Sir Mokshagundam Visvesvaraya Birth Anniversary: औद्योगिक विकास के समर्थक थे सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया

Sir mokshagundam visvesvaraya
Prabhasakshi

वर्ष 1883 में इंजीनियरिंग की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने वाले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का पसंदीदा विषय सिविल इंजीनियरिंग था। कॅरियर के आरंभिक दौर में ही मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने कोल्हापुर, बेलगाम, धारवाड़, बीजापुर, अहमदाबाद एवं पूना समेत कई शहरों में जल आपूर्ति परियोजनाओं पर खूब काम किया था।

ईंट, पत्थर, लोहे और सीमेंट की इमारत बनाने वाला कोई इंजीनियर एक शिल्पकार ही माना जाता है। पर, उसकी इंजीनियरिंग में विशिष्ट तकनीकी कौशल के साथ-साथ सामाजिक सरोकार भी जुड़ जाएं तो वह महान बन जाता है। गुलामी के दौर में अपनी प्रतिभा से भारत के विकास में योगदान देने वाले सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया एक ऐसे ही युगद्रष्टा इंजीनियर थे। बहुत कम लोगों को पता होगा कि हर साल 15 सितंबर को उनकी याद में ही इंजीनियर दिवस मनाया जाता है। 

एक बार सर मोक्षगुंडम रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे। अचानक उन्होंने उठकर जंजीर खींच दी और रेलगाड़ी रुक गई। यात्री उन्हें भला-बुरा कहने लगे। थोड़ी देर में गार्ड भी आ गया। विश्वेश्वरैया ने स्वीकार करते हुए बताया कि उन्होंने ही जंजीर खींची है क्योंकि यहां से कुछ दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है। सभी हैरान रह गए कि आखिर रेल में बैठे हुए इस व्यक्ति को कैसे पता चल गया कि आगे पटरी टूटी हुई है। सर मोक्षगुंडम ने बताया कि उन्होंने रेल की गति में हुए परिवर्तन से पटरी टूटी होने का अंदाजा लगा लिया था। आखिरकार पड़ताल करने पर यह बात सही पाई गई। एक जगह रेल की पटरी के जोड़ वास्तव में खुले हुए थे। यह देखकर लोगों ने उनके बारे में जानना चाहा, तो उन्होंने बताया कि मैं एक इंजीनियर हूं और मेरा नाम डॉ. एम. विश्वेश्वरैया है। 

इसे भी पढ़ें: Vinoba Bhave Birth Anniversary: गांधी जी के एक भाषण ने बदल दी विनोबा भावे की जिंदगी, ऐसा रहा उनका सफर 

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी बांध को ऊंचा किए बिना उसकी भंडारण क्षमता को कैसे बढ़ाया जा सकता है! विश्वेश्वरैया को पूना के पास स्थित खड़कवासला बांध की जलभंडारण क्षमता में बांध को ऊंचा किए बिना बढ़ोतरी के लिए ही पहली बार ख्याति मिली थी। दरअसल, बांधों की जल भंडारण स्तर में वृद्धि करने के लिए विश्वेश्वरैया ने स्वचालित जलद्वारों का उपयोग सर्वप्रथम पुणे से होकर बहने वाली मुठा नहर की बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए खड़कवासला बांध पर ही किया था। इन जलद्वारों को उन्होंने अपने नाम से पेटेंट कराया था। 

वर्ष 1883 में इंजीनियरिंग की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने वाले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का पसंदीदा विषय सिविल इंजीनियरिंग था। कॅरियर के आरंभिक दौर में ही मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने कोल्हापुर, बेलगाम, धारवाड़, बीजापुर, अहमदाबाद एवं पूना समेत कई शहरों में जल आपूर्ति परियोजनाओं पर खूब काम किया था। 

सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया एक कुशल प्रशासक भी थे। वर्ष 1909 में उन्हें मैसूर राज्य का मुख्य अभियंता नियुक्त किया गया। इसके साथ ही वह रेलवे सचिव भी थे। कृष्णराज सागर बांध के निर्माण के कारण मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का नाम पूरे विश्व में सबसे अधिक चर्चा में रहा था। इसका निर्माण स्वतंत्रता से करीब चालीस वर्ष पहले हुआ था। आज कृष्णराज सागर बांध से निकली 45 किलोमीटर लंबी विश्वेश्वरैया नहर एवं इस बांध से निकली अन्य नहरों से कर्नाटक के रामनगरम और कनकपुरा के अलावा मंड्या, मालवली, नागमंडला, कुनिगल और चंद्रपटना तहसीलों की करीब 1.25 लाख एकड़ भूमि में सिंचाई होती है। विद्युत उत्पादन के साथ ही मैसूर एवं बंगलूरू जैसे शहरों को पेयजल आपूर्ति करने वाला कृष्णराज सागर बांध सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के तकनीकी कौशल और प्रशासनिक योजना की सफलता की कहानी कहता है। 

उस समय तक विशाल बांधों जैसी संरचनाओं के सिद्धांतों को व्यापक तौर पर समझा नहीं गया था। इसलिए कृष्णराज सागर बांध के निर्माण को लेकर उनकी सबसे अधिक चिंता हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग के तत्कालीन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कावेरी नदी के पानी को रोकने की थी। विश्वेश्वरैया के लिए प्रमुख चुनौती सीमेंट के बिना बांध निर्माण करना था क्योंकि तब देश में सीमेंट निर्माण आरंभिक अवस्था में था और इसे बेहद महंगी कीमत पर आयात करना पड़ता था। लेकिन उन्होंने इस समस्या का भी समाधान खोज निकाला। 

जलाशय में पानी को नियंत्रित करने के लिए सर मोक्षगुंडम ने विशेष तकनीक का प्रयोग किया। उन्होंने बांध की दीवार के दूसरी तरफ कुएं रुपी विशेष प्रकार की गोलाकार संरचनाओं को बनाया, इनसे स्वचालित दरवाजों को जोड़ा। इन दरवाजों को बांध की दीवार के अंदर स्थापित किया गया था। बांध में उपयोग किए गए 171 दरवाजों में से 48 स्वचालित दरवाजे हैं, जिन्हें सर मोक्षगुंडम द्वारा विकसित किया गया था। सभी 48 स्वचालित दरवाजे ढलवां लोहा से बने थे, जिसका निर्माण भद्रावती स्थित मैसूर लौह एवं इस्पात कारखाने में किया गया। आश्चर्य की बात यह है कि प्रत्येक दरवाजे पर दस टन का भार होने के बाद भी ये स्वतः ऊपर-नीचे खुलते-बंद होते थे। 

जब जलाशय में जल अधिकतम स्तर पर होता था तो पानी कुएं में गिरता था, जिससे कुएं में स्थित डोंगा यानी फ्लोट ऊपर उठता था और बैलेंस भार नीचे गिरता जाता था। इससे सभी दरवाजे ऊपर उठ जाते थे। इस प्रकार अतिरिक्त पानी बांध से निकलने लगता था। जब जलाशय का स्तर कम होता था तो कुंए खाली हो जाते थे। जिससे बैलेंस भार फिर से ऊपर उठ जाता था और दरवाजे फिर से बंद हो जाते, जिससे पानी का बहाव रुक जाता था। पूरे विश्व में पहली बार ऐसी तकनीक का उपयोग किया गया था। बाद में उनकी इस तकनीक को यूरोप सहित विश्व के अन्य देशों ने भी अपनाया। 

बांध निर्माण के साथ-साथ औद्योगिक विकास में भी विश्वेश्वरैया का योगदान कम नहीं है। कावेरी पर बांध निर्माण के साथ ही उस क्षेत्र में मिलों एवं कारखानों को स्थापित किया जा रहा था। विद्युत आने से नई मशीनों से तेजी से काम हो रहा था। सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया औद्योगिक विकास के समर्थक थे। वह उन शुरुआती लोगों में से एक थे, जिन्होंने बंगलौर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में धातुकर्म विभाग, वैमानिकी, औद्योगिक दहन एवं इंजीनियरिंग जैसे अनेक नए विभागों को आरंभ करने का स्वप्न देखा था। 

विश्वेश्वरैया मैसूर राज्य में व्याप्त अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी आदि आधारभूत समस्याओं को लेकर भी चिंतित थे। कारखानों की कमी, सिंचाई के लिए वर्षा जल पर निर्भरता तथा खेती के पारंपरिक साधनों के प्रयोग के कारण विकास नहीं हो पा रहा था। इन समस्याओं के समाधान के लिए विश्वेश्वरैया ने काफी प्रयास किए। सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की दूरदर्शिता के कारण मैसूर में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया और लड़कियों की शिक्षा के लिए पहल की गई। समाज के संपूर्ण विकास के उनके कार्यों के कारण ही उन्हें कर्नाटक का भगीरथ भी कहा जाता है।

- नवनीत कुमार गुप्ता

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़