Prajatantra: लोकसभा चुनाव से पहले ही क्यों आ रहा CAA, किसे होगा फायदा और किसे नुकसान?

CAA
ANI
अंकित सिंह । Mar 1 2024 4:11PM

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि सीएए के कार्यान्वयन को रोका नहीं जा सकता क्योंकि यह देश का कानून है। शाह ने इस बात पर जोर दिया कि भाजपा सीएए को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। भाजपा नेता लगातार सीएए को लागू करने का दम भरते है।

गृह मंत्रालय (एमएचए) लोकसभा चुनाव से पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 नियमों को लागू कर सकता है। जानकारी के मुताबिक घोषणा आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले आने की संभावना है। केंद्र के इस संकेत के बीच असम और बंगाल में सियासत तेज हो गई है। दावा किया जा रहा है कि कई जगहों पर प्रदर्शन शुरू करने की भी तैयारी है। देश में 2019-2020 में इस अधिनियम के खिलाफ कुछ सबसे उग्र विरोध प्रदर्शन देखे थे। असम में 16 भाजपा विरोधी दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के लिए एक ज्ञापन के साथ राज्यपाल से मुलाकात की और केंद्र से सीएए को लागू करने से रोकने का आग्रह किया। वहीं, बंगाल में ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी है कि जब तक वह जीवित है, राज्य में सीएए को लागू नहीं होने देंगी। 

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क्या है CAA

नागरिकता संशोधन कानून 2019 पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर पलायन कर भारत आये हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई विदेशियों के लिए प्रासंगिक है। इसका उद्देश्य सताए गए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है - जिनमें हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शामिल हैं, जो बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से चले गए और 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए। नागरिकता कानून में हुए संशोधन का किसी भी भारतीय नागरिक के साथ किसी भी तरह से कोई लेना-देना नहीं है। संसद ने दिसंबर 2019 में संबंधित विधेयक को मंजूरी दी थी और बाद में राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद इसके विरोध में देश के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे। सीएए के विरोध प्रदर्शन के दौरान या पुलिस कार्रवाई में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।

भाजपा की रणनीति

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि सीएए के कार्यान्वयन को रोका नहीं जा सकता क्योंकि यह देश का कानून है। शाह ने इस बात पर जोर दिया कि भाजपा सीएए को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। भाजपा नेता लगातार सीएए को लागू करने का दम भरते है। हालांकि बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि 2019 में जो कानून पास किया गया उसे लगभग साढ़े चार साल के बाद लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लागू करने की बात क्यों कहीं जा रही है? इसका मतलब साफ है कि सीएए का चुनावी कनेक्शन जरूर है। दरअसल, भाजपा लोकसभा चुनाव में अपने दम पर 370 सीटे जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है। इस कारण भाजपा की ओर से राम मंदिर, सीएए, यूसीसी जैसे भावनात्मक मुद्दे उठाए जा रहे हैं। सीएए के जरिए भाजपा पूर्वोत्तर की राजनीति को साधने की कोशिश कर रही है। बंगाल में इसका सीधा असर हो सकता है। बंगाल की सात लोकसभा सीट पर मतुआ समुदाय निर्नायक भूमिका में होते हैं। सीएए के लागू होने के बाद मतुआ समुदाय को भी भारत की नागरिकता मिल सकेगी। ऐसे में इनका पूरा वोट बीजेपी के साथ हो सकता है। इसके अलावा भाजपा पूरी तरीके से सीएए के जरिए ध्रुवीकरण का माहौल क्रिएट करने की कोशिश करेगी। इससे जातियों में उलझा हिंदू वोट एकमुश्त तरीके से भाजपा के खाते में आ सकता है। सीएए का सबसे ज्यादा विरोध मुसलमान द्वारा किया जा रहा है। सीएए के जरिए भाजपा चुनाव के दौरान हिंदुत्व की वह पिच तैयार करने की कोशिश में है जिस पर पार्टी चौके छक्के लगा सके। लोकसभा चुनाव से पहले इसे लागू कर केंद्र की भाजपा सरकार यह मैसेज देने की कोशिश करेगी कि विपक्षी नेता मुसलमान के साथ खड़े हैं और ऐसे में उसे हिंदुओं का वोट मिल सकेगा। 

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विपक्ष के क्यों छूटे पसीने

विपक्ष के लगभग सभी दल लगातार सीएए का विरोध कर रहे हैं। इसका बड़ा कारण मुस्लिम वोट बैंक है। विपक्ष के नेता आज भी सीएए के खिलाफ जबरदस्त तरीके से खड़े हैं। ममता बनर्जी तो बंगाल में साफ तौर पर कह रही हैं कि वह सीएए को यहां लागू नहीं होने देंगी। राहुल गांधी भी कई बार कह चुके हैं कि उनकी सरकार आने पर इसे लागू नहीं किया जा सकेगा। विपक्ष इसके जरिए भाजपा पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाता है। विपक्ष के नेता सीएए का विरोध मुसलमान का हमदर्द बनने की कोशिश कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, असम, बिहार जैसे राज्यों में जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है, वहां विपक्षी नेता लगातार मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि अगर मुसलमानों का साथ छूटता है तो उनकी पार्टी की स्थिति और बुरी हो सकती है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की राजनीति मुस्लिम वोट बैंक पर ही टिकी हुई है। अगर मुस्लिम वोट उनसे छिटकता है तो विधानसभा के चुनाव में इसका बड़ा नुकसान उन्हें हो सकता है। 

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