पंजाब में बदलाव की लहर का सीधा और सबसे बड़ा फायदा भाजपा को होने जा रहा है

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कुछ समय पहले किसान आंदोलन के चलते भाजपा का ग्राफ यहां तेजी से गिरा था। आज भी गांवों में भाजपा के खिलाफ नाराजगी का माहौल देखा जा सकता है। हालांकि यह माहौल कुछ लोगों ने साजिशन बनाया है।

पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं। जबसे पंजाब राज्य की स्थापना हुई है तबसे यह पहली बार है जब सभी प्रमुख दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं और कोई भी गठबंधन इस बार के चुनाव मैदान में नहीं है। भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, बसपा तो अकेले चुनाव लड़ ही रहे हैं साथ ही सिमरनजीत सिंह मान की पार्टी भी कुछ सीटों पर अकेले चुनाव लड़ रही है। इस तरह कई सीटों पर पांच कोणीय मुकाबला है तो कहीं छह कोणीय चुनावी मुकाबला हो रहा है। जाहिर है मतों के इस भारी विभाजन के चलते इस बार हार और जीत का अंतर बेहद मामूली रहने वाला है। पंजाब में सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी का प्रयास है कि सभी 13 सीटों पर जीत हासिल की जाये लेकिन कांग्रेस भी पूरा दमखम लगाये हुए है। कांग्रेस अब भी यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई है कि 11 साल पुरानी पार्टी ने उसे सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का वैसे तो दिल्ली, गुजरात, असम, हरियाणा और चंडीगढ़ में गठबंधन है लेकिन पंजाब में दोनों एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं। इसके चलते मतदाता भी हैरान हैं। मतदाता आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि चंडीगढ़ में दोनों पार्टियां एक साथ चुनाव लड़ रही हैं और भाजपा को निशाने पर ले रही हैं लेकिन चंडीगढ़ से 15-20 मिनट की दूरी से शुरू होने वाले पंजाब राज्य में आते ही यह दोनों दल एक दूसरे के खिलाफ ही हमला बोल रहे हैं। ऐसे में सवाल राजनीतिक शुचिता का भी उठ रहा है और गठबंधन धर्म का मजाक बनने से राजनीतिक प्रेक्षक भी हैरान हैं।

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दूसरी ओर, कुछ समय पहले किसान आंदोलन के चलते भाजपा का ग्राफ यहां तेजी से गिरा था। आज भी गांवों में भाजपा के खिलाफ नाराजगी का माहौल देखा जा सकता है। हालांकि यह माहौल कुछ लोगों ने साजिशन बनाया है। खासतौर पर मतदान से ठीक पहले जिस तरह संयुक्त किसान मोर्चा ने भाजपा को हराने का आह्वान कर दिया है उससे भी गांवों में भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसके अलावा किसानों ने सभी 13 लोकसभा सीटों के भाजपा उम्मीदवारों के घर के बाहर धरना प्रदर्शन भी आयोजित कर रखा है जिससे भगवा दल की चुनावी संभावनाओं पर असर पड़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है। लेकिन भाजपा इस सबसे बेपरवाह होकर अपना चुनावी अभियान आगे बढ़ा रही है और उसे खासतौर पर शहरी मतदाताओं का बड़ा समर्थन मिलता दिख रहा है।

प्रभासाक्षी की चुनाव यात्रा जब पंजाब के विभिन्न शहरों में पहुँची तो हमने पाया कि आम आदमी पार्टी ने बिजली बिल माफ करने के अलावा कोई वादा पूरा नहीं किया है। पंजाब को नशे से मुक्त कराने की बात कही गयी थी लेकिन नशाखोरी और बढ़ गयी है। महिलाओं को एक हजार रुपए प्रतिमाह का वादा पूरा नहीं होने से स्त्री शक्ति नाराज है। व्यापारी और उद्योगपति इसलिए निराश हैं क्योंकि कानून व्यवस्था सही नहीं होने से व्यापार प्रभावित हो रहा है। कई लोगों ने तो अपना व्यापार हरियाणा में शिफ्ट भी कर लिया है। आंदोलनों के चलते निवेशक सतर्क हैं जिससे पंजाब में निजी निवेश नहीं आ रहा है और इसका सीधा असर रोजगार पर पड़ रहा है।

हमने जब लोगों के मन की बात जानने का प्रयास किया तो सबने एक ही बात कही कि प्रधानमंत्री मोदी जी से कहिये कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को छह महीने के लिए पंजाब का मुख्यमंत्री बना दें ताकि यहां भी सब ठीक हो सके। लोगों ने कहा कि गर्मी के इस मौसम में गांवों में 18 घंटे तक की कटौती हो रही है और कहीं कोई सुनवाई नहीं है। लोगों ने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार सिर्फ विज्ञापन पर पैसा खर्च करती है और सुरक्षा का बड़ा घेरा लेकर चलने में विश्वास रखती है। हमने पाया कि राज्य सरकार से जनता की नाराजगी, कांग्रेस पार्टी में चुनाव के समय हुए बिखराव और शिरोमणि अकाली दल की ओर से सारा ध्यान भठिंडा पर ही लगा दिये जाने के चलते जनता भाजपा के साथ जुड़ रही है। भाजपा ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को पार्टी में लाकर चुनाव मैदान में उतार कर जो चाल चली है वह कामयाब होती दिख रही है। हमने पाया कि जालधंर में सुशील कुमार रिंकू, पटियाला में महारानी प्रणीत कौर और लुधियाना में रवनीत सिंह बिट्टू चुनाव जीत कर भाजपा की झोली में यह तीनों सीटें पहली बार डाल सकते हैं। इसके अलावा हमने गुरदासपुर और आनंदपुर साहिब में भी भाजपा को मजबूत पाया। भाजपा ने यहां अकेले चुनाव लड़ने का जो फैसला किया था उसके चलते पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश देखते ही बन रहा था। हमने जालंधर और लुधियाना में राम मंदिर मुद्दे का काफी प्रभाव भी देखा।

इसके अलावा, कांग्रेस ने भले लोकसभा चुनाव में अपने दमदार नेताओं को उतारा है लेकिन उनकी सीटें बदल कर उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है। कांग्रेस उम्मीदवार अपने पुराने क्षेत्र की टीमों को लेकर नये क्षेत्र में काम करते दिखे। वहां स्थानीय कार्यकर्ताओं का उन्हें पूरा समर्थन भी नहीं मिलता दिखा। इसके अलावा कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक भी पार्टी का नुकसान करती दिखी। राहुल गांधी ने पिछली बार की तरह कांग्रेस के प्रचार में यहां ज्यादा समय नहीं दिया जिससे पार्टी के कार्यकर्ता निराश दिखे। कांग्रेस दफ्तर का सूनापन भी दर्शा रहा था कि पार्टी निरुत्साहित होकर चुनाव लड़ रही है। 

वहीं आम आदमी पार्टी का प्रचार करने का जिम्मा अरविंद केजरीवाल ने खुद संभाल रखा था। उनके रोड शो और रैलियों में जनता उमड़ी भी। भगवंत मान, राघव चड्ढा और संजय सिंह ने भी जमकर प्रचार किया। आम आदमी पार्टी के साथ खड़ी भीड़ को देखें तो लगता है कि वह सबसे आगे रह सकती है। लेकिन एक बात तय है कि पंजाब में बदलाव की जो लहर चल रही है उसका सीधा और सबसे बड़ा फायदा भाजपा को होने जा रहा है।

-नीरज कुमार दुबे

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