दोनों बार अधूरा रहा गया साहिर लुधियानवी का इश्क, टूटे दिल से लिखे गीतों को पूरी दुनिया ने गुनगुनाया
साहिर लुधियानवी के दोनों इश्क भले ही मुकम्मल नहीं हो सके। लेकिन आज भी लोग उनके गीतों को गुनगुनाते हैं। साहिर ने बॉलीवुड को एक के बाद एक कई हिट गाने दिए हैं। वहीं सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार ने नवाजा था।
साहिर लुधियानवी एक ऐसे जादूगर थे, जो गीत को इस तरह से शब्दों में लिखकर पिरोते थे कि वह सीधे दिल में उतर जाते थे। आज भी साहिर की शायरी के लाखों लोग दीवाने हैं। वह हिंदी सिनेमा से करीब 3 दशक तक जुड़े रहे और सैकड़ों गीत लिख लोगों के दिलों पर राज किया। आज भी उनके द्वारा लिखे गीतों को गुनगुनाया जाता है। आपको बता दें कि इस मशहूर गीतकार और शायर का आज के दिन यानी कि 8 मार्च को जन्म हुआ था। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको साहिर लुधियानवी की जिंदगी से जुड़ी कुछ बातों को बताने जा रहे हैं।
जन्म और शिक्षा
साहिर लुधियानवी का जन्म लुधियाना के एक जागीरदार घराने में 8 मार्च 1921 को हुआ था। इनके बचपन का नाम अब्दुल हयी साहिर था। हालांकि साहिर के पिता की गिनती धनी व्यक्तियों में होती थी, लेकिन पिता के साथ अलगाव के कारण उन्हें बचपन गरीबी में गुजारना पड़ा। साहिर ने अपनी शुरूआती पढ़ाई लुधियाना के खालसा हाई स्कूल से की। वहीं आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने लुधियाना के चंदर धवन शासकीय कॉलेज में एडमिशन लिया। यहीं पर वह अपनी शायरी और गजलों के कारण खूब फेमस हुए।
पूरी नहीं हुई मोहब्बत
एक ऐसा गीतकार जिसके गीतों ने मोहब्बत की गहराई को दुनिया के सामने एक अलग तरीके से पेश किया। वहीं उनके गीतों ने हर इश्क करने वाले के दिल का हाल बयां किया। लंबे समय तक साहिर की कलम से सदाबहार गीत निकले, जिन्हें आज भी गुनगुनाया जाता है। कॉलेज में अपनी शायरी से मशहूर साहिर की कलम की जादू उनके कॉलेज में पढ़ने वाली अमृता प्रीतम पर भी चला। लेकिन अमृता के घरवालों को उनकी मोहब्बत रास नहीं आई। जिसका कारण यह था कि साहिर मुस्लिम धर्म से ताल्लुक रखते थे। अमृता के पिता के कारण साहिर को कॉलेज से निकाल दिया गया। इसके बाद वह साल 1943 में लाहौर आ गए और यहां पर वह मैगजीन संपादक के रूप में काम करने लगे। लेकिन मैगजीन में छपी एक रचना को सरकार के विरूद्ध बताकर उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया गया। जिसके बाद साहिर लुधियानवी साल 1949 में भारत आ गए।
फिल्मी सफर
साल 1948 से साहिर ने फिल्म आजादी की राह में उन्होंने काम करना शुरू किया। वहीं साल 1951 में साहिर को नौजवान के गीत 'ठंडी हवाए लहरा के आए' से मशहूर हुए। इसके बाद 1957 में आई नया दौर फिल्म का गाना 'आना है तो आ', साल 1976 में फिल्म कभी कभी का गाना मैं पल दो पल का शायर हूं हो, साल 1970 में फिल्म नया रास्ता का गाना ईश्वर अल्लाह तेरे नाम और साल 1961 में फिल्म हम दोनों का गाना अभी ना जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं लिखा। उनके गीतों और शायरियों में उनके तल्ख रिश्ते की संजीदगी दिखती थी।
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इसके बाद साहिर ने बाजी, प्यासा, फिर सुबह होगी, कभी कभी जैसी फिल्मों के लिए गीत लिखे। साहिर की जिंदगी में एक बार फिर मोहब्बत की एंट्री हुई और इस बार उन्हें सुधा मल्होत्रा से इश्क हुआ। लेकिन इस बार भी उनका इश्क अधूरा रह गया। आपको बता दें कि साहिर ने आजीवन शादी नहीं की। उनके लिखे गानों में भी उनका व्यक्तित्व झलकता है। वह पहले ऐसे गीतकार थे। जनको गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी।
उपलब्धियां
भारत सरकार ने साल 1971 में साहिर लुधियानवी को पद्मश्री पुरस्कार ने नवाजा था। साहिर को फिल्म ताजमहल के गाने जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा और साल 1977 में कभी-कभी फिल्म के गाने 'कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है' के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था।
मृत्यु
साहिर लुधियानवी को 25 अक्टूबर 1980 को दिल का दौरा पड़ने से 59 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। साहिर भले ही आज हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनके लिखे गीतों को आज भी सुना और गाया जाता है। साहिर ने अपने कलम से निकले शब्दों को कुछ इस तरह से गीतों में पिरोया कि आज भी लोग उनके प्रशंसक हैं।
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