जब प्रधानमंत्री से मांगी 35 रुपए की रिश्वत, फिर चौधरी चरण सिंह ने किया ये हाल

 Chaudhary Charan Singh
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अभिनय आकाश । Feb 9 2024 1:37PM

चौधरी चरण सिंह वो नेता जिसने खेती-किसानों के मुद्दे को सरकारी फाइलों और गली-मोहल्ले से उठाकर एक राष्ट्रीय आंदोलन में तब्दिल कर दिया। एक राजनीतिज्ञ, किसान नेता, पार्टी के अध्यक्ष और एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री का नाम ही नहीं था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को घोषणा की कि पूर्व प्रधानमंत्रियों पीवी नरसिम्हा राव और चौधरी चरण सिंह के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा कि हमारी सरकार का यह सौभाग्य है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है। यह सम्मान देश के लिए उनके अतुलनीय योगदान को समर्पित है। उन्होंने किसानों के अधिकार और उनके कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हों या देश के गृहमंत्री और यहां तक कि एक विधायक के रूप में भी, उन्होंने हमेशा राष्ट्र निर्माण को गति प्रदान की। वे आपातकाल के विरोध में भी डटकर खड़े रहे। हमारे किसान भाई-बहनों के लिए उनका समर्पण भाव और इमरजेंसी के दौरान लोकतंत्र के लिए उनकी प्रतिबद्धता पूरे देश को प्रेरित करने वाली है। जयंत चौधरी ने दादा को भारत रत्न दिए जाने का स्वागत किया।

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चौधरी चरण सिंह वो नेता जिसने खेती-किसानों के मुद्दे को सरकारी फाइलों और गली-मोहल्ले से उठाकर एक राष्ट्रीय आंदोलन में तब्दिल कर दिया। एक राजनीतिज्ञ, किसान नेता, पार्टी के अध्यक्ष और एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री का नाम ही नहीं था। चरण सिंह एक विचारधारा का भी नाम था। उनकी याद में किसान दिवस मनाया जाता है। दिलचस्प है कि उन्होंने कभी खेती नहीं की पर ये भी सच है कि वे जीवन भर खेती-किसानों से जुड़े सवालों को लेकर मुखर रहे। 

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अंग्रेजों के खिलाफ किया था आंदोलन

गांव भूपगढ़ी में रहने के दौरान चरण सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लिया था। जिसके कारण 1941 में उन्हें जेल भी जाना पड़ा। जिला कारागार में उन्हें बैरक नंबर 9 में रखा गया था। आज इस जिला कारागार का नाम भी चौधरी चरण सिंह के नाम पर है। 

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साढ़े पांच महीने तक रहे प्रधानमंत्री

3 मार्च 1971 जब उस लोकसभा क्षेत्र की सभी आठ विधानसभा सीटें भारतीय किसान दल के पास होने की वजह से हवा का रूख अपनी ओर मानकर चौधरी चरण सिंह मुजफ्फरनगर सीट से चुनाव लड़ने के लिए आए थे। होली के तीन दिन पहले हुई मतगणना में अपने पहले ही लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ता है। 1979 में उन्होंने पहले मोरारजी देसाई का सरकार गिराई और फिर पाला बदल कर कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन बैठे। पुराने दौर में कहा जाता था कि चौधरी चरण सिंह चुनाव के वक़्त बूढ़ों के सपनों में आकर उन्हें बेटे का ख़्याल रखने की ताक़ीद कर जाते थे नतीजतन क्षेत्र में सक्रियता न होने के बावजूद चुनाव परिणाम में वोट जमकर उनके पिता छोटे चौधरी यानी अजित सिंह के खाते में बरसते थे। 

जब दरोगा ने मांगी रिश्वत 

जब चौधरी चरण सिंह  1979 में प्रधानमंत्री रहते हुए वेश बदल कर शाम के 6 बजे उत्तर प्रदेश के इटावा में ऊसराहार थाने में फरयादी आ रहे थे। शिकायतें लिखी जा रही थी और किसी को बैरंग लौटाया जा रहा था। उसी वक्त थाने में एक बुजर्ग अचानक पहुंच गए। उन्होंने मैला सा सिकुड़ा हुआ कुर्ता पहना हुआ था। धोती भी वैसे ही साधारण ग्रामीण जैसी पहन रखी थी। वो वहां चोरी की रिपोर्ट लिखवाने पहुंचे थे। इंतजार करते करते काफी वक्त बीत गए। निराश किसान लौटने लगा तो एक सिपाही पीछे से आया और कहा- बाबा थोड़ा खर्चा-पानी दे तो रपट लिख ली जाएगी। थोड़ा मोल-भाव करने के बाद में 35 रुपये की रिश्वत लेकर रपट लिखना तय हुआ। रपट लिख कर मुंशी ने किसान से पूछा- बाबा हस्ताक्षर करोगे कि अंगूठा लगाओगे। उन्होंने कहा कि साईन करूंगा। फिर हस्ताक्षर के बाद  जेब से एक मुहर निकाल कर कागज पर ठोंक भी दिया। उस मुहर पर लिखा था- प्रधानमंत्री, भारत सरकार। ये देखते ही हड़कंप मच गया...बाद में पूरा थाना ही सस्पेंड हो गया। ये कोई और नहीं चौधरी चरण सिंह थे। 

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