Tipu Sultan Death Anniversary: 18 साल की उम्र में टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के खिलाफ जीता था पहला युद्ध, शेर-ए-मैसूर का मिला था खिताब
मैसूर के टाइगर नाम से फेमस टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्धों में अपनी बहादुरी दिखाई थी। आज ही के दिन यानी की 4 मई को टीपू सुल्तान के अंग्रेजों द्वारा हत्या कर दी गई थी। टीपू सुल्तान ने पिता की मौत के बाद उनका सिंहासन संभाला।
मैसूर साम्राज्य के शासक टीपू सुल्तान अंग्रेजों के खिलाफ युद्धों में अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते हैं। टीपू सुल्तान को अपनी बेहतरीन लड़ाई के लिए प्रथम स्वतंत्रता सेनानी के रूप में महत्व दिया जाता है। आपको बता दें कि 4 मई को टीपू सुल्तान की मौत हो गई। मैसूर के सुल्तान हैदर अली के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में टीपू सुल्तान ने पिता की मौत के बाद उनका सिंहासन संभाला। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सिरी के मौके पर टीपू सुल्तान के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
टीपू सुल्तान का जन्म 20 नवंबर सन 1750 को देवनहल्ली शहर में उनका जन्म हुआ था। वर्तमान में यह जगह कर्नाटक के नाम से जानी जाती है। इनके पिता का नाम हैदर अली था। वह दक्षिण भारत में मैसूर के साम्राज्य के एक सैन्य अफसर थे। वहीं उनकी मां का नाम फ़ातिमा फख्र – उन – निसा था। टीपू सुल्तान के पिता मैसूर के साम्राज्य के वास्तविक शासक के रूप में साल 1761 में सत्ता में आए। हालांकि हैदर अली पढ़े-लिखे नहीं थे। जबकि उन्होंने अपने बेटे टीपू सुल्तान को अच्छी शिक्षा दी थी।
टीपू सुल्तान की बहुत से विषयों जैसे हिंदी, फारसी, उर्दू, अरेबिक, कुरान, कन्नड़ इस्लामी न्यायशास्त्र, घुड़सवारी, शूटिंग और तलवारबाजी आदि पर अच्छी पकड़ थी। हैदर अली के फ़्रांसिसी अधिकारीयों के साथ अच्छे संबंध होने के कारण टीपू सुल्तान को त्यधिक कुशल फ़्रांसिसी अधिकारियों द्वारा राजनीतिक मामलों में प्रशिक्षित किया गया था।
शुरूआती जीवन
बता दें कि टीपू सुल्तान का शुरूआती जीवन काफी संघर्षों में बीता था। राजनीतिक शिक्षा में पारंगत होने के बाद उनके पिता ने उन्हें युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया। टीपू सुल्तान महज 15 साल की उम्र में ब्रिटिश के खिलाफ मैसूर की पहली लड़ाई में साल 1766 में अपने पिता का जंग के मैदान में साथ दिया ता। इन वर्षों में उनके पिता हैदर पूरे दक्षिण भारत में सबसे शक्तिशाली शासक बन गए थे। टीपू ने अपने पिता के साथ कई सफल सैन्य अभियानों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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टीपू सुल्तान का शासनकाल
साल 1779 में टीपू के संरक्षण के तहत आने वाले बंदरगाह पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया। जिसके बाद टीपू के पिता हैदर अली ने साल 1780 में अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने द्वितीय एंग्लो – मैसूर युद्ध के रूप में एक अभियान की शुरूआत की। जिसमें उन्होंने सफलता हासिल की। हालांकि इस अभियान के आगे बढ़ने के साथ ही हैदर अली कैंसर से पीड़ित हो गए और उनकी साल 1782 में मौत हो गई।
हैदर अली की मृत्यु के बाद 1782 में टीपू सुल्तान मैसूर साम्राज्य के शासक बन गए। उनके शासक बनते ही सुल्तान ने फौरन अंग्रेजों की अग्रिमों की जांच के लिए मराठों और मुगलों के साथ गठबंधन कर सैन्य रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया। अंत में टीपू सुल्तान साल 1784 में द्वितीय एंग्लो – मैसूर युद्ध को ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों के साथ मंगलौर की संधि पर हस्ताक्षर करने में सफल हो गए।
टीपू सुल्तान ने एक कुशल शासक के तौर पर अपनी पहचान बनाई थी। उन्होंने अपने पिता की पीछे छोड़ी हुई कई परियोजनाओं को पूरा किया। उन्होंने युद्ध में राकेट के उपयोग में कई सारे सैन्य नये परिवर्तन किये। इनका इस्तेमाल वह अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में किया करते थे। टीपू ने मैसूरियन रॉकेट का ईज़ाद कराया था। इसे दुनिया का पहला रॉकेट कहा जाता है। कहा जाता है कि देश की आज़ादी के बाद अंग्रेज इन मिसाइल को अपने साथ ले गए और आज इसे विरासत के तौर पर संभल कर रखा है।
लाखों हिन्दुओं का हत्यारा
टीपू सुल्तान ने अपने शासन काल में करीब 5 लाख से अधिक हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन करवाया था। कहा जाता है कि टीपू ने बड़ी संख्या में हिंदुओं का कत्ल भी करवा दिया था। इतिहासकारों की मानें तो उसने कई हजारों हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करवा दिया था। और मैसूर को मुस्लिम राज्य बनाने का ऐलान कर दिया था।
कोयंबटूर पर अंग्रेजों का कब्जा
साल 1790 में टीपू सुल्तान पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने हमला किया। जिसके बाद अंग्रेजों ने कोयंबटूर जिले पर अधिक से अधिक अपना नियंत्रण बनाने में कामयाब रहे। इसके जवाब में टीपू ने कार्नवालिस पर हमला किया। लेकिन वह इस अभियान में ज्यादा सफल नहीं हो सका। 2 वर्षों तक चले इस संघर्ष के बाद साल 1792 में इस युद्ध को समाप्त करने के लिए टीपू ने श्रीरंगपट्टनम की संधि पर हस्ताक्षर कर दिया। जिसके फलस्वरूप उसे मालाबार और मंगलौर समेत अपने कई प्रदेशों से हाथ धोना पड़ा।
मौत
टीपू सुल्तान ने अपने कई प्रदेशों को खोने के बाद भी अंग्रेजों से अपनी दुश्मनी जारी रखी। साल 1799 में 1799 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मराठों और निजामों के साथ मिलकर मैसूर पर हमला बोल दिया। बता दें कि यह चौथा एंग्लो – मैसूर युद्ध था। इस युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टनम पर कब्ज़ा कर लिया। वहीं ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस लड़ाई में 4 मई 1799 में टीपू सुल्तान की हत्या कर दी।
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