सूर्य देव के मकर राशि में गोचर करने की तिथि पर मनाया जाता है Makar Sankranti का पर्व, दान का है विशेष महत्व
मकर संक्रांति का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। हर साल यह पर्व सूर्य देव के मकर राशि में गोचर करने की तिथि पर मनाया जाता है। गंगा समेत पवित्र नदियों में इस दिन साधक स्नान-ध्यान करते हैं। इसके साथ ही लोग सूर्य देव की पूजा-उपासना करते हैं। इसके बाद दान-पुण्य करते हैं।
मकर संक्रांति का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। हर साल यह पर्व सूर्य देव के मकर राशि में गोचर करने की तिथि पर मनाया जाता है। गंगा समेत पवित्र नदियों में इस दिन साधक स्नान-ध्यान करते हैं। इसके साथ ही लोग सूर्य देव की पूजा-उपासना करते हैं। इसके बाद दान-पुण्य करते हैं। सनातन शास्त्रों में कहा जाता है कि मकर संक्रांति तिथि पर गंगा स्नान करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन दान पुन्य करने का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है।
मकर संक्रांति की कथा
सनातन धर्म के शास्त्रों में निहित है कि शनिदेव के रूप को देखकर सूर्य देव ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया। उस समय माता छाया ने सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित होने का श्राप दिया। यह सुनकर सूर्य देव क्रोधित हो उठे। जिसके बाद सूर्य देव ने शनिदेव और माता छाया के ठहरने वाले स्थान को भस्म कर दिया। कालांतर में यम देव ने सूर्य देव के क्रोध को शांत किया। साथ ही सूर्य देव को माता छाया के लिए अपने क्रोध को स्नेह में बदलने का अनुरोध किया। तब सूर्य देव ने माता छाया को क्षमा प्रदान की।
सूर्य देव अपने पुत्र शनिदेव से इसके बाद मिलने पहुंचे। ऐसी किदवंतियां हैं कि सूर्य देव के मकर राशि में गोचर करने की तिथि पर ही दोनों की भेंट हुई थी। आसान शब्दों में कहें तो मकर संक्रांति तिथि पर सूर्य देव अपने पुत्र शनिदेव से मिलने पहुंचे थे। उस समय घर पर कुछ न होने पर शनिदेव ने अपने पिता सूर्य देव को तिल अर्पित किया था। मकर संक्रांति तिथि पर सूर्य देव को तिल अर्पित की जाती है। इस दिन से पिता और पुत्र यानी सूर्य देव और शनिदेव के संबंध मधुर हुए थे।
कई ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, सूर्य पूरे साल में 12 बार अपना राशि का परिवर्तन करते है सूर्य जिस राशि में गोचर करते है उस राशि के नाम से संक्रांति जाना जाता है इस दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते है जिसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस दिन दान पुन्य करने का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है। मकर संक्रांति के दिन गंगा, यमुना, गोदावरी ,सरस्वती जैसे नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड का दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन से शुभ कार्य आरंभ हो जाते है।
आज मनाया जा रहा है मकर संक्रांति
आज यानी 14 जनवरी 2025 दिन मंगलवार समय दोपहर 02:48 मिनट पर सूर्य धनु राशि से मकर राशि में गोचर करेंगे।
क्या है मकर संक्रांति का पुण्यकाल
सुबह 09 :30 से 05:20 संध्या
कुल अवधि 08 घंटा 17 मिनट
महापुण्यकाल सुबह 09:30 से 10:50 सुबह तक
कुल अवधि 01 घंटा 47 मिनट।
इस पर्व का भगौलिक महत्व
यह त्योहार माघ के महीने में मनाया जाता है क्योंकि इस समय किसान खेत से धान का फसल कटाई करके तेलहन और दलहन की फसल की कटाई का दौर आरंभ होता है शरद ऋतू का अंत तथा बसंत ऋतू का आरंभ होता है। इसलिए किसान मकर संक्रांति को बहुत धूम -धाम से मनाते है। उतर भारत में संक्रांति के पर्व को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है इस दिन खिचड़ी खाने का प्रबधान है खिचड़ी में चावल -दाल तील को एक साथ मिलाकर पकाया जाता है जिसे पेट की प्रक्रिया को ठीक करता है।
बहुत सुपाच्य भोजन होता है स्वास्थ्य के लिए ठीक रहता है तथा वयोक्ति को शुकून मिलता है खिचड़ी शनि के कारक माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन स्नान करने से ग्रह दोष दूर होते है इस दिन कम्बल, तील ,काला उरद ,गुड का दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होता है।
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