सामाजिक कार्यों के लिए नानाजी देशमुख ने छोड़ी दी थी राजनीति, गरीबी में कटा था बचपन

Nanaji Deshmukh
Prabhasakshi

नानाजी देशमुख को आधुनिक भारत का चाणक्य कहा गया है। उन्होंने बचपन में अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए सब्जी बेचकर पैसे जुटाए। उन्हीं के प्रयासों से आरएसएस की 250 से ज्यादा शाखाएं खुलीं। आज ही के दिन नानाजी का निधन हुआ था।

देश के महान व्यक्तियों में से नानाजी देशमुख एक थे। मुख्यरूप से नानाजी को एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने देश में फैली कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए कई कार्य किए। ग्रामीण क्षेत्र को नानाजी ने करीब से देखा था और उनके विकास के लिए भी कई कार्य किए। नानाजी ने ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों को नई राह दी। बता दें कि नानाजी देशमुख का निधन आज ही दिन यानी की 27 फरवरी को हुआ था। देश-विदेश में उन्हें काफी सम्मान भी मिला। वहीं साल 2019 में नानाजी देशमुख को सबसे बड़ा पुरुस्कार भारत रत्न से नवाजा। आइए जानते हैं नानाजी देशमुख के बारे में...

जन्म 

हाराष्ट्र के छोटे से गाँव में 11 अक्टूबर 1916 को नानाजी देशमुख का जन्म हुआ था। नानाजी एक गरीब मराठी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने अपने बचपन में काफी गरीबी देखी थी। वहीं उनके परिवार को रोज खाना जुटाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। बता दें कि छोटी उम्र में ही नानाजी के सिर से माता-पिता का साया उठ गया था। उनके मामा ने नानाजी को पाला था। लेकिन नानाजी बचपन से ही किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने छोटी सी उम्र से सब्जी बेचने का काम किया था। कई बार वह पैसे कमाने के लिए घर से निकल जाया करते थे। कुछ समय उन्होंने मंदिर में भी रह कर गुजारा किया है।

शिक्षा

नानाजी देशमुख को पढ़ने का शौक था। गरीबी होने और पैसे की कमी कभी उनकी इच्छा के आड़े नहीं आई। उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए खुद मेहनत कर पैसे जुटाए और अपनी शिक्षा जारी रखी। बता दें कि उन्होंने राजस्थान के सीकर जिले से हाईस्कूल पास किया। इस दौरान उनको पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप भी मिली थी। इसी समय उनकी मुलाकात डॉक्टर हेडगेवार से हुई। डॉक्टर हेडगेवार स्वयंसेवक संघ के संस्थापक भी थे। उन्होंने नानाजी को संघ में शामिल करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद नानाजी 1937 में बिरला कॉलेज में दाखिला ले लिया और संघ भी ज्वाइन कर लिया। नानाजी ने वर्ष 1939 में संघ शिक्षा के लिए 1 साल का कोर्स किया।

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संघ के मुख्य कार्यकर्ता 

नानाजी लोकमान्य तिलक जी को अपना आदर्श मानते थे। देश सेवा के लिए उन्होने अपने आपको समर्पित कर दिया था। साल 1940 में हेडगेवार जी की मृत्यु के बाद नानाजी ने उत्तर प्रदेश का रुख किया। यहां पर गोऱखपुर और आगरा में उन्होंने प्रचारक के रूप में कार्य किया। इस दौरान उनके पास पैसे का बहुत अभाव था। जहां भी रुकते वहां से तीन दिन बाद उन्हें निकलने के लिए कह दिया जाता। साल 1943 तक नानाजी ने बहुत मेहनत की। जिसका नतीजा यह निकला कि यूपी में 250 संघ शाखा बन गई थी। 

देश की आजादी के बाद 1947 में आरएसएस ने राष्ट्र की सही जानकारी देश की आम जनता के बीच पहुंचाने के लिए अपनी खुद की पत्रिका और समाचार पत्र करने पर विचार किया। हालांकि उस दौरान संघ के पास भी पैसों की तंगी थी। लेकिन उसके बाद भी स्वदेश नाम से समाचार पत्र और राष्ट्रधर्मं एवं पांचजन्य नामक पत्रिकाएं निकाली जाने लगीं। उसी दौरान 1948 में नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी। उस दौरान नाथूराम गोडसे को आरएसएस का व्यक्ति बताया जा रहा था। जिस कारण संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लेकिन नानाजी ने अपनी सूझबूझ से इसका तोड़ निकाला और प्रकाशन का कार्य पहले की तरह चलता रहा।

राजनैतिक सफर 

- साल 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संघ के साथ मिल कर भारतीय जन संघ की स्थापना की। जिसे आज के समय में हम भारतीय जनता पार्टी के नाम से जानते हैं। इस पार्टी के प्रचार के लिए नानाजी को चुना गया। 

- विनोबा भावे द्वारा शुरू किये गए भू दान आन्दोलन में भी नानाजी ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। नानाजी को शांत और नम्र स्वभाव का इंसान माना जाता था। वह सभी से बड़ी विनम्रता से बात करते थे।

- वहीं इंदिरा गांधी की सरकार में जब देश में आपातकाल लगाया गया। उस दौरान भी नानाजी ने तमाम लोगों की मदद की। बाद में उनके कार्यों की तारीफ प्रधानमंत्री बने मुरारजी देसाई ने भी की थी।

- यूपी के बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र से साल 1977 में नानाजी बीजेएस पार्टी की तरफ से चुनाव में उतरे थे। इस दौरान उनको शानदार जीत मिली थी। 

- साल 1980 में नानाजी ने राजनीति छोड़कर सामाजिक और रचनात्मक कार्य करने का फैसला लिया।

- जनता पार्टी के गठन के दौरान नानाजी देशमुख ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर पार्टी की रूपरेखा तैयार की थी। 

मृत्यु 

साल 27 फरवरी 2010 में नानाजी की 93 साल की उम्र में निधन हो गया। बता दें कि चित्रकूट में नानाजी के द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय में ही उनका निधन हुआ था। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। लेकिन इलाज के लिए वह चित्रकूट नहीं छोड़ना चाहते थे। नानाजी ने निर्णय लिया था कि वह अपना देह दान करेंगे। उनके निधन के बाद दधीचि देहदान संस्थान शरीर दान दे दिया गया था।

उपलब्धियां

साल 1999 में नानाजी को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 

2019 में नानाजी को भारत रत्न देने का फैसला लिया गया।

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