Prabhasakshi NewsRoom: EWS Reservation पर SC का ऐतिहासिक फैसला चुनावी मौसम में मोदी सरकार की बड़ी जीत
शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थीं और ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे ‘‘पिछले दरवाजे से’’ आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था।
उच्चतम न्यायालय ने आज एक ऐतिहासिक फैसला करते हुए दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले 103वें संविधान संशोधन पर अपनी मुहर लगा दी। प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने यह फैसला सुनाया। हालांकि पांच जजों की पीठ में से तीन जजों ने आरक्षण के पक्ष में और दो ने आरक्षण के विरोध में फैसला दिया। इस प्रकार तीन/दो से आया यह फैसला बहुमत के आधार पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दिये गये आरक्षण को मान्यता प्रदान करता है।
उल्लेखनीय है कि प्रधान न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट ने आरक्षण के विरोध में फैसला सुनाया जबकि न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण संबंधी 103वें संविधान संशोधन को बरकरार रखा और कहा कि यह संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने भी दाखिला और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस आरक्षण बरकरार रखा।
हम आपको बता दें कि मोदी सरकार की ओर से ईडब्ल्यूएस वर्ग को दिये गये 10 प्रतिशत आरक्षण के फैसले की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी जिस पर न्यायालय की पीठ का यह फैसला आया है। देश की शीर्ष अदालत ने तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस कानूनी सवाल पर 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था कि क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है।
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शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थीं और ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे ‘‘पिछले दरवाजे से’’ आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था। तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाड़े ने ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करते हुए कहा था कि आर्थिक मानदंड वर्गीकरण का आधार नहीं हो सकता है और शीर्ष अदालत को इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से विचार करना होगा यदि वह इस आरक्षण को बनाए रखने का फैसला करता है।
दूसरी ओर, तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने संशोधन का पुरजोर बचाव करते हुए कहा था कि इसके तहत प्रदान किया गया आरक्षण अलग है तथा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए 50 प्रतिशत कोटा से छेड़छाड़ किए बिना दिया गया। उन्होंने कहा था कि इसलिए, संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।
हम आपको यह भी बता दें कि शीर्ष अदालत ने 40 याचिकाओं पर सुनवाई की। ‘जनहित अभियान’ द्वारा 2019 में दायर की गई प्रमुख याचिका सहित लगभग सभी याचिकाओं में संविधान संशोधन (103वां) अधिनियम 2019 की वैधता को चुनौती दी गई थी। गौरतलब है कि केंद्र ने 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 के माध्यम से दाखिले और सरकारी सेवाओं में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है।
इस बीच, उच्चतम न्यायालय की ओर से आये फैसले को मोदी सरकार की बड़ी जीत के रूप में भी देखा जा रहा है। ऐसे में जबकि दो राज्यों में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल रही है तब भाजपा इस फैसले का चुनावी लाभ लेने का प्रयास भी कर सकती है।
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