'हमने उनसे जो वादा किया था उसे पूरा किया', UCC को लेकर बोले Pushkar Singh Dhami
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा राज्य के यूसीसी विधेयक, 2024 को मंजूरी देने के बाद उत्तराखंड अब स्वतंत्र भारत में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) अधिनियम बनाने वाला पहला राज्य बन गया है। आदिवासियों को इसके दायरे से बाहर रखने वाले इस विधेयक में हलाला, इद्दत और तलाक (मुस्लिम पर्सनल लॉ में विवाह और तलाक से संबंधित रीति-रिवाज) जैसी प्रथाओं पर पूर्ण प्रतिबंध है।
देश में पहली बार समान नागरिक संहिता को उत्तराखंड में लागू करने के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को दिल्ली में एक समारोह में सम्मानित किया गया। इस दौरान पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में यूसीसी (समान नागरिक संहिता) विधेयक पारित हो गया और राष्ट्रपति ने इस पर अपनी सहमति दे दी। उन्होंने कहा कि यह उत्तराखंड की जनता का सम्मान है, जिन्होंने हमें यूसीसी पास करने का अवसर दिया, हमें सत्ता में आने का अवसर दिया। हमने उनसे जो वादा किया था उसे पूरा किया। यह मेरा नहीं बल्कि उत्तराखंड की जनता का सम्मान है।
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा राज्य के यूसीसी विधेयक, 2024 को मंजूरी देने के बाद उत्तराखंड अब स्वतंत्र भारत में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) अधिनियम बनाने वाला पहला राज्य बन गया है। आदिवासियों को इसके दायरे से बाहर रखने वाले इस विधेयक में हलाला, इद्दत और तलाक (मुस्लिम पर्सनल लॉ में विवाह और तलाक से संबंधित रीति-रिवाज) जैसी प्रथाओं पर पूर्ण प्रतिबंध है। राज्य विधानसभा ने 07 फरवरी, 2024 को विधेयक पारित किया है जो यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं को संपत्ति और विरासत अधिकारों से संबंधित मामलों में समान अधिकार दिए जाएं।
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समान नागरिक संहिता विवाह, तलाक, संपत्ति की विरासत आदि के लिए एक सामान्य कानून लाती है, जो पहले हर धर्म के व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित होते थे। सामान्य संहिता द्विविवाह (एक व्यक्ति से कानूनी तौर पर दूसरे व्यक्ति से विवाह करते हुए भी विवाह करना) और बहुविवाह (एक साथ कई पति-पत्नी रखना) पर रोक लगाती है। उत्तराखंड सरकार ने साफ कर दिया है कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय के सदस्य समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रहेंगे। यूसीसी भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के साथ पढ़े गए अनुच्छेद 366 के खंड (25) के अर्थ के अंतर्गत किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्यों और उन व्यक्तियों और व्यक्तियों के समूह पर लागू नहीं होगा जिनके प्रथागत अधिकार संविधान के भाग XXI के तहत संरक्षित हैं।
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