Gulzarilal Nanda Birth Anniversary: दो बार कार्यवाहक पीएम रहे गुलजारी लाल नंदा, मुश्किलों में बीते थे जीवन के अंतिम दिन

Gulzarilal Nanda
Prabhasakshi

आज ही के दिन यानी की 4 जुलाई को दो बार देश के कार्यवाहक पीएम रहे गुलजारी लाल नंदा का जन्म हुआ था। गुलजारी लाल नंदा गांधीवादी नेता के रूप में जाने जाते हैं। राजनीति में आने से पहले वह शिक्षण कार्य से जुड़े थे।

आजकल के राजनेताओं की ईमानदारी को लेकर भले ही कई तरह के सवाल खड़े किए जाते हैं। लेकिन पहले के राजनेताओं में ऐसी बात नहीं थी। आज के समय में आपको MLA-MP से लेकर पंचायतों के प्रधान तक कई ऐसे नेता मिल जाएंगे। जिनकी संपत्ति साल दर साल रॉकेट की गति से आसमान छूती दिखे। लेकिन देश ने राजनीति का एक दौर ऐसा भी देखा, जब देश के पीएम पद पर रहने के बाद भी राजनेता अपने लिए अदद घर नहीं बनवा सके। देश के इस पीएम ने अपने परिवार के किसी भी व्यक्ति को अपने रसूख का लाभ नहीं लेने दिया। देश के एक पीएम ऐसे भी रहे, जिन्हें राजनीति के रत्नों में से एक माना जाता है। हम बात कर रहे हैं गुलजारी लाल नंदा के बारे में। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 4 जुलाई को गुलजारी लाल नंदा का जन्म हुआ था। वह देश के दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे। 

जन्म और शिक्षा

गुलजारीलाल नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 को सियालकोट में हुआ था। इनके पिता का नाम बुलाकी राम नंदा था। वहीं उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा सियालकोट और लाहौर से पूरी की। बाद में आगे की पढ़ाई के लिए वह इलाहाबाद आ गए। इलाहाबाद से गुलजारीलाल ने कला संकाय में पोस्ट ग्रेजुएशन किया था। इलाहाबाद से उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की। जिस दौरान उन्होंने राजनीति में कदम रखा, उस दौरान वंशवाद का काफी बोलबाला था। लेकिन नंदा के पिता ने अपने बेटे को राजनीति में नहीं आने दिया। 

इसीलिए राजनीति में आने से पहले वह शिक्षण कार्य किया करते थे। इस दौरान वह मुंबई के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के लेक्चरर बने। इसके बाद साल 1922 से 1946 तक वह अहमदाबाद की टेक्सटाइल इंडस्ट्री में लेबर एसोसिएशन के सेक्रेट्री भी रहे। साल 1932 में गुलजारीलाल नंदा ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में हिस्सा लिया। वहीं साल 1942-44 में वह भारत छोड़ो आंदोलन के समय़ उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।

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जब बुलाया गया दिल्ली

गुलजारीलाल नंदा मुंबई विधानसभा के दो बार सदस्य भी रहे थे। पहली बार वह साल 1937 से 1939 तक विधानसभा के सदस्य रहे और दूसरी बार साल 1947 से 1950 तक विधायक चुने गए थे। इस दौरान नंदा के पास श्रम एवं आवास मंत्रालय का कार्यभार था। वहीं साल 1947 में उनकी देखरेख में इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना हुई। गुलजारीलाल नंदा ने मुंबई सरकार में रहते अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन ऐसा किया कि उनके प्रदर्शन को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें दिल्ली बुला लिया।

साल 1950-1951, 1952-1953 और 1960-1963 में गुलजारीलाल नंदा भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे। वहीं भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में भी नंदा का काफी अहम योगदान रहा। तब देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू थे। इस दौरान नंदा योजना मंत्रालय में करीब साल भर तक रहे। इसके बाद साल 1964 तक वह केंद्रीय मंत्री के पद पर भी रहे।

दो बार रहे कार्यवाहक प्रधानमंत्री

गुलजरीलाल नंदा दो बार देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनें। हालांकि दोनों ही मौके दुखद परिस्थितियों के कारण आए थे। पहली बार देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू के निधन पर नंदा देश के कार्यवाहक पीएम बनें। वहीं दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री के निधन पर दूसरी बार नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री का दायित्व सौंपा गया था। नंदा का पहला कार्यकाल 27 मई 1964 से 9 जून 1964 तक रहा। वहीं उनका दूसरा कार्यकाल 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966 तक रहा। 

जब पेंशन लेने से कर दिया मना

गांधीवादी गुलजारी लाल नंदा दो बार भारत के कार्यवाहक-अंतरिम प्रधानमंत्री रहे और एक बार विदेश मंत्री बने। बता दें कि आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के समर्थकों में शुमार नंदा का आखिरी समय काफी मुश्किलों में बीता था। उन्होंने अपना अंतिम समय किराए के मकान में गुजारा था। स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर नंदा को 500 रुपए की पेंशन स्वीकृत की गई थी। लेकिन उन्होंने पेंशन लेने से इंकार कर दिया और कहा कि आजादी की लड़ाई उन्होंने पेंशन के लिए नहीं लड़ी थी। हालांकि बाद में मित्रों ने उन्हें यह कहते हुए समझाया कि अगर वह पेंशन नहीं लेगें तो किराया कहां से देंगे। जिसके बाद नंदा ने पेंशन कुबूल की थी। 

मकान-मालिक ने खाली करवा लिया था घर

प्राप्त जानकारी के अनुसार, किराया बाकी रहने के कारण एक बार मकान मालिक ने गुलजारी लाल नंदा को घर से निकाल दिया था। जब यह खबर अखबार में छपी तो अमला मौके पर पहुंचा। तब जाकर मकान मालिक को अपनी भूल का एहसास हुआ। नंदा के बारे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि राजनीति में अच्छे पदों पर रहने के बाद भी उन्होंने अपने लिए घर तक नहीं बनाया। वह वाकई में राजनीति के रत्न थे।

लेखन में भी थी रुचि

गुलजारी लाल नंदा न सिर्फ एक अच्छे राजनीतिज्ञ बल्कि एक अच्छे लेखक के तौर पर भी जाने जाते थे। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की। जिसमें से अप्रोच टू द सेकंड फाइव इयर प्लान, गुरु तेगबहादुर, संत एंड सेवियर, सम आस्पेक्ट्स ऑफ खादी, हिस्ट्री ऑफ एडजस्टमेंट इन द अहमदाबाद टेक्सटाइल्स, फॉर ए मोरल रिवोल्युशन, सम बेसिक कंसीड्रेशन आदि शामिल हैं। 

सम्मान

गुलजारी लाल नंदा को अच्छे राजनेता और लेखक के रूप में कई अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। साल 1997 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इसके बाद उन्हें सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

निधन

दो बार देश के कार्यवाहक रहे गुलजारी लाल नंदा का 15 जनवरी 1998 को 100 साल की उम्र में निधन हो गया था। आज भी गुलजारी लाल नंदा को गांधीवादी नेता के रूप में याद किया जाता है।

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