Ratanji Tata Birth Anniversary: अंग्रेजों ने रतनजी टाटा को दी थी 'सर' की उपाधि, देश के विकास में निभाई अहम भूमिका

Ratanji Tata
Prabhasakshi

भारत के विकास में टाटा समूह के योगदान को कोई भूल नहीं सकता है। आज ही के दिन यानी की 20 जनवरी को सर रतन जमशेदजी टाटा का जन्म हुआ था। बता दें टाटा समूह हर कदम पर भारत के साथ खड़ा रहा।

भारत के विकास में टाटा समूह के योगदान को कोई भूल नहीं सकता है। जब भी देश को जरूरत पड़ी है, तो टाटा समूह हर कदम पर भारत के साथ खड़ा रहा। एक ऐसा ही वक्त उस दौरान आया था, जब देश में अंग्रेजों का शासन चल रहा था। उस समय मौर्य वंश का इतिहास और उसकी राजधानी पाटिलपुत्र को खोजा जा रहा था। जब अंग्रेजों ने उस समय हाथ खड़े कर दिए, तो टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के छोटे बेटे रतन जमशेदजी टाटा ने इसका जिम्मा अपने सर उठाया। जिसका नतीजा यह निकला कि मौर्य वंश का इतिहास लोगों के सामने हैं। आपको बता दें कि आज ही के दिन यानी की 20 जनवरी को रतन जमशेदजी टाटा का जन्म हुआ था। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर रतन जमशेदजी टाटा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म 

बता दें कि 20 जनवरी 1871 को रतन जमशेदजी टाटा का जन्म हुआ था। अपने पिता के पद चिह्नों पर चलते हुए रतन जमशेदजी टाटा अंग्रेजों के शासनकाल में देश और समाज की सेवा में जुटे रहे। अपने पिता जमशेदजी टाटा के निधन के बाद रतनजी टाटा ने अपने भाई के साथ मिलकर कंपनी की बागडोर को संभालने के साथ उसे आगे बढ़ाने का काम किया। वहीं साल 1892 में रतनजी टाटा की शादी हुई। वहीं रतन जी टाटा का देश के प्रति सेवाभाव को देखते हुए अंग्रेजों ने उनको 'सर' की उपाधि से नवाजा। जिसके बाद से लोग उनको सर रतनजी टाटा के नाम से पुकारने लगे।

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देश के विकास में दिया साथ

अमीर खानदान में पैदा होने के बाद भी रतनजी टाटा ने देश के विकास और समाज में अभावग्रस्त लोगों के जीवन स्तर में सुधार पर जोर दिया। वहीं दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी की लड़ाई में भी रतनजी टाटा का अहम योगदान रहा। इसके साथ ही गोपालकृष्ण गोखले की सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसायटी के लिए भी उन्होंने खुलकर मदद की। फिर चाहे पब्लिक मेमोरियल या फिर स्कूल और हॉस्पिटल या दैवीय आपदा, रतनजी टाटा हमेशा मदद के लिए आगे खड़े रहे।

जहां रतनजी टाटा एक ओर अपनी कंपनी के जरिए देश के विकास में लगे थे। उस दौरान साल 1900 में पाटिलपुत्र की खोज के लिए खुदाई की गई। लेकिन उस कार्य में सफलता न मिलती देख ब्रिटिश सरकार ने इस खोज के लिए धन देने से मना कर दिया। जब यह बात सर रतनजी टाटा के पास पहुंची तो उन्होंने साल 1912-13 में पाटलीपुत्र को खोजने के लिए आर्थिक मदद का जिम्मा अपने कंधों पर लिया।

जिसके बाद सर रतनजी टाटा ने पुरातत्व महानिदेशक को बुलाकर इस मामले पर बात की। वहीं उनसे वादा किया कि जब तक यह खोज पूरी नहीं हो जाती है, तब तक वह हर महीने 20 हजार रुपए की आर्थिक मदद करते रहेंगे। सर रतनजी टाटा के इस वादे के बाद तो जैसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को पंख लग गए। 

पुरातत्व विभाग को मिली बड़ी सफलता

पाटलीपुत्र की खोज में आने वाली आर्थिक दिक्कत दूर होने के बाद साल 1912-13 की सर्दी में पुरातत्वविद् डीबी स्पूनर ने दोबारा पाटलीपुत्र की खोज शुरू कर दी। इस खुदाई की शुरूआत पटना के कुमराहार से हुई। वहीं धीरे-धीरे इस कार्य में सफलता मिलने लगी और जमीन के 10 फुट नीचे सबसे पहले ईंटों की एक पुरानी दीवार खोजने में कामयाबी मिली। वहीं 7 फरवरी 1913 को इस काम में बड़ी सफलता हासिल हुई।

मौत

सर रतनजी टाटा ने अपना पूरा जीवन परोपकार और आम लोगों के संघर्षों से खुद को जोड़कर रखा। अपनी वसीयत में सर रतनजी टाटा ने अपनी प्रॉपर्टी का अधिकतर हिस्सा लोगों के आम जीवन स्तर को सुधारने में खर्च करने की इच्छा जताई। बता दें कि 6 सितंबर 1918 को लंदन में सर रतनजी टाटा का निधन हो गया। उनके निधन के बाद सर रतन जी टाटा की इच्छा के मुताबिक साल 1919 में सर रतन टाटा ट्रस्ट की शुरुआत की गई।

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