लोकगायिका शारदा सिन्हा न ठुकरा दिए थे तमाम सियासी ऑफर

Sharda Sinha
ANI

शारदा सिन्हा न सिर्फ भोजपुरी समाज में, बल्कि समूची संगीत बिरादरी की अमूल्य धरोहर थीं। जब लीन होकर पूरे मदहोश में वह गाती थी तो ऐसा लगता था कि उनके कंठ में स्वंय सरस्वती बैठी हुई हैं। जाते वक्त भी उन्होंने अपने भीतर दैवीय शक्ति होने का एहसास करा गईं।

......पहिले-पहिले करेनी छठ, मईया बरस तोहार, करिह क्षमा हे छठी मईया भूलचूक हमार...। संपूर्ण मैथली-भोजपुरी समाज के अलावा समूचे संसार के लिए शारदा सिन्हा का विसर्जन गहरा आघात है। उनके बगैर भविष्य में कैसे होगी ‘छठ पूजा’, ऐसी कल्पना मात्र से लोग अभी से परेशान हैं। पूर्वांचल की बगिया से कोयल के उड़ जाने जैसा है स्वर कोकिला शारदा सिन्हा का नश्वर दुनिया को अलविदा कह देना। विशेषकर पूर्वांचल और छिटपुट पूरे संसार में मनाए जाने वाले छठ पर्व पर व्रती महिलाएं उनके गीत सुनकर न सिर्फ उपवासन होती थी, बल्कि अपनेपन का मर्मस्पर्श भी किया करती थीं। दिल्ली से लेकर मुंबई, मॉरीशस, अमेरिका, लंदन और जहां-जहां पूर्वांचली समुदाय के लोग रहते हैं, उन छठ घाटों पर अगर शारदा सिन्हा के गाने न बजे, तो वह सूने लगते थे। बीच छठ में शारदा सिन्हा के चले जाना भी सभी को अखर रहा है। दरअसल उनकी आवाज इस महापर्व को सजीव किया करती थी। 

शारदा सिन्हा न सिर्फ भोजपुरी समाज में, बल्कि समूची संगीत बिरादरी की अमूल्य धरोहर थीं। जब लीन होकर पूरे मदहोश में वह गाती थी तो ऐसा लगता था कि उनके कंठ में स्वंय सरस्वती बैठी हुई हैं। जाते वक्त भी उन्होंने अपने भीतर दैवीय शक्ति होने का एहसास करा गईं। छठ में उनका जाना इस बात का सीधा-सीधा संकेत देता है? वह जब तक धरती पर रहीं, धरा को संगीत से सराबोर करती रहीं, अब भगवान के चरणों में पहुंची हैं, भगवान भी खुश होंगे। इसलिए जब तक धरती रहेगी और छठ पर्व का वजूद रहेगा, उनके होने का एहसास सभी को होता रहेगा। देशी और पांरपरिक लोक संस्कृति की मूर्ति शारदा सिन्हा सदैव लोगों के दिलों में रची-बसी रहेंगी। निश्चित रूप से स्वर कोकिला शारदा का यूं चले जाना गीत-संगीत की सुमधुर दुनिया को दूसरा बड़ा असहनीय आघात है। पहला आघात लताजी के जाने से हुआ था। जब लताजी ने दुनिया छोड़ी, तो ऐसा लगा कि संगीत का संपूर्ण कालखंड ही अनाथ हो गया। 5 नवंबर की देर रात जब भोजपुरी कोकिला एवं गायकी की समद्व परंपरा कहे जानी वाली शारदा सिन्हा के न रहने की खबर आई, तो संसार चलते-चलते अचानक से ठहर गया। 

