जन्मदिन विशेष: योगी ने कैसे तय किया सन्यासी से CM तक का सफर, स्थापित किए कई कीर्तिमान
योगी आदित्यनाथ के गुरु अवैध नाथ ने 1998 में राजनीति से संयास ले लिया। अवैद्यनाथ भाजपा से जुड़े हुए थे। इसके बाद 1998 में योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक पारी शुरू हुई। भाजपा ने उन्हें गोरखपुर से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया। योगी आदित्यनाथ की उस वक्त उम्र सिर्फ 26 साल की थी जब वह पहली दफा चुनाव जीतकर सांसद बने थे।
उत्तर प्रदेश में अपने नेतृत्व में दोबारा पार्टी को जीत दिलाने वाले योगी आदित्यनाथ का आज भाजपा के लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों में से एक हैं। भले ही योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं लेकिन उनकी लोकप्रियता देश के अलग-अलग राज्यों में भी है और पार्टी के प्रचार के लिए वह अक्सर दूसरे राज्यों का दौरा करते रहते हैं। हालांकि यह बात भी सच है कि जब 2017 में योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई थी तो ऐसा नहीं था कि वह मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी के सबसे पसंदीदा उम्मीदवार थे। हालांकि कट्टर हिंदुत्व वाली छवि और तेजतर्रार नेता के तौर पर उनका व्यक्तित्व हमेशा योगी आदित्यनाथ के लिए एक मजबूत कड़ी साबित हुआ है। आज यानी कि 5 जून को योगी आदित्यनाथ अपना जन्मदिन मना रहे हैं। पांच जून 1972 को पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में यमकेश्वर तहसील के पंचुर गांव के एक गढ़वाली क्षत्रिय परिवार में उनका जन्म हुआ। योगी के पिता का नाम आनन्द सिंह बिष्ट था। अपने माता-पिता के सात बच्चों में योगी शुरू से ही सबसे अलग थे। बचपन में उनका नाम अजय सिंह बिष्ट था।
बचपन से ही योगी आदित्यनाथ पढ़ाई के साथ-साथ जन सेवा के कार्य में जुटे रहे। 1990 में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए थे। उन्होंने 1992 में हेमंती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई को पूरा किया। हालांकि तभी राम मंदिर आंदोलन का दौर शुरू हुआ। इस आंदोलन में देश के कई युवा कूद पड़े। उन्हीं युवाओं में से एक थे योगी आदित्यनाथ। इसी दौरान वे गुरु गोरखनाथ पर एक शोध करने के लिए 1993 में गोरखपुर पहुंचे थे। गोरखपुर में उन्हें महंत और राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण आंदोलन के अगुवा महंत अवैद्यनाथ का स्नेह मिला और 1994 में योगी पूर्ण रूप से संन्यासी बन गये। योगी को महंत अवैद्यनाथ ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और दीक्षा लेने के बाद अजय सिंह बिष्ट को योगी आदित्यनाथ नाम मिला। महंत अवैद्यनाथ के 12 सितंबर 2014 को ब्रह्मलीन होने के बाद योगी गोरक्षपीठ के महंत घोषित किये गये।
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योगी आदित्यनाथ के गुरु अवैध नाथ ने 1998 में राजनीति से संयास ले लिया। अवैद्यनाथ भाजपा से जुड़े हुए थे। इसके बाद 1998 में योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक पारी शुरू हुई। भाजपा ने उन्हें गोरखपुर से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया। योगी आदित्यनाथ की उस वक्त उम्र सिर्फ 26 साल की थी जब वह पहली दफा चुनाव जीतकर सांसद बने थे। इसके बाद से योगी आदित्यनाथ लगातार पांच बार लोकसभा में गोरखपुर का प्रतिनिधित्व करते रहे। योगी आदित्यनाथ के जीत का भी मार्जिन लगातार बढ़ता जा रहा था। 1998 से लेकर मार्च 2017 तक वह गोरखपुर के सांसद रहे। हालांकि यह बात भी सच है कि समय-समय पर भाजपा नेतृत्व और योगी आदित्यनाथ के बीच मतभेद की भी खबरें आती रहीं। इसी वजह से आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी नामक एक संगठन की स्थापना की थी। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने हिन्दू युवा वाहिनी के बैनर तले कई उम्मीदवार उतारे जिनमें गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से डा. राधा मोहन दास अग्रवाल विजयी हुए थे। अग्रवाल लगातार चार बार निर्वाचित होते रहे और इसी सीट पर योगी पहली बार 2022 में विधानसभा के सदस्य चुने गये हैं।
मुख्यमंत्री के रूप में, उन्होंने ऐसे फैसले लिए जिनसे हिंदुत्व के ‘चेहरे’ के रूप में उनकी छवि की पुष्टि हुई। अपने कार्यकाल की शुरुआत में, उन्होंने अवैध बूचड़खानों पर प्रतिबंध लगा दिया और पुलिस ने गोहत्या पर नकेल कसने का दावा किया। उनकी सरकार बाद में जबरन या धोखे से धर्मांतरण के खिलाफ पहले अध्यादेश और फिर विधेयक लेकर आई। बाद में भाजपा शासित अन्य राज्यों ने भी इसे अपने तरीके से अपनाया। मार्च 2017 में लखनऊ में भाजपा विधायक दल की बैठक में योगी को विधायक दल का नेता चुना गया। इसके बाद योगी ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और विधान परिषद के सदस्य बने। फिर 19 मार्च 2017 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लगातार पांच वर्ष के शासन के बाद दोबारा योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उत्तर प्रदेश में 1985 के बाद पहली बार लगातार दूसरी बार अपने दल को पूर्ण बहुमत दिलाने के साथ ही योगी ने एक साथ कई कीर्तिमान बनाये हैं।
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2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने से योगी के सियासी कद को और बड़ा कर दिया है। योगी ने यह भी मिथक तोड़ दिया कि जो मुख्यमंत्री नोएडा जाता है उसकी कुर्सी चली जाती है। कई बार नोएडा जाने के बावजूद वह उत्तर प्रदेश में लगातार पिछले पांच वर्ष से मुख्यमंत्री बने रहे और दोबारा उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मिथकों को तोड़ने के साथ ही योगी ने अपने हिंदुत्व की छवि को और धार दी है। नि:संदेह अब उनके ऊपर 2024 के लोकसभा चुनाव का दारोमदार है।
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