Sarojini Naidu Death Anniversary: देश की पहली महिला राज्यपाल थीं सरोजिनी नायडू, जानिए गांधीजी संग कैसे थे उनके रिश्ते
देश की पहली महिला राज्यपाल और महान कवियत्री सरोजिनी नायडू का 2 मार्च को निधन हुआ था। उनकी पहचान निडर और निर्भीक महिला के तौर पर होती थी। वह जीवन भर महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाती रहीं।
आज ही के दिन यानी की 2 मार्च को उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल और कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष सरोजिनी नायडू का निधन हुआ था। सरोजिनी नायडू ने न सिर्फ राजनीति बल्कि देश की आजादी में भी अहम भूमिका निभाई थी। उनकी पहचान निडर और निर्भीक महिला के तौर पर होती थी। वह एक लीडर होने के साथ ही महान कवियत्री भी थीं। राजनीतिक संघर्ष के अलावा सरोजिनी नायडू जीवन भर महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाती रहीं। तो आइए जानते हैं कि उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर सरोजिनी नायडू के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
हैदराबाद में 13 फरवरी 1879 को सरोजिनी नायडू का जन्म हुआ था। वह आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। सरोजिनी के पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था, जोकि बंगाली ब्राह्मण थे। वहीं उनकी मां एक कवियत्री थीं, जो बांग्ला भाषा में लिखती थीं। सरोजिनी नायडू बचपन से पढ़ने-लिखने में काफी ज्यादा होशियार थीं। वहीं कम उम्र से वह लेखन में भी रुचि लेने लगी थीं। महज 12 साल की उम्र में सरोजिनी ने फारसी में Mahr Muneer नामक नाटक लिखा था। शुरूआती शिक्षा पूरी होने के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चली गईं।
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गांधीजी से मुलाकात
अपने कॉलेज के दिनों से ही सरोजिनी नायडू महिला अधिकारों के लिए सक्रिय रहती थीं। उनका कहना था कि महिलाएं किसी भी देश की नींव होती हैं। वहीं साल 1914 में सरोजिनी नायडू के जीवन की दिशा महात्मा गांधी से मिलने के बाद बदल गई। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस ज्वॉइन कर ली, वहीं पार्टी ने सरोजिनी नायडू के काम और समर्पण को देखते हुए साल 1925 में उनको कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया। वहीं गांधीजी से सरोजिनी नायडू के रिश्ते का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि वह गांधीजी को मिकी माउस कहकर बुलाया करती थीं।
कैसर-ए-हिंद का खिताब
भारत देश 20वीं सदी की शुरूआत में प्लेग बीमारी से जूझ रहा था। इस दौरान सरोजिनी नायडू ने लोगों की खूब सेवा की। कांग्रेस नेता होने के बाद भी उनके काम को अंग्रेज सरकार ने सराहा था। वहीं साल 1928 में सरोजिनी नायडू को अंग्रेज सरकार ने 'कैसर-ए-हिंद' के खिताब से नवाजा था। जहां एक ओर अंग्रेज सरकार ने सरोजिनी नायडू को सम्मानित किया था, तो वहीं दूसरी ओर भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी सक्रियता को देख खफा हो गई और अंग्रेज सरकार ने उनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
यूपी की पहली महिला राज्यपाल
देश की आजादी के बाद साल 1947 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने सरोजिनी नायडू से उत्तर प्रदेश का राज्यपाल पद संभालने की गुजारिश की। जिसको उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस तरह से सरोजिनी नायडू ने देश की पहली महिला राज्यपाल होने का गौरव प्राप्त किया।
मौत
प्रभावी वाणी और ओजपूर्ण लेखनी के कारण सरोजिनी नायडू को 'नाइटिंगल ऑफ इंडिया' कहा गया। वहीं 02 मार्च 1949 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हार्ट अटैक से सरोजिनी नायडू का निधन हो गया।
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