ये है देश की पहली महिला रेलमंत्री की कहानी, जिन्होंने बंगाल से वाम मोर्चे को उखाड़ फेंका
ममता बनर्जी आज जिस पार्टी यानी की भाजपा से लड़ रही हैं कभी वह उसी गठबंधन का हिस्सा हुआ करती थीं। 1997 में कांग्रेस से अलग होकर ममता दीदी ने 1998 में अपनी पार्टी का गठन किया और फिर भाजपा के साथ मिलकर उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा था।
साल 2011 से पश्चिम बंगाल की सत्ता में काबिज ममता बनर्जी ने वामदलों को सत्ता से उखाड़कर एक मिसाल पेश की थी। 1955 में जन्मीं ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख हैं। उन्हें दीदी के नाम से जाना जाता है और वह पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं। कानून की डिग्री हासिल करने वालीं ममता बनर्जी को साल 2012 में 'टाइम मैगजीन' ने 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया था। कहा जाता है कि ममता बनर्जी जब छोटी थीं तो उनके पिताजी का देहांत हो गया था। ऐसे में जीवनयापन करने के लिए उन्हें दूध भी बेचना पड़ा था। कानून की डिग्री हासिल करने के बाद ममता बनर्जी ने इतिहास ऑनर्स की डिग्री हासिल की थी और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से इस्लामिक इतिहास में मास्टर्स किया था।
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जानकार बताते हैं कि जब ममता बनर्जी कॉलेज में थीं उसी वक्त वह राजनीति में भी सक्रिय हो गई थीं। तभी तो 1970 में उन्हें बंगाल महिला कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया गया था। अब ममता बनर्जी आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अपने वोट बैंक को बचाने की कवायद में जुड़ी हुई हैं।
जब सोमनाथ चटर्जी को हराया
तेज-तर्रार और जबरदस्त हौसले वाली ममता बनर्जी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद (1984) हुए लोकसभा चुनाव में लेफ्ट के कद्दावर नेता सोमनाथ चटर्जी को मात दी थी। उस वक्त उन्होंने जादवपुर से चुनाव लड़ा था। हालांकि, 1989 में वह चुनाव हार गईं और फिर उन्होंने दो साल बाद 1991 में दक्षिण कोलकाता से चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचीं। यहां से उनकी जीत का सिलसिला शुरू हुआ जो 1996, 1998, 1999, 2004, 2009 में बरकरार रहा।
अलग-अलग सरकारों में उन्हें अलग-अलग मंत्रालयों का जिम्मा सौंपा गया। उन्हें देश की पहली महिला रेल मंत्री बनने का सौभाग्य मिला। वह दो बार रेल मंत्री रह चुकी हैं। इसके अलावा उन्होंने कोल मंत्रालय, मानव विकास संसाधन मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, युवा और खेल मंत्रालय का पदभार संभाला हैं। कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत करने वाली ममता बनर्जी ने खुद को कांग्रेस से अलग करके अपनी पार्टी बनाई। जो बंगाल की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर। नाम- तृणमूल कांग्रेस। हालांकि, अब बंगाल की राजनीति में विपक्षी दल भी बदल गए। पहले ममता बनर्जी के लिए कांग्रेस और वामदल परेशानी का सबब बने रहते थे लेकिन अब भाजपा ने मोर्चा संभाल लिया है और कानून व्यवस्था के मामले में लगातार ममता दीदी को घेरने का प्रयास किया है।
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NDA में शामिल हुईं थीं ममता
ममता बनर्जी आज जिस पार्टी यानी की भाजपा से लड़ रही हैं कभी वह उसी गठबंधन का हिस्सा हुआ करती थीं। 1997 में कांग्रेस से अलग होकर ममता दीदी ने 1998 में अपनी पार्टी का गठन किया और फिर भाजपा के साथ मिलकर उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा था। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का गठन हुआ और ममता बनर्जी को रेल मंत्री बनाया गया। लेकिन 2001 में तहलका के खुलासे के बाद उन्होंने इस्तीफा देकर खुद को एनडीए से अलग कर लिया।
आना-जाना लगा रहा
राजनीति में कोई भी स्थायी विरोधी नहीं होता है और यह बात ममता बनर्जी ने सिद्ध भी कर दी। तहलका कांड के बाद ममता कुछ दिनों तक अकेली ही रहीं। हालांकि, 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा के साथ फिर से गठबंधन कर लिया था और उन्हें केंद्र में फिर से मंत्री बनाया गया। लेकिन उनका राजपाठ ज्यादा दिनों का नहीं रहा क्योंकि 2004 का लोकसभा चुनाव भाजपा हार गई और फिर डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार का गठन हुआ और 2006 में ममता बनर्जी ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी पैठ केंद्र और राज्य दोनों ही जगह जमाने में लगी रही और फिर 2012 में कांग्रेस को टाटा बॉय बॉय कह दिया।
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