कोरोना के मामले घटने लगे हैं, क्या भारत में धीमी पड़ गयी है संक्रमण की रफ्तार ?
यह सच है कि पूरे देश में जांच की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है लेकिन हर जगह जांच एक जैसी नहीं है। देश में इसकी जांच दो तरह से हो रही है। एक है आरसी-पीसीआर टैस्ट और दूसरा रैपिड एंटीबॉडी टैस्ट।
क्या भारत में कोरोना संक्रमण की रफ्तार थम रही है। आंकड़े तो यही कह रहे हैं। अगर हम रोज संक्रमित होने वालों की संख्या को देखें तो सितंबर के मध्य तक यह लगातार और तेजी से बढ़ रही थी। लेकिन अब वह धीरे-धीरे नीचे उतरती दिख रही है। एक समय ऐसा लग रहा था कि हर रोज संक्रमित होने वालों की संख्या एक लाख से ऊपर चली जाएगी लेकिन यह उसके काफी करीब पहुँच कर नीचे आने लग गई। नीचे आने की यह रफ्तार नाटकीय नहीं है इसलिए यह भरोसे के काबिल भी लगती है। लेकिन इसी के साथ यह पहेली भी है क्योंकि संक्रमण इस तरह से नीचे आने लगेगा इसकी उम्मीद तमाम विशेषज्ञों ने भी नहीं बांधी थी। सितंबर के मध्य तक यही कहा जा रहा था कि भारत में कोविड-19 का संक्रमण अभी उस शिखर से बहुत दूर है जहां से ऐसे मामले नीचे आना शुरू कर देते हैं। खासकर बीमारियों के संक्रमण पर नजर रखने वाले सांख्यकीय विशेषज्ञ यह कह रहे थे। वे यह माने बैठे थे कि जैसे-जैसे भारत में कोविड जांच की सुविधा बढ़ेगी ये आंकड़े लगातार बढ़े हुए ही मिलेंगे। जांच की संख्या लगातार बढ़ रही है लेकिन आंकड़े नीचे आने शुरू हो गए।
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नए संक्रमित लोगों की संख्या नीचे क्यों आने लगी इसके तीन कारण हो सकते हैं।
पहला कारण सीधा-सा हो सकता है कि संक्रमण अब अपने शिखर पर पंहुच कर नीचे आने लग गया है। हालांकि पूरी दुनिया के अभी तक के आंकड़े देखने के बाद ज्यादातर वैज्ञानिक और स्टेटीशियंस अभी तक इस नतीजे पर नहीं पहुंच सके कि इस संक्रमण शिखर का क्या अर्थ लगाया जाए? संक्रमण का शिखर थोड़ा टेढ़ा मामला है, इस पर हम चर्चा थोड़ा बाद में करेंगे।
दूसरा मामला कोविड-19 की जांच से जुड़ा है। यह सच है कि पूरे देश में जांच की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है लेकिन हर जगह जांच एक जैसी नहीं है। देश में इसकी जांच दो तरह से हो रही है। एक है आरसी-पीसीआर टेस्ट और दूसरा रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट। आरसी-पीसीआर काफी महंगा टेस्ट है और इसके नतीजे भी एक दिन बाद मिल पाते हैं, लेकिन यही सबसे भरोसेमंद जांच भी है। इसके मुकाबले रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट काफी सस्ता है और इसके नतीजे भी तुरंत मिलते हैं। लेकिन यह भरोसेमंद नहीं है और कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि इसमें गलती की दर 25 फीसदी तक हो सकती है। पूरे देश में जो टेस्ट बढ़ रहे हैं उनमें ज्यादतर ये रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट ही हो रहे हैं। दिल्ली से एक खबर यह भी है कि यहां आरसी-पीसीआर टेस्ट पहले से कम होने लगे हैं। लेकिन देश भर में आरसी-पीसीआर टेस्ट बहुत कम हो गए हों ऐसी खबर नहीं है, इसलिए अगर आंकड़े कम हो रहे हैं तो इसके लिए जांच के तरीकों को बहुत ज्यादा दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
