Suryakant Tripathi Birth Anniversary: छायावाद के सबसे प्रमुख स्तंभ रहे सूर्यकांत त्रिपाठी, पीएम नेहरू से थे वैचारिक मतभेद

Suryakant Tripathi
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सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हिंदी कविता के छायावाद के सबसे प्रमुख स्तंभ हैं। आज ही के दिन यानी की 21 फरवरी को सूर्यकांत त्रिपाठी का जन्म हुआ था। निराला ने न सिर्फ हिंदी में महारत हासिल की थी और वह हिंदी साहित्य के अग्रणी भी रहे।

आज ही के दिन यानी की 21 फरवरी को सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म हुआ था। वह हिंदी कविता के छायावाद के सबसे प्रमुख स्तंभ हैं। भले ही द्विवेदी युग में खड़ी बोली हिंदी में कविता लिखने की परंपरा प्रचलित हो गई थी। लेकिन खड़ी बोली में लिखी कविताओं को तब तक साहित्यिक कसौटी पर बहुत बेहतर नहीं समझा जाता था। खड़ी बोली हिंदी में लिखी कविता को साहित्यिक प्रतिष्ठा दिलाने का श्रेय छायावाद को जाता है। जिसमें से सबसे प्रमुख योगदान महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का भी है। निराला ने भाव और भाषा के स्तर पर जितने प्रयोग किए, उतने प्रयोग छायावाद के किसी अन्य कवि ने नहीं किए हैं। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में 21 फरवरी 1896 को सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म हुआ था। बता दें कि 20 साल की उम्र में उन्होंने हिंदी सीखनी शुरू की थी। क्योंकि उनकी मातृभाषा बांग्ला थी। इसके बाद उन्होंने हिंदी भाषा को अपने लेखन का जरिया बनाया। निराला ने न सिर्फ हिंदी में महारत हासिल की थी और वह हिंदी साहित्य के अग्रणी भी रहे। उनके बचपन का नाम सुर्जकुमार रखा गया था। इनके पिता का नाम रामसहाय तिवारी था। वह उन्नाव जिले के गढ़ाकोला गांव के रहने वाले थे। निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई थी।

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पंडित नेहरू से वैचारिक मतभेद

सूर्यकांत त्रिपाठी के भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के साथ वैचारिक मतभेद थे। वह पीएम नेहरू के पश्चिमी पालन-पोषण के बेहद आलोचक थे। एक बार पीएम नेहरू जब इलाहाबाद आए, तो उन्होंने निराला से मुलाकात का संदेश भेजा। लेकिन निराला उनसे मिलने नहीं गए और कहा कि भाई जवाहर बुलाएं तो वह नंगे पांव मिलने जा सकते हैं। लेकिन वह पीएम नेहरू से मिलने नहीं जाएंगे। जब यह बात तत्कालीन पीएम नेहरू तक पहुंची तो वह खुद ही उनसे मिलने के लिए दारागंज स्थित उनके आवास पर गए थे।

गांधी जी से टकराव

दरअसल साल 1936 में महात्मा गांधी ने एक साहित्य समारोह के दौरान कह दिया कि 'हिंदी साहित्य में एक भी रविंद्रनाथ टैगोर नहीं हुआ है।' जिस पर सूर्यकांत त्रिपाठी ने महात्मा गांधी से आगे बढ़कर पूछा कि क्या आपने पर्याप्त हिंदू साहित्य पढ़ा है। जिस पर महात्मा गांधी ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने हिंदी साहित्य का अध्ययन अधिक नहीं किया है। तब निराला ने कहा कि 'आपको मेरी भाषा हिंदी के बारे में बात करने का अधिकार किसने दिया।' साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह गांधी जी को अपनी कुछ रचनाएं भेजेंगे, जिससे कि गांधी जी को हिंदी साहित्य के बारे में बेहतर जानकारी मिल सके।

महादेवी वर्मा को मानते थे बहन

बता दें कि निराला ने हिंदी साहित्य को जितना मजबूत करने का काम किया था, उससे कहीं ज्यादा उन्होंने पूरे मानव समाज को सार्थक बनाने का काम किया था। उनके पास अपने लिए कुछ भी नहीं था। वह हिंदी के बड़े कवि और साहित्यकार थे। लेकिन निराला के पास रॉयलटी का पैसा भी नहीं रहता था। एक बार महादेवी वर्मा ने सूर्यकांत त्रिपाठी से कहा कि उनका सारा रुपया वह रखेंगी, जिससे कि कुछ तो बच सके और भविष्य़ में निराला के काम आ सके। निराला के लिए महादेवी उनकी छोटी बहन थी, इसलिए वह अपना सारा पैसा महादेवी वर्मा को दे देते थे और जरूरत पड़ने पर उनसे मांगते थे।

निराला का साहित्य में योगदान 

अनामिका (1923), परिमल (1930), गीतिका (1936), तुलसीदास (1939), कुकुरमुत्ता (1942), अणिमा (1943), बेला (1946), नये पत्ते (1946), अर्चना (1950), आराधना (1953), गीत कुंज (1954), सांध्य काकली और अपरा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रमुख काव्य-कृतियां हैं। लिली, सखी, सुकुल की बीवी उनके प्रमुख कहानी-संग्रह और कुल्ली भाट, बिल्लेसुर बकरिहा उनके फेमस उपन्यास हैं।

मृत्यु

सूर्यकांत त्रिपाठी के जीवन का अंतिम समय प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में एक छोटे से कमरे में बीता। वहीं अस्वस्थता के चलते 15 अक्तूबर 1961 को कवि निराला जी की मृत्यु हो गई।

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