Ramdhari Singh Dinkar: क्रांतिकारी कवि के तौर पर जाने जाते थे 'दिनकर', मंदिर में की थी अपनी मौत की कामना

Ramdhari Singh Dinkar
Prabhasakshi

रामधारी सिंह दिनकर को उनकी किसी एक रचना या संग्रह से नहीं समझा जा सकता है। भूषण के बाद दिनकर जी को वीर रस का महान कवि माना जाता था। आज ही के दिन यानी की 24 अप्रैल को यह महान लेखक और कवि इस दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह गया था।

रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी के कवि, लेखक और निबन्धकार थे। दिनकर आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि थे। स्वतंत्रता के पहले उनकी पहचान एक विद्रोही कवि के तौर पर थी। लेकिन देश की आजादी के बाद उनकी पहचान 'राष्ट्रकवि' के तौर पर होने लगी। उनकी कविताओं में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी तरफ कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 24 अप्रैल को इस महान कवि ने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कहा था। आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में 24 सितंबर 1908 को दिनकर जी का जन्म एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। दिनकर जी महज दो साल के थे, जब उनके पिता का निधन हो गया था। दिनकर ने संस्कृत के एक पंडित के पास अपनी शुरूआती शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वह बोरो नामक ग्राम में 'राष्ट्रीय मिडिल स्कूल' से शिक्षा ली। यहीं से दिनकर जी के मन में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होने लगा था। इन्होंने हाईस्कूल मोकामाघाट हाईस्कूल से पूरा किया। वहीं साल 1928 में पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास में बी. ए. ऑनर्स किया। दिनकर जी ने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था।

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पद

बी.ए की परीक्षा पास करने के बाद दिनकर जी एक स्कूल में टीचर हो गए थे। साल 1934-47 तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्टार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पद पर रहे। इसी दौरान दिनकर जी की रेणुका और हुंकार प्रकाश में आई थीं। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार को यह समझते तनिक देर भी न लगी कि उन्होंने गलत आदमी को इन पदों की जिम्मेदारियां सौंपी हैं। जिसके बाद दिनकर को चेतावनी मिलती। इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि दिनकर जी का 4 साल में 22 बार ट्रांसफर किया गया। 

इसके बाद साल 1947 में देश स्वाधीन हुआ और वह बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रध्यापक व विभागाध्यक्ष बनकर मुजफ्फरनगर पहुंचे। जिसके बाद साल 1952 में जब भारत की पहली संसद का निर्माण हुआ तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया। इसके बाद दिनकर जी दिल्ली आ गए। इस दौरान वह 12 साल तक संसद-सदस्य रहे। साल 1964-65 तक वह भागलपुर यूनिवर्सिटी के कुलपति बने। वहीं भारत सरकार ने दिनकर जी को 1965 से 1971 तक अपना हिन्दी सलाहकार नियुक्त किया।

कृतियां

रामधारी सिंह ने सामाजिक और आर्थिक समानता और शोषण के खिलाफ कई कविताओं की रचना की। उनकी महान रचनाओं में रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा आदि शामिल है। हालांकि उर्वशी को छोड़कर उनकी ज्यादातर रचनाएं वीर रस से ओतप्रोत मिलेंगी। भूषण के बाद रामधारी को वीर रस का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। उर्वशी के लिए रामधारी जी को ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया। 

काव्य कृतियां

बारदोली-विजय संदेश, हुंकार, रेणुका, रसवन्ती, द्वंद्वगीत, कुरूक्षेत्र, धूप-छांह, सामधेनी, बापू, इतिहास के आंसू, रश्मिरथी, नील कुसुम, सूरज का ब्याह, दिनकर के गीत, रश्मिलोक आदि हैं। 

गद्य कृतियां

संस्कृति के चार अध्याय, चित्तौड़ का साका, अर्धनारीश्वर, हमारी सांस्कृतिक एकता, लोकदेव नेहरू, वट-पीपल, मेरी यात्राएँ, दिनकर की डायरी, आधुनिक बोध, भारतीय एकता आदि शामिल हैं। 

सम्मान

आपको बता दें कि दिनकर जी को उनकी रचना कुरुक्षेत्र के लिये उत्तरप्रदेश सरकार और भारत सरकार से सम्मान मिला। वहीं 'संस्कृति के चार अध्याय' के लिए साल 1959 में साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया। साल 1959 में ही देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। भारत के राष्ट्रपति जाकिर हुसैन ने दिनकर जी को डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। साल 1968 में 'विद्यापीठ' के लिए साहित्य-चूड़ामणि से सम्मानित किया। 'उर्वशी' के साथ साल 1972 में ज्ञानपीठ से सम्मानित किय गया।

निधन

अपनी राष्ट्रभक्ति की भावना को कविता के माध्यम से आगे बढ़ाने वाले दिनकर जी जनकवि थे। भागलपुर के तिलका मांझा यूनिवर्सिटी से नौकरी छूट जाने के बाद दिनकर जी को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा था। कहा जाता है कि रामधारी सिंह ने तिरुपति बालाजी मंदिर में जाकर अपनी मौत मांगी थी। मंदिर पहुंचकर उन्होंने रश्मीरथी का पाठ किया था, जो कई घंटो तक चला था। इस दौरान उनको सुनने के लिए सैकड़ों की संख्या में लोग आए थे। उसी रात दिनकर जी के सीने में तेज दर्द उठा और दिल का दौरा पड़ने से प्रकाश बिखेरता सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया।

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