Syama Prasad Mukherjee Death Anniversary: देश के महान क्रांतिकारी नेता थे डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, आज के दिन हुआ था निधन

Dr Syama Prasad Mukherjee
Prabhasakshi

आज ही के दिन यानी की 23 जून को भारतीय जनसंघ के संस्थापक तथा राजनीति व शिक्षा के क्षेत्र में सुविख्यात डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत हो गई थी। उन्होंने हमेशा हिंदुत्व के हित में आवाज उठाई थी।

भारतीय राजनीति से श्यामा प्रसाद मुखर्जी का गहरा नाता हुआ करता था। श्यामा प्रसाद को उनकी अलग विचारधारा के लिए जाना जाता था। उन्होंने हमेशा हिंदुत्व के लिए अपनी आवाज उठाई थी। वहीं मुखर्जी ने आर्टिकल 370 का भी काफी विरोध किया था। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 23 जून को श्यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन हो गया था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

कलकत्ता के बंगाली परिवार में 6 जुलाई 1901 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म हुआ था। श्यामा प्रसाद को महानता के गुण विरासत में मिले थे। उनके पिता आशुतोष बाबू अपने समय के काफी फेमस शिक्षाविद् थे। उन्होंने 22 साल की उम्र में एमए की परीक्षा पास की थी। जिसके बाद उनकी शादी सुधादेवी से हुई थी। वहीं 24 साल की उम्र में श्यामा प्रसाद कोलकाता यूनिवर्सिटी के सीनेट सदस्य बने थे। हालांकि इस समय उनका पूरा ध्यान गणित की ओर था। गणित के अध्ययन के लिए वह विदेश गए और वहां पर लंदन मैथमैटिकल सोसायटी के सम्मानित सदस्य बनें। 

राजनीतिक सफर

बता दें कि साल 1939 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कर्मक्षेत्र के रूप में राजनीति में भाग लिया और फिर वह आजीवन इसी में लगे रहे। इस दौरान उन्होंने महात्मा गांधी और कांग्रेस की उस नीति का खुलकर विरोध किया था। जिससे कि हिंदुओं को नुकसान का हुआ था। एक बार श्यामा प्रसाद ने कहा था कि गांधीजी की अहिंसावादी नीति के अंधानुसरण के चलते वह दिन दूर नहीं कि जब पूरा बंगाल पाकिस्तान के अधिकार क्षेत्र में आ जाएगा। उन्होंने नेहरू और गांधीजी की तुष्टिकरण नीति का खुलकर विरोध किया था। 

इसे भी पढ़ें: Sanjay Gandhi Death Anniversary: अहम पद पर न होने के बाद भी संजय गांधी ने बदल दी थी भारतीय राजनीति की तस्वीर

इसके बाद साल 1947 में स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के तौर पर श्यामा प्रसाद ने वित्त मंत्रालय का काम संभाला। इस दौरान उन्होंने बिहार में खाद का कारखाना, चितरंजन में रेल इंजन का कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना स्थापित करवाया था। हैदराबाद निजाम को डॉ मुखर्जी के सहयोग से ही भारत में विलीन होना पड़ा। साल 1950 में देश की स्थिति काफी दयनीय थी। इससे उनके मन को गहरा आघात पहुंचा था। 

इस दयनीय स्थिति को डॉ मुखर्जी देख नहीं पाए और भारत सरकार की अहिंसावादी नीति के फलस्वरूप उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्होंने संसद में विरोधी पक्ष की भूमिका निभाने लगे। डॉ मुखर्जी को एक देश में दो झंडे और दो निशान स्वीकार नहीं थे। इसलिए उन्होंने कश्मीर का देश में विलय करने के लिए कोशिश करना शुरूकर दिया। इसके बाद डॉ मुखर्जी जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी के साथ मिलकर आंदोलन करने लगे।

मौत

फिर वैद्य गुरुदत्त, डॉ. बर्मन, तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और टेकचंद को लेकर वह 8 मई 1953 को जम्मू के लिए कूच किया। सीमा में प्रवेश करने के दौरान जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस दौरान डॉ मुखर्जी 40 दिनों तक जेल में बंद रहे। जिसके बाद भारतीय जनसंघ के संस्थापक तथा राजनीति व शिक्षा के क्षेत्र में सुविख्यात डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 23 जून 1953 को रहस्यमय तरीके से मौत हो गई।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़