Hazrat Nizamuddin Auliya: अमीर खुसरो ने निजामुद्दीन औलिय़ा को बताया दिलों का हकीम, सुल्तान जैसा रहा उनका प्रभाव

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3 अप्रैल को 14वीं सदी के चिश्ती हजरत निजामुद्दीन औलिया का निधन हुआ था। दिल्ली का एक इलाका उनके नाम यानि की निजामुद्दीन के नाम से जाना जाता है। दिल्ली की वास्तुकला शिल्प के हिसाब से निजामुद्दीन दरगाह आज भी बेहद उम्दा इमारतों में से एक है।

उत्तर प्रदेश के बदायूँ जिले में 19 अक्टूबर 1238 में निजामुद्दीन औलिया का जन्म हुआ था। निजामुद्दीन औलिया के पिता का नाम हजरत सैयद अहमद बुख़ारी और माता का नाम बीबी जुलेखा था। निजामुद्दीन के जन्म के कुछ दिनों बाद उनके पिता निजामुद्दीन को लेकर अजोधर चले गए। यह स्थान आज पाकपट्टन शरीफ, पाकिस्तान में स्थित है। पाकिस्तान में उनकी मुलाकात रूहानी ताकत के मालिक और आला दर्जे के आलिम बाबा फरुद्द्दीन से हुई। आलिम बाबा फरुद्द्दीन से निजामुद्दीन औलिया ने शिक्षा ग्रहण की। शिक्षा देने के बाद बाबा फरुद्द्दीन ने उन्हें एक खिलाफत नामा दिया और दिल्ली जाने के लिए कहा। 

आलिम बाबा फरुद्द्दीन की बात मानते हुए निजामुद्दीन औलिया दिल्ली आ गए और अपने आखिरी समय तक वह दिल्ली में ही रहे। इस दौरान वह खुदा की खिदमत के साथ लोगों की भी खिदमत करते रहे। निजामुद्दीन लोगों को आपसी मोहब्बत नेकी और ईमानदारी करने की तालीम दिया करते थे। उनका कहना था कि दुनिया का हर इंसान खुदा का बनाया है। इसलिए इंसानों से मोहब्बत करना ही असल मायने में खुदा से मोहब्बत करना है। 

कव्वाली के शौकीन

बाबा निजामुद्दीन औलिया शमा यानी कव्वाली के बहुत शौकीन थे। यही कारण है कि मौसिकी में कव्वाली के फन को तशकील देने वाले फेमस और मकबूल सूफी शायर अमीर खुसरो भी उनके मुरीद हुआ करते थे। बताया जाता है कि निजामुद्दीन औलिया ने अपने जन्म के फौरन बाद इस्लामिक कलमा पढ़ा था। उस दौरान बदायूं इस्लामी शिक्षा हासिल करने का एक अहम स्थान बन चुका था। इसके अलावा यह स्थान सूफी और संतों के लिए भी खास अहमियत रखता था। निजामुद्दीन के सिर से महज 5 साल की उम्र में पिता का साया उठ गया था। जिसके बाद उनकी परवरिश उनकी मां बीवी जुलेखा ने की थी।

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इस्लामिक तालीम 

निजामुद्दीन की मां ने उन्हें इस्लामिक तालीम देने के लिए मौलाना अलाउद्दीन असूली को सौंप दिया। उस दौरान मौलाना अलाउद्दीन ने कहा था कि निजामुद्दीन खुदा के अलावा किसी और के सामने सिर नहीं झुकाएगा। अपने पूरे जीवन काल में हज़रत निजामुद्दीन औलिया ने सिर्फ मानव प्रेम का ही प्रचार किया है। उन्होंने लोगों को सांसारिक बन्धनों से मुक्त होने की शिक्षा दी। उनके शिष्यों में सभी वर्ग के लोग शामिल थे। शेख निजामुद्दीन औलिया को उनके शिष्य रहे शिष्य अमीर खुसरो ने दिलों का हकीम कहा है।

दिल्ली की रियासत

निजामुद्दीन औलिया ने अपने 60 साल के जीवन में दिल्ली की रियासत को तीन सल्तनतों के हाथों में देखा था। जिनमें गुलाम वंश, खिलजी वंश और तुगलक वंश शामिल था। वह कभी किसी के दरबार में नहीं गए, लेकिन उनका प्रभाव भी किसी सुल्तान से कम नहीं था। निजामुद्दीन औलिया बड़े ही खुले दिल से हर मजहब का सम्मान करते थे। अमीर खुसरो की गिनती निजामुद्दीन के चहेतों में होती थी। शायद इसी वजह से उनकी मजार निजामुद्दीन औलिया की मजार के पास बनाई गई है। 

मौत

हज़रत निजामुद्दीन औलिया अपने पूरे जीवन काल में प्रेम का प्रचार-प्रसार करते रहे। उनके द्वारा दिए गए उपदेशों, सेवा भावना आदि गुणों को देखते हुए निजामुद्दीन औलिया को महबूब-ए-इलाही का दर्जा दिया गया है। 89 वर्ष की उम्र में वे बीमार पड़े और 3 अप्रैल 1325 को उनका इंतकाल हुआ। हजरत निजामुद्दीन की दरगाह दिल्ली में स्थित है। मशहूर चिश्ती पीरों की परंपरा में शेख निजामुद्दीन चौथे थे। 

उपाधि

महबूब-ए-इलाही

सुल्तान-उल-मसहायक

दस्तगीर-ए-दोजहां

जग उजियारे

कुतुब-ए-देहली

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