Morarji Desai Birth Anniversary: बचपन में आर्थिक परेशानियों का सामना करते हुए मोरारजी देसाई ने हालात से हार नहीं मानी

Morarji Desai
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साल 1975 में मोरारजी जनता पार्टी में शामिल हो गए। 1977 में में जनता पार्टी को बहुमत मिली। लेकिन अभी भी उनका प्रधानमंत्री बनना काफी मुश्किलों भरा था। क्योंकि कि चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम भी प्रधानमंत्री पद मजबूत दावेदार थे।

भारत के चौथे प्रधानमंत्री का का जन्मदिन इस बार नहीं आएगा। क्योंकि इस बार फरवरी 29 का नही बल्कि 28 का महीना है। मोरारजी देसाई देश के इकलौते ऐसे दिग्गज नेता और प्रधानमंत्री रहे, जिनका जन्मदिन चार साल में एक बार आता था। मोरारजी गांधीवादी और स्वतंत्रत भारत के ईमानदार नेता थे। हालांकि वह न तो नेहरू जैसे करिश्माई और न ही इंदिरा गांधी जैसे चतुर और कूटनीतिक नेता थे। लेकिन उनका राजनैतिक जीवन काफी लंबा रहा। इसके अलावा वह आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के धुर-विरोधी माने जाते थे। आइए जानते हैं मोरारजी देसाई से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें...

जन्म और शिक्षा

गुजरात के भदेली गांव के एक ब्राह्मण परिवार में मोरारजी देसाई का जन्म 29 फ़रवरी 1896 को हुआ। मोरारजी देसाई के पिता रणछोड़जी देसाई भावनगर में एक स्कूल अध्यापक थे। उनकी शुरूआती पढ़ाई तभुसार सिंह हाई स्कूल में हुई। इसके बाद मोरारजी आगे की पढ़ाई मुंबई एलफिंस्टन कॉलेज में हुई। मोरारजी 8 भाई-बहन थे। परिवार बड़ा होने के कारण बचपन में इन्होंने आर्थिक परेशानियों का भी सामना किया। मोररजी को बचपन से की क्रिकेट देखने का बहुत शौक था। हालांकि उन्होंने मेच कभी नहीं खेला। आर्थिक समस्याओं से तंग आकर इनके पिता ने आत्महत्या कर ली थी। लेकिन मोरारजी ने हालात के आगे हार नहीं मानी। महज 16 साल की आयु में 1911 में मोरारजी की शादी जराबेन से हो गई।

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राजनैतिक कॅरियर

मोरारजी ने ग्रेजुएशन करने के बाद सिविल की परीक्षा पास कर साल 1918 में सिविल सर्विस शुरू कर दी। इस दौरान वह 12 सालों तक डिप्टी कलेक्टर के पद पर कार्यरत रहे। गुजरात में डिप्टी कलेक्टर के पद में कार्य के दौरान साल 1930 में वह महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के संपर्क में आने के बाद नौकरी छोड़ दी। इसके बाद वह स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में उतर गए और कांग्रेस से जुड़ गए। फिर वह बंबई राज्य के कांग्रेस मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। हालांकि घर की परिस्थितियों ने उन्हें कठोर बना दिया था। इसी कारण उनकी गिनती हठी नेताओं में की जाती थी। अक्सर गुजरात के समाचार पत्रों में उनके व्यक्तित्व को लेकर व्यंग्य छापे जाते थे।

इंदिरा गांधी के रहे धुर-विरोध

साल 1952 में वह बंबई के मुख्यमंत्री बने। वहीं नेहरू के निधन के बाद सभी लोगों को लगता था कि मोरारजी पीएम पद के मजबूत दावेदारों में से एक हैं। वहीं लाल बहादुर शास्त्री को भी लगने लगा था कि मोरारजी ही देश के अगले प्रधानमंत्री बनेंगे। लेकिन साल 1967 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मोरारजी देसाई के अलावा भी अन्य लोगों को बड़ा झटका लगा था। हालांकि इंदिरा गांधी के कार्यकाल मेंउप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया। लेकिन वह इंदिरा गांधी से इस बात के लिए हमेशा चिढ़ते थे। क्योंकि मोरारजी इंदिरा से काफी सीनियर थे। 

इसलिए उनकी इंदिरा गांधी से कभी नहीं बनी। वह हमेशा इंदिरा गांधी के काम में अड़चन डालते थे। ऐसे में इंदिरा गांधी को भी समझ आ गया था कि मोरारजी उनके लिए आगे और मुश्किलें पैदा कर सकते हैं। इसके लिए उन्होंने मोरारजी के पर काटने शुरू कर दिए। साल 1969 में जब कांग्रेस का विभाजन हुआ तो इंदिरा ने नई कांग्रेस पार्टी बनाई। इसमें मोरारजी इंदिरा गांधी के खिलाफ खेमे वाले कांग्रेसियों में थे। 

ऐसे बनें प्रधानमंत्री

साल 1975 में मोरारजी जनता पार्टी में शामिल हो गए। 1977 में में जनता पार्टी को बहुमत मिली। लेकिन अभी भी उनका प्रधानमंत्री बनना काफी मुश्किलों भरा था। क्योंकि कि चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम भी प्रधानमंत्री पद मजबूत दावेदार थे। हालांकि इस दौरान जयप्रकाश नारायण ने मोरारजी का समर्थन किया और वह प्रधानमंत्री बन गए। पीएम बनते ही मोरारजी ने कांग्रेस की शासन वाली 9 राज्यों की सरकार को भंग कर दिया और फिर से चुनाव कराए जाने की घोषणा की। हालांकि इसके लिए उन्हें काफी आलोचना का भी सामना करना पड़ा था। 

अव्यवस्थाओं की रही भरमार

जब मोरारजी देश की प्रधानमंत्री बने तो इस दौरान लगातार कई अव्यवस्थाएं देखने को मिली। जनता पार्टी वास्तव में ऐसी खिचड़ी सरकार थी, जिसमें अलग विचारधाराओं वाले मंत्री अपने तरीके से काम करना पसंद करते थे न कि सरकार के अनुसार। अर्द्धसैनिक बलों द्वारा 1979 में किए गए विद्रोह को कुचलने में काफी समय लगा। इसके बाद साल 1978-79 में कई राज्यों में सूखा पड़ने के कारण अकाल जैसी स्थिति बन गई। वहीं मोरारजी का भी किसी मंत्री पर दबाव या जोर नहीं रह गया। जिस कारण साल 1979 में मोरारजी देसाई को सरकार अल्पमत में आने के कारण 1 साल में ही अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा। 

स्वमूत्रपान 

आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन मोरारजी देसाई स्वास्थ्य की दृष्टि से अपना मूत्र स्वयं पीते थे। वह इसे उत्तम औषधी मानते थे। उन्होंने इस बात को सार्वजनिक तौर पर भी स्वीकार किया था। 

उपलब्धियां

बता दें कि मोरारजी अकेले ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें पाकिस्तान की तरफ से तहरीक़-ए-पाकिस्तान का सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान मिला था। वहीं भारत सरकार की ओर से उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

मृत्यु

मोरारजी जब देश के प्रधानमंत्री बने थे तो उस दौरान उनकी आयु 81 वर्ष थी। वह 100 साल तक जीना चाहते थे। लेकिन उनकी मृत्यु 10 अप्रैल 1995 को हो गई। इस दौरान वह 99 साल के थे। वह स्वाभिमानी, ईमानदार और कर्मठ नेता थे। हालांकि इनकी खरी-खरी बातें इन्हें स्वभाव से हठी दिखाती थीं।

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