तीसरा कारण हो सकता है आंकड़ों की हेरा-फेरी। यह सच है कि दुनिया के कई देशों से कोरोना संक्रमण के आंकड़े छुपाने और दबाने की खबरें आती रही हैं। यहां तक कहा जाता है कि अमेरिका और यूरोप के कई देशों तक में सही आंकड़े सामने नहीं आने दिए गए। लेकिन भारत के मामले में इस तरह के प्रमाण या आरोप अभी तक सामने नहीं आए हैं। भारत में अपराध और स्वास्थ्य जैसे मामलों में आंकड़ों को दबाया जाना आम बात मानी जाती है, लेकिन कोरोना संक्रमण के मामले में अभी तक इस तरह की बातें सामने नहीं आ सकी हैं। फिर इस समय देश में ऐसे कोई राजनीतिक कारण या दबाव भी नहीं हैं कि आंकड़ों को छुपाने की जरूरत पड़े। लेकिन यहीं पर एक बात को और जोड़ देना जरूरी है कि संक्रमण के मामले में भारत दूसरे नबंर का देश जरूर बन गया लेकिन सरकार ने अभी तक आधिकारिक तौर पर यह स्वीकार नहीं किया कि देश में सामुदायिक स्तर पर संक्रमण फैलना शुरू हो चुका है।
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इसे समझने का एक दूसरा तरीका यह है कि हम उन देशों को देखें जो संक्रमण का पहले शिकार बने थे और उनके बारे में यह घोषणा भी हो चुकी है कि वे संक्रमण के शिखर को पार कर चुके हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण ब्रिटेन है जिसके बारे में यह घोषणा काफी पहले ही हो गई थी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से वहां यह संक्रमण काफी तेजी से बढ़ना शुरू हो गया है और यह कहा जाने लगा है कि ब्रिटेन अब संक्रमण के दूसरे चरण यानी सेकेंड वेव की ओर बढ़ रहा है। भारत में ही अगर हम केरल और दिल्ली को देखें तो वहां यह कहा जाने लगा था कि संक्रमण घटना शुरू हो चुका है लेकिन कुछ समय बाद वहां संक्रमण फिर बढ़ता दिखाई दिया। यही दक्षिण कोरिया जैसे देशों में भी हो चुका है।
अगर हम कोरोना संक्रमण के रोजाना दर्ज होने वाले मामलों का ग्राफ बनाते हैं तो वह पहाड़ के आकार की तिरछी रेखा के रूप में तेजी से बढ़ता है और एक हद के बाद यह वैसे ही नीचे उतरता दिखता है जैसे किसी पहाड़ की रेखा उतरती दिखती है। लेकिन पिछले छह महीने के जो भी आंकड़े मिले हैं वे यही बता रहे हैं कि यह ज्यादातर मामलों में एक हद तक ही नीचे आता है और फिर दुबारा नया शिखर बनाने की ओर बढ़ जाता है। इसका क्या कारण हो सकता है वैज्ञानिक अभी स्पष्ट रूप से नहीं समझ सके हैं।
इसका एक कारण तो यह हो सकता है कि संक्रमण में राहत की खबर से पाबंदियां ढीली होने लगती हैं और लोग भी थोड़े बेपरवाह होने लगते हैं जिसकी वजह से संक्रमण फिर तेजी से ऊपर जाने लगता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इसका एक और कारण कोरोना वायरस के जीवन चक्र और उसकी बदलती फितरत में भी हो सकता है। लेकिन ये दोनों ही चीजें ऐसी हैं जिन्हें अभी ठीक से समझा नहीं जा सका है। फिलहाल तो इसे लेकर एक ही नतीजे पर पहुँचना समझदारी होगी कि दैनिक संक्रमण की संख्या कम होने पर राहत की सांस लेने या अपनी पीठ थपथपाने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि खतरा अभी टला नहीं है।
-हरजिंदर
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