नीम करोली बाबा के चमत्कार के कई किस्से हैं मशहूर लेकिन ट्रेन वाला किस्सा सुनकर रह जाएंगे दंग
उत्तर प्रदेश के अकरबरपुर गांव में जन्में नीम करोली बाबा का असल नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। जिनका विवाह महज 11 साल की उम्र में ही हो गया था और उन्हें 17 साल की उम्र में ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। तकरीबन साधुओं की भांति पूरे देश में भ्रमण करने वाले बाबा के अनुयायी देश-विदेश सभी जगह पर हैं।
परिवर्तन ही एकलौती चीज है जो अपरिवर्तित है। बाकी सृष्टि में सबकुछ बदलता है। कहा तो यह भी जाता है कि अगर नीम करोली बाबा नहीं होते तो हमारे हाथों में आईफोन नहीं होता। जिसका इंतजार यूजर्स सालभर करते हैं। खैर आज आईफोन की बात नहीं करेंगे हम बात करेंगे नाम करोली बाबा की। जिनके चमस्कार के कई किस्से मशहूर हैं। हालांकि उन्होंने 11 सितंबर, 1973 को वृंदावन में अपना शरीर का त्याग किया था। बताया जाता है कि बाबा के आश्रम में सबसे ज्यादा अमेरिकी ही आते हैं।
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कम उम्र में हो गया था विवाह
उत्तर प्रदेश के अकरबरपुर गांव में जन्में नीम करोली बाबा का असल नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। जिनका विवाह महज 11 साल की उम्र में ही हो गया था और उन्हें 17 साल की उम्र में ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। तकरीबन साधुओं की भांति पूरे देश में भ्रमण करने वाले बाबा के अनुयायी देश-विदेश सभी जगह पर हैं। एपल कंपनी के सह संस्थापक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के सीईओ संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, गायक जय उत्तल और अभिनेत्री जूलिया राबर्टस जैसी हस्तियों के प्रेरणास्रोत रहे हैं।
1958 में त्याग दिया था घर
नीम करोली बाबा ने साल 1958 में अपने घर का त्याग कर दिया था और फिर जगह-जगह साधुओं की भांति विचरण करने लगे थे। लेकिन एक दिन पिता दुर्गा प्रसाद शर्मा उनसे मिलने आए और घर वापस लौटने का आदेश दिया। जिसके बाद उन्होंने गृहस्थ जीवन के साथ-साथ आध्यात्मिक, सामाजिक और धार्मिक कार्यों में जुटे रहे।
कैसे पड़ा था उनका नाम
नीम करोली बाबा नाम के पीछे एक कहानी है। जो काफी दिलचस्प है। दरअसल, वो एक बार भारतीय रेल की फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे और उनके पास टिकट भी नहीं था। ऐसे में टीसी आ गया और उनसे टिकट मांगने लगा लेकिन उनके पास टिकट तो थी ही नहीं। जिसके बाद टीसी ने उन्हें 'नीम करोली' नामक स्टेशन पर उतार दिया।
बाबा ने नीम करोली नामक स्टेशन पर ही चिपटा गड़ाकर बैठ गए। जिसके बाद टीसी ने ट्रेन को चलाने का निर्देश दिया लेकिन ट्रेन आगे ही नहीं बढ़ पा रही थी। लोको पायलट लगातार कोशिश करता रहा लेकिन थक हार गया। तब बाबा को जानने वाले लोकल मजिस्ट्रेट ने टीसी को बाबा से माफी मांगने को कहा।
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जिसके बाद टीसी ने बाबा से माफी मांगी और उन्हें सम्मानपूर्वक ट्रेन में आने का आग्रह किया। बाबा जैसे ही ट्रेन में पहुंचे, ट्रेन चल पड़ी। इसी घटना के बाद ही उनका नाम 'बाबा नीम करोली' पड़ गया।
यहां मुरादें होती हैं पूरी
उत्तराखंड के नैनीताल के पास पंतनगर में नीम करोली बाबा का समाधि स्थल है। कहा जाता है कि अगर यहां पर कोई अपनी मुराद लेकर पहुंचता है तो बाबा उसे खाली हाथ नहीं लौटने देते हैं। इस स्थान पर हनुमान जी की भव्य मूर्ति के साथ-साथ बाबा की भी एक मूर्ति है।
- अनुराग गुप्ता
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