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संगीत की दुनिया में शारदा का न रहना, 'कोयल बिना न सोभे बगिया', जैसा माना जाएगा। शारदा सिन्हा बड़ा खुशहाल और बाइज्जत जीवन जीके गईं हैं। उनका इस धरती पर अवतरण होना भी दैवीय चमत्कार जैसा ही रहा। आठ भाईयों के बाद वह जन्मीं। घर में सबकी लाडली-दुलारी हुआ करती थीं। माता-पिता ने बड़ी मन्नतें की थी कि उनके घर में किसी लक्ष्मी का आगमन हो? शारदा सिन्हा के रूप में उनकी इच्छा पूरी हुई। जन्म 1 अक्टूबर 1952 को हुआ था। जन्म के दो वर्ष के भीतर ही उन्होंने गाना गुनगुनाना आरंभ कर दिया था। 15 वर्ष में उनकी खनकती आवाज के दीवाने लोग हो गए थे। जब उनकी शादी हुई, तो सास को कतई पसंद नहीं था कि उनकी बहू गाना-बाना गांए। लेकिन नियति को शायद ये ही पसंद था। भारी विरोध के बाद भी उन्होंने अपना गायन यथावत रखा। जब देश-विदेश से प्रशंसाएं मिलने लगी, तो सास ने भी कह दिया, बहू तुम अच्छा गाती हो, गाती रहो। शारदा सिन्हा के दो बच्चे हैं, जिनमें एक बेटा अंशुमन सिन्हा और एक बेटी वंदना। शारदा के पति ब्रज किशोर सिन्हा का निधन भी इसी वर्ष हुआ। उनके जाने के बाद से वह पूरी तरह टूट गई थीं। 

नई दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में मंगलवार देर रात जब उनके न रहने की खबर टीवी के जरिए उनके असंख्य प्रशंसकों ने सुनी, तो उनकी आंखें नम हो गईं। निधन के एक दिन पहले ही खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके बेटे अंशुमान सिन्हा को फोन करके स्वास्थ्य जानकारी ली थी। अब, न रहने की खबर ने उन्हें भी दुखी कर दिया है। राष्ट्रपति से लेकर विपक्षी नेता राहुल गांधी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे समेत देशभर तमाम नेताओं ने दुख प्रकट किया है। दरअसल वो थी ही सभी की चहेती।

अस्सी-नब्बे दशक का वह दौर, जब उनके भजन और फिल्मी गानों का बोलबाला था। सलमान खान और भाग्यश्री अभिनीत फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ में गाया गाना ....‘कहे तोसे ये तोहरी सजनिया’ ....इतना फेमस हुआ कि उन्हें रातोंरात बड़ा फिल्मी सिंगर बना दिया, उसके बाद तो फिल्मी गानों की डिमांड एकाएक बढ़ गई। शारदा सिन्हा को राजनीति के ऑफर भी बहुतेरे मिले। शायद ही कोई ऐसा छोटा-बड़ा सियासी दल न हो, जिन्होंने उनको अपने यहां आने का निमत्रंण न दिया हो? लेकिन शारदा सभी ऑफरों को सहश्र ठुकराती गईं। कई मर्तबा उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा भी कि उन्हें राजनीति बिल्कुल पसंद नहीं? समाज ने उन्हें छठ कोकिला की उपाधि दे रखी थी जिसे वह सबसे बड़ा सम्मान ताउम्र मानती रहीं। छठ पर अपनी मीठी आवाज से संगीत प्रेमियों की जुबान पर ऐसे चढ़ीं, कि कभी उतर ही नहीं पाई। 

छठी के गानों के अलावा भी उन्होंने विभिन्न भाषाओं में एक से एक हिट गाने दिए। देश के सर्वोच्च सम्मान से भी उन्हें केंद्र सरकार ने नवाजा। शारदा का जन्म बिहार के जले सुपौल के हुलास गांव में हुआ था। विवाह बेगुसराय में हुआ। वह गायिका के साथ-साथ प्रोफेसर भी रहीं। बीएड की पढ़ाई के अलावा उन्होंने म्यूजिक स्टृम में पीएचडी करके समस्तीपुर के एक कॉलेज में प्रोफेसर बनीं। पर, उनकी रूचि सदैव गायिकी में ही रही। कॉलेज से रिटायर होने के बाद भी उन्होंने संगीत की फ्री शिक्षा देना जारी रखा। उनके न रहने से एक युग का अंत हुआ है। उनकी जगह कोई नहीं ले सकता। उनकी मीठी, मधुर, सुरीली आवाज श्रोताओं के कानों में सदा गुंजेगी।

- डॉ. रमेश ठाकुर

सदस्य, राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान (NIPCCD), भारत सरकार!

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