साथ ही पड़ गई थी लेकिन 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत के संबंध अमेरिका से प्रगाढ़ होते चले गए। अटल बिहारी वाजपेयी के बाद मनमोहन सिंह के 10 वर्षों के कार्यकाल में भी दोनों देश एक दूसरे के करीब आते गए और कई विवादित मुद्दों के बावजूद अमेरिका भारत को समझने लगा और साथ ही भारतीय हितों की वकालत भी करता नजर आया। हालांकि ये भी गौर करने वाले बात है कि 9/11 के आतंकी हमले ने अमेरिका को बदलने पर मजबूर कर दिया।
नरेंद्र मोदी और अमेरिका
2014 में केन्द्र की सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले बराक ओबामा और बाद में डोनाल्ड ट्रंप के साथ जिस तरह से व्यक्तिगत संबंधों को बनाया, उससे भी यह लगने लगा कि अब अमेरिका और भारत इतने करीब आ चुके हैं कि दोनों ही देश एक दूसरे के खिलाफ किसी के साथ खड़े नहीं होंगे। भारत में तो यह माना जाने लगा था कि अब आतंकवाद और कश्मीर समेत तमाम मुद्दों पर अमेरिका भारत के स्टैंड को समझ चुका है और उसे अब सिर्फ आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को टाइट करना है लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ मुलाकात के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति के मध्यस्थता वाले मुद्दे पर आए बयान ने सबको चौंका दिया।
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अमेरिकी राष्ट्रपति का बड़बोलापन
कश्मीर को लेकर भारत का स्टैंड बिल्कुल साफ है, यह बात अमेरिका से बेहतर कौन समझ सकता है। वो अमेरिका जो कई बार इस मुद्दे पर भारत के खिलाफ सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव तक ला चुका है। इसके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति का यह दावा करना कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें कश्मीर मसले पर मध्यस्थता करने को कहा था, अपने आप में चौंकाता कम है और हास्यास्पद ज्यादा लगता है। अगर आप इस बयान के पूरे संदर्भ को समझेंगे तो आपको भी यही महसूस होगा और यह लगेगा कि जब दो बड़बोले नेता मिलते हैं तो क्या-क्या होता है ?
डोनाल्ड ट्रंप और इमरान खान की मुलाकात में क्या-क्या हुआ
अमेरिकी एयरपोर्ट पर उतरने के साथ ही शुरू हुए अपमान के दौर की वजह से बुझे हुए चेहरे के साथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने पहुंचे। ट्रंप साहब ने शुरूआत पाकिस्तान को फटकार लगाने के साथ की। अमेरिकी राष्ट्रपति ने ईरान के झूठ का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद है कि पाकिस्तान उनसे झूठ नहीं बोलेगा और यह कहते-कहते उन्होंने यह सवाल इमरान खान से सीधे ही पूछ लिया कि आप झूठ तो नहीं बोलोगे। इस तरह के सवाल से पहले अचकचाए इमरान खान तुरंत संभले और बोले नहीं, बिल्कुल नहीं। इमरान खान अमेरिकी राष्ट्रपति को भरोसा तो दिला रहे थे कि उनका देश पाकिस्तान झूठ नहीं बोलेगा, लेकिन उनका चेहरा कुछ और ही कहानी बयां कर रहा था। यहां तक तो सब वैसा ही हो रहा था जैसा अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अपने राष्ट्रपति को ब्रीफ करते हुए बोलने को कहा होगा लेकिन इसके बाद इमरान खान ट्रंप की तारीफ के कसीदे पढ़ने लगे।
