Rabindranath Tagore Birth Anniversary: जनगण के महाकवि थे गुरु रविंद्र नाथ टैगोर
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा वे ही थे।
महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर को जनगण का कवि कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। गुरुदेव टैगोर दुनिया के एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनके लिखे दो गीत दो देशों के राष्ट्रगान बने हैं। उनका लिखा गीत जन गण मन भारत का राष्ट्रीय गान बना है। वही उनका लिखा एक दूसरा गीत आमार सोनार बांग्ला बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान है। दुनिया में गुरुदेव जैसे विरले ही लोग होते हैं जिन्हें इतना बड़ा सम्मान मिला है। जिनके लिखे गीत दो देशों के राष्ट्रगान बनकर अमर हो गए। भारत और बांग्लादेश में जब भी कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम होता है तो गुरुदेव टैगोर द्वारा लिखित गीत राष्ट्रीय धुन के रूप में गाए जाते हैं। गुरुदेव के लिखे इन गीतों के माध्यम से उन्हें हर समारोह में याद किया जाता है।
ऐसा कोई भी भारतीय नहीं होगा जो रविंद्रनाथ टैगोर को नहीं जानता होगा। राष्ट्रीय कवि रविंद्रनाथ टैगोर ऐसी शख्सियत थे जिन्होने कई कविताएं, उपन्यास, कहानी लिख कर साहित्य के विभिन्न विद्याओं में अपनी उत्कृष्ट योगदान देकर संसार भर में ख्याति प्राप्त की। रविंद्रनाथ टैगोर ने अपनी रचना से ना केवल हिंदी साहित्य के विकास में योगदान दिया। बल्कि अनेकों कवियों और साहित्यकार को भी प्रोत्साहित किया है। वह एक ऐसे प्रकाश स्तंभ थे जिन्होंने पूरे संसार को अपनी रचनाओं के माध्यम से आलोकित किया।
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा वे ही थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। रवींद्रनाथ टैगोर एक कवि, उपन्यासकार, नाटककार, चित्रकार, और दार्शनिक थे। गुरूदेव रविंद्रनाथ जी की रचनाओं की यही विशेषता थी कि वह अपनी रचनाओं में मानवीय दुखों और निर्बलता को बहुत ही कलात्मक ढंग से लिखते थे। अपनी सभी रचनाओं को मन और आत्मा से लिखते थे। यही कारण है कि उनकी ज्यादातर रचनाएं विश्व प्रसिद्ध हो गई।
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वे अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे। उनका जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ था। उनके पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी थीं। रवींद्रनाथ टैगोर जी अपनी शुरुआत की पढ़ाई कोलकाता में प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल की। उन्होंने बैरिस्टर बनने की इच्छा में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम लिखाया। फिर लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया। किन्तु 1880 में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश पुनः लौट आए। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ। टैगोर की माता का निधन उनके बचपन में हो गया था और उनके पिता व्यापक रूप से यात्रा करने वाले व्यक्ति थे। अतः उनका लालन-पालन अधिकांशतः नौकरों द्वारा ही किया गया था। टैगोर के भाई सतेंद्र टैगोर सिविल परीक्षा पास करके एक अच्छी नौकरी करते थे और दूसरे भाई ज्योतिरेंद्रनाथ संगीतकार और नाटक के कवि थे।
हिंदी साहित्य में टैगोर का योगदान बहुत ही बड़ा और अविस्मरणीय है। मात्र 13 साल की उम्र में ही रविंद्र नाथ टैगोर जी की पहली कविता अभिलाषा एक तत्व भूमि नाम की पत्रिका में छपी थी। इंग्लैंड से वापस आने के बाद इन्होंने बंगाली भाषा में लिखना शुरू कर दिया था। 1877 तक उन्होंने अनेकों रचनाएं की और कई रचनाएं अनेकों पत्रिकाओं में छपी। 1842 में रविंद्र नाथ टैगोर जी ने हिंदू मुस्लिम - एकता और घरेलू उद्योगों के विषय पर एक गंभीर लेख लिखा। 1860 में इन्होंने पहला उपन्यास गोरा लिखा। रविंद्र नाथ जी एक अच्छे लेखक के साथ-साथ एक अच्छे दर्शन शास्त्री भी थे। जिसके माध्यम से इन्होंने कई रचनाओं का निर्माण किया और स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान बड़ी संख्या में भारतीय लोगों को प्रभावित किया।
बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ भी रविंद्र नाथ टैगोर के द्वारा ही लिखा गया है। अपनी असरदार लेखन से पूरब और पश्चिम के बीच की भी दूरी को कम कर दिया। रविंद्र नाथ टैगोर ज्यादातर बंगाली लोगों के जीवन पर आधारित रचनाएं लिखते थे। इन्होंने अपने कई रचनाओं में समाज के तत्कालीन कुरीतियों, गरीबी और विभिन्न अवस्थाओं का भी चित्रण किये हैं। इनकी रचना गलपगुच्छा में भारत के गरीबी, निरक्षरता और पिछड़ापन पर आधारित अनेकों कहानियों का संग्रह है।
उनकी एक रचना पूरवी में इन्होंने संस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक, नैतिक और सामाजिक जैसे बहुत सारे विषयों के तहत संध्या और सुबह के गीतों को दर्शाया है। इन्होंने ना केवल अपनी लेखन के जरिए समाज की कुरीतियों को मिटाने की कोशिश की बल्कि स्वयं भी योगदान दिया। अपनी प्रथम पत्नी के देहांत के बाद इन्होंने मृणालिनी देवी नाम की एक विधवा औरत से विवाह किया और समाज में विधवा औरतों की खराब स्थिति को दूर करके विधवा विवाह को प्रोत्साहित करने की कोशिश की।
इसके अतिरिक्त इन्होंने कल्पना, सोनार तारी, गीतांजलि, आमार सोनार बांग्ला, घेर-बेर, रबीन्द्र संगीत, चित्रांगदा, मालिनी, गोरा, राजा और रानी जैसे ना जाने कितने ही उपन्यास, कविता और लघु कथाओं की रचना की। 1913 में इनकी रचना गीतांजलि के लिए इन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। रविंद्र नाथ टैगोर बड़े साहित्यकार होने के साथ ही एक महान शिक्षा शास्त्री भी थे। इन्हें शिक्षा का सही अर्थ मालूम था। इनके अनुसार सर्वोत्तम शिक्षा वही है, जो संपूर्ण दुनिया के साथ-साथ हमारे जीवन का भी सामंजस्य स्थापित करती है। इनके अनुसार शिक्षा मनुष्य की शारीरिक, आर्थिक, बौद्धिक, व्यवसाय और आध्यात्मिक विकास का आधार है।
रविंद्र नाथ टैगोर मानते थे कि बच्चों को बंद कमरे में शिक्षा देने से ज्यादा अच्छा है। उन्हें खुले वातावरण में प्रकृति के बीच में बिठाकर शिक्षा दें। उनका मानना था कि प्रकृति के शांति भरे वातावरण में बच्चे प्रकृति का अवलोकन कर सकते हैं और उसका एक हिस्सा बन सकते हैं। ऐसे माहौल में आसानी से सब कुछ समझ में आता है। मिट्टी पर खड़े पेड़ पौधे, बदलते मौसम, पंछियों का चहचहाना, विभिन्न जीव जंतुओं से भरे प्राकृतिक परिवेश बच्चों को कला की प्रेरणा देती है। इसीलिए इन्होंने कोलकाता शहर से 180 किलोमीटर दूर 1901 को शांतिनिकेतन की स्थापना की। उन्होंने सिर्फ 5 बच्चों को लेकर ये स्कूल खोला था जो 1921 में राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बन गया। आज शांति निकेतन का नाम बदलकर विश्वभारती हो गया हैं। जहां लगभग 6000 छात्र पढ़ते हैं।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करते हुए “सर” की उपाधि लोटा दी थी। उन्हें बिट्रिश प्रशासन 1915 में “नाइट हुड” नाम से ये उपाधि देना चाहते थे। उनके नाम के साथ सर लगाया गया था। टैगोर ने जलियावाला हत्याकांड की बजह से अंग्रेजों के दिए इस सम्मान को लेने से इनकार कर दिया था। इससे पहले भी 16 अक्टूबर 1905 को रवीन्द्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में कोलकाता में मनाये गए रक्षाबंधन उत्सव से “बंग भंग” आंदोलन की शुरुआत हुई थी। उनका देश की आजादी के सघंर्ष में भी बहुत योगदान था।
रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)
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