Birthday Special: हिमालय से अटल थे बाला साहेब
बालासाहेब ठाकरे के बिना भारतीय राजनीति पूरी नहीं हो सकती है। बालासाहेब ठाकरे भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष थे। उनका व्यक्तित्व हिमालय सा अटल था। उन्होंने यदि एक बार किसी बात के लिए हां कर दी तो फिर चाहे कितने भी दबाव आए हो वह अपनी बात से मुकरे नहीं।
राजनीति के इतिहास में बाला साहेब ठाकरे का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा। क्योंकि वे एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने अपने दम पर मुम्बई शहर की काया पलट कर दी थी। सिर्फ मुम्बई ही नहीं उनकी राजनीतिक विचारधारा का प्रभाव पूरे देश में देखने को मिलता है। बाला साहेब रियल लाइफ में मुम्बई शहर के राजा की तरह थे। उनके इशारे पर मुम्बई नाचा करती थी। वे अगर कहते थे कि मुम्बई बंद तो बंद वे जिसे अपने आगे हाजिर होने को कह दें वह अगले ही पल हाजिर हो जाता था। क्या नेता क्या अभिनेता उनके आगे कोई नहीं टिक पाया। उनके इस रुतबे को देखकर हर कोई उनका मुरीद हो गया। उनकी हुकूमत के किस्से आज भी याद किए जाते हैं।
बालासाहेब ठाकरे के बिना भारतीय राजनीति पूरी नहीं हो सकती है। बालासाहेब ठाकरे भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष थे। उनका व्यक्तित्व हिमालय सा अटल था। उन्होंने यदि एक बार किसी बात के लिए हां कर दी तो फिर चाहे कितने भी दबाव आए हो वह अपनी बात से मुकरे नहीं। बालासाहेब भारत में बिना किसी लाग लपेट के सही बात कहने वाले अग्रणी राजनेता थे। उनके सहयोग से देश में राम मंदिर आंदोलन परवान चढ़ा था। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। उसमें स्वर्गीय बालासाहेब का अविस्मरणीय योगदान रहा था।
बालासाहेब ठाकरे देश के एक जाने-माने कार्टूनिस्ट भी थे। उनके हृदय में एक कलाकार बसता था। इसी कारण मन के जितने वह दृढ़ प्रतिज्ञ थे उतने ही कोमल ह्रदय भी थे। अपनी इसी विशेषता के कारण वह हर किसी के मदद को तैयार हो जाते थे। शिवसेना पार्टी की स्थापना कर उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति को एक नई धार दी थी। उन्ही का लगाया शिवसेना रूपी वृक्ष आज पेड़ बन कर प्रदेश में सरकार चला रहा है। उनके बताए मार्गो का अनुसरण कर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे श्री उद्धव ठाकरे आम मराठी मानुष के सपनों को साकार कर रहें है।
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उन्होने आम जन तक अपनी बात पहुंचाने के लिये मराठी भाषा में सामना नामक एक दैनिक अखबार निकाला। उसके बाद उन्होंने हिन्दी भाषा में दोपहर का सामना नामक अखबार भी निकाला। इस प्रकार महाराष्ट्र में हिन्दी व मराठी में दो-दो प्रमुख अखबारों के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे ही थे। आज दोनो ही अखबार महाराष्ट्र के जनमानस की धड़कन बने हुये हैं। सामना अखबार में छपी खबर को देश की सभी बड़ी न्यूज एजेंसी, टीवी चैनल व अन्य अखबार प्रमुखता से स्थान देते हैं।
लीक से हटकर चलना बालासाहेब का शगल था। आपातकाल में भी उन्होंने सारे विपक्ष को दरकिनार कर इंदिरा गांधी का समर्थन किया था। 1978 में जब जनता पार्टी की सरकार ने इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया तो उन्होंने उसके विरोध में महाराष्ट्र बंद का आयोजन करवाया था। जब सुनील दत्त के पुत्र संजय दत्त जेल गये तो बालासाहेब खुलकर उनके पक्ष में खड़े हुये थे। कांग्रेस ने जब प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति पद के लिये नामांकित किया तो बालासाहेब मराठी अस्मिता के लिये एनडीए गठबंधन से अलग हटकर प्रतिभा पाटील के पक्ष में मतदान किया था।
शरद पवार अपनी आत्मकथा, 'ऑन माई टर्म्स' में लिखते हैं कि बाला साहेब का उसूल था कि अगर आप एक बार उनके दोस्त बन गए तो वो उसे ताउम्र निभाते थे। सितंबर 2006 में जब मेरी बेटी सुप्रिया ने राज्यसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की तो बाला साहेब ने मुझे फोन किया। वो बोले 'शरद बाबू मैं सुन रहा हूं, हमारी सुप्रिया चुनाव लड़ने जा रही है और तुमने मुझे इसके बारे में बताया ही नहीं। मुझे यह खबर दूसरों से क्यों मिल रही है?'
मैंने कहा शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने पहले ही उसके खिलाफ अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दी है। मैंने सोचा मैं आपको क्यों परेशान करूं?' इस पर ठाकरे बोले मैंने उसे तब से देखा है जब वो मेरे घुटनों के बराबर हुआ करती थी। मेरा कोई भी उम्मीदवार सुप्रिया के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ेगा। तुम्हारी बेटी मेरी बेटी है।' तब मैंने उनसे पूछा आप भाजपा का क्या करेंगे, जिनके साथ आपका गठबंधन है? उन्होंने बिना पल गंवाए जवाब दिया भाजपा की चिंता मत करो। वो वही करेगी जो मैं कहूंगा।
बालासाहेब का जन्म 23 जनवरी 1926 को पुणे में केशव सीताराम ठाकरे के यहां हुआ था। उनका पूरा नाम बाल केशव ठाकरे था। मगर लोग उन्हें प्यार से बालासाहेब ठाकरे ही कहते थे। उनके अनुयायी उन्हें हिन्दू हृदय सम्राट के रूप में देखते हैं। उनके पिता एक प्रगतिशील सामाजिक कार्यकर्ता व लेखक थे जो जातिप्रथा के धुर विरोधी थे। उन्होंने महाराष्ट्र में मराठी भाषी लोगों को संगठित करने के लिये संयुक्त मराठी चलवल (आन्दोलन) में प्रमुख भूमिका निभायी और मुंबई को महाराष्ट्र की राजधानी बनाने में 1950 के दशक में काफी काम किया। बालासाहेब का विवाह मीना ठाकरे से हुआ। उनसे उनके तीन बेटे हुए-बिन्दुमाधव, जयदेव और उद्धव ठाकरे। उनकी पत्नी मीना ताई और सबसे बड़े पुत्र बिन्दुमाधव का निधन हो गया।
बतौर आजीविका उन्होंने अपना जीवन मुंबई के प्रसिद्ध समाचारपत्र फ्री प्रेस जर्नल में कार्टूनिस्ट के रूप में प्रारम्भ किया। इसके बाद उन्होंने फ्री प्रेस जर्नल की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और 1960 में अपने भाई के साथ एक कार्टून साप्ताहिक मार्मिक की शुरुआत की। 1966 में उन्होंने महाराष्ट्र में शिव सेना नामक एक राजनीतिक पार्टी की स्थापना की। 1995 में भाजपा-शिवसेना के गठबन्धन ने पहली बार महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाई। बाल ठाकरे अपने बेबाक बयानों के लिये जाने जाते थे। इस कारण उनके खिलाफ सैकड़ों की संख्या में मुकदमे दर्ज किये गये थे।
शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने अपने जीवन में तीन प्रतिज्ञाएं की थी। एक वो कभी अपनी आत्मकथा नहीं लिखेंगे। दूसरी प्रतिज्ञा ये थी कि वो कभी किसी तरह का चुनाव नहीं लड़ेंगे और तीसरी प्रतिज्ञा ये थी कि वो कभी कोई सरकारी पद नहीं हासिल करेंगे। सरकार से बाहर रहकर सरकार पर नियंत्रण रखना उनकी पहचान थी। ठाकरे परिवार के श्री उद्धव ठाकरे मातोश्री से निकलकर राज्य के मुख्यमंत्री पद का कुशलतापूर्वक दायित्व संभाल चुके हैं।
खराब स्वास्थ्य के चलते बाला साहेब की 17 नवम्बर 2012 को मृत्यु हो गयी। मुम्बई के शिवाजी मैदान पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि की गयी। इस अवसर पर लालकृष्ण आडवानी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नितिन गडकरी, मेनका गांधी, प्रफुल्ल पटेल और शरद पवार के अतिरिक्त अमिताभ बच्चन, अनिल अंबानी सहित देश के सभी राजनीतिक दलों के नेता भी मौजूद थे। बालासाहेब ठाकरे ना तो मुख्यमंत्री थे ना सांसद। वो कभी किसी पद पर नहीं रहे। उनको अंतिम संस्कार में 21 तोपों की सलामी दी गई जो देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को मिलती है। उनकी पुण्य तिथी पर देश भर में उनके अनुयायी उनको श्रद्धा सुमन अर्पित कर उनके बताये मार्ग का अनुसरण करने की प्रतिज्ञा लेते हैं।
- रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)
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