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अमेरिकी राष्ट्रपति की सीधी डांट का असर कहिए कि ट्रंप को सबसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति बताते-बताते इमरान यह भी बोल पड़े कि दुनिया में सिर्फ डोनाल्ड ट्रंप ही हैं जो कश्मीर विवाद का समाधान निकाल सकते हैं। अपनी तारीफ से गदगद अमेरिकी राष्ट्रपति भी मोगैम्बो खुश हुआ, स्टाइल में बोल पड़े कि नरेंद्र मोदी ने भी उनसे मध्यस्थता करने को कहा था। बस फिर क्या था, दोनों ही नेता गदगद नजर आने लगे। इमरान खान सार्वजनिक रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति से और ज्यादा डांट खाने से बच गए थे और वहीं घरेलू मीडिया में लगातार आलोचना का सामना करने वाले डोनाल्ड अपनी सार्वजनिक तारीफ से गदगद थे। दोनों ही मन ही मन में ये भी जानते थे कि वो एक दूसरे से झूठ बोल रहे हैं। भारत कभी कश्मीर मसले पर तीसरे पक्ष को बीच में आने नहीं देगा और पाकिस्तान झूठ न बोले, ऐसा होगा नहीं। इसलिए तो यह कहा जा रहा है कि यह दुनिया के दो बड़बोले नेताओं का मिलन था, और ज्यादा कुछ नहीं। वैसे भी अमेरिका का मीडिया तो पूरा रिकॉर्ड तैयार करके बैठा हुआ है कि ट्रंप साहब ने अब तक कितनी बार झूठ बोला है। अमेरिका को भी अपने राष्ट्रपति की गलती का अहसास तुरंत ही हो गया और विदेश मंत्रालय हो या अमेरिकी सांसद, सब सफाई देते नजर आए।
अमेरिका का सिरदर्द अफगानिस्तान– क्या फिर से झांसा दे रहा है पाकिस्तान ?
आजादी के बाद से ही दुनिया के बड़े देशों के लिए पाकिस्तान का महत्व सिर्फ दो वजहों से था– पहला, भारत को लगातार परेशान कर उलझाये रखना ताकि भारत एशिया का सुपर पॉवर न बन सके और दूसरा अफगानिस्तान। इन दोनों मोर्चों की वजह से ही अमेरिका पाकिस्तान पर डॉलर की बरसात करता रहा, हथियार और लड़ाकू विमान देता रहा। बाद में तालिबान और लादेन पर पाकिस्तानी झूठ के पर्दाफाश होने के बाद से ही अमेरिकी रूख में थोड़ा बदलाव आया। लेकिन अब लग रहा है कि अगले वर्ष होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को देखते हुए ट्रंप अफगानिस्तान से बाहर निकल कर अपनी विदेश नीति की कामयाबी का संदेश देना चाहते हैं। शायद यही वो मुद्दा है जिसकी वजह से एक बार फिर अमेरिका पाकिस्तान के झांसे में आ सकता है। खराब ट्रैक रिकॉर्ड के बावजूद अमेरिका को यह लग रहा है कि तालिबान के साथ समझौते में पाकिस्तान खासकर आईएसआई और पाकिस्तानी सेना महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। भले ही अमेरिका ने अपने राष्ट्रपति के बयान को खारिज कर दिया हो लेकिन भारत को अब इस पर काफी चौकस रहने की जरूरत है।
पहली सूरत में यह लग रहा है कि यह डोनाल्ड ट्रंप का बड़बोलापन है लेकिन हमें पर्दे के पीछे की कहानी को भी देखना होगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि वाकई अमेरिका इमरान खान से यही बोलने वाला था लेकिन अकेले में और अमेरिकी राष्ट्रपति ने बड़बोलेपन की वजह से सबके सामने बोलकर काम खराब कर दिया ? क्या अमेरिका अफगानिस्तान के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ लेने के लिए कुछ इसी तरह का आश्वासन बैक डोर से उसे दे रहा है ? क्या एक बार फिर से अमेरिका पाकिस्तान के झांसे में आ रहा है ? क्या अफगानिस्तान से निकलने की बेताबी में अमेरिका फिर से पाकिस्तान को पुचकारने की सोच रहा है ? जाहिर सी बात है कि अतंर्राष्ट्रीय डिप्लोमैसी में हर देश के लिए अपना हित ही सर्वोच्च होता है और भारत को भी सतर्कता से इस पर नजर बनाए रखनी होगी क्योंकि हमारे हित की रक्षा करना सिर्फ और सिर्फ हमारी ही जिम्मेदारी है।
-संतोष पाठक
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