Tipu Sultan Birth Anniversary: जब 'मैसूर के टाइगर' ने छुड़ाए थे अंग्रेजों के छक्के, गद्दारी के चलते गंवानी पड़ी जान

Tipu Sultan
Prabhasakshi

मैसूर के टाइगर के नाम से फेमस टीपू सुल्तान अंग्रेजों के खिलाफ युद्धों में अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते हैं। आज ही के दिन यानी की 20 नवंबर को टीपू सुल्तान का जन्म हुआ। अंग्रेजों के लिए टीपू सुल्तान हमेशा रहस्य रहे और जीते-जी कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आए।

देश पर मर मिटने वाले टीपू सुल्तान की आज यानी की 20 नवंबर को बर्थ एनिवर्सरी है। उन्होंने अपने जीवन में खूब युद्ध किए, लेकिन वह जीवित रहते कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। अंग्रेजों के लिए टीपू सुल्तान हमेशा रहस्य रहे। उन्होंने कभी भी अंग्रेजों से किसी प्रकार का समझौता नहीं किया। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर टीपू सुल्तान के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

कर्नाटक के देवनाहल्ली (यूसुफ़ाबाद) में 20 नवंबर 1750 में टीपू सुल्तान का जन्म हुआ था। उनके पिता हैदर अली मैसूर राज्य में ही सैनिक थे, लेकिन अपनी सूझबूझ के और ताकत के चलते साल 1761 में वह मैसूर के राजा बन बैठे। टीपू सुल्तान का पूरा नाम सुल्तान फलेह अली शाहाब था। जब टीपू सुल्तान 11 साल के थे, तो उनके पिता मैसूर के राजा बन गए। वहीं उनकी कद-काठी देखते हुए अंग्रेज उनमें नेपोलियन की छवि देखते थे और इसी कारण अंग्रेज टीपू सुल्तान से डरते भी थे। 

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हमला करने से बचते थे अंग्रेज

बता दें कि अंग्रेज मैसूर का आधा से ज्यादा साम्राज्य अपने कब्जे में ले चुके थे, लेकिन तब भी टीपू सुल्तान को सालाना 1 करोड़ रुपए से ज्यादा कर मिलता था। जबकि अंग्रेज मार-काट और कब्जा आदि करने के बाद 8 करोड़ का राजस्व जुटा पाते थे। अंग्रेजों को पूरा मैसूर लेने की धुन सवार थी। क्योंकि अंग्रेजों के लिए मैसूर वह रियासत थी, जिस पर कब्जे का अर्थ दक्षिण भारत पर राज करना आसान था। करीब 43 हजार अंग्रेज सैनिकों की टुकड़ी ने 14 फरवरी 1799 को एक साथ सेरिंगापट्टम की ओर कूच किया और घेरा बना लिया। लेकिन इसके बावजूद भी अंग्रेज सीधा हमला करने से बचते रहे। वहीं इस दौरान टीपू सुल्तान अंग्रेजों को छति पहुंचाने में कामयाब रहे।

सिपाहियों ने दिया टीपू सुल्तान को धोखा

वहीं जब हमले का समय करीब आया तो टीपू सुल्तान के गद्दार सिपाही उन्हें धोखा दिया। गद्दार सिपाही मीर सादिक ने वेतन के बहाने सैनिकों को पीछे बुलाया और अन्य गद्दार सिपाहियों ने सफेद रुमाल के जरिए अंग्रेजी सेना को इशारा कर दिया। यह देख अंग्रेजी सैनिक किले में प्रवेश कर गए। इस दौरान तोप के हमले में टीपू का वफादार कमांडर गफ्फार मारे गए और देखते ही देखते किले पर सबसे पहले अंग्रेजों ने अपना झंडा फहरा दिया। 

इसके बाद असली युद्ध शुरू हुआ और कई सारे अंग्रेज सैनिक मारे गए और अफसर भी। जिसके बाद टीपू सुल्तान अपने सैनिकों की हौसलाफजाई करने युद्ध में उतरे। लेकिन इस दौरान वह अपने परंपरागत रुप में ना जाकर एक साधारण रुप धारण किया। जिससे कि अंग्रेज उन्हें पहचान ना सके। 

ऐसे चुना कुर्बानी का रास्ता

अंग्रेज सैनिकों और टीपू सुल्तान के बीच लड़ाई अब तेज हो चली थी। वहीं टीपू सुल्तान भी पैदल संघर्ष कर रहे थे। लेकिन इस युद्ध में टीपू सुल्तान घोड़े पर सवार होकर युद्ध लड़ते रहे। इस दौरान उन्हें गोली लगी और घोड़ा भी मारा गया। लेकिन टीपू सुल्तान बेहोशी की हालत में युद्ध लड़ते रहे और अंग्रेजों पर हमला करते रहे। तभी एक हमले ने टीपू सुल्तान को निस्तेज कर दिया।

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