US सोल्जर से बाबा मोक्षपुरी, AIR 731 वाले आईआईटियन से युवा योगी तक, ब्रह्मांड के अनगणित ग्रहों-नक्षत्रों के दुर्लभ संयोग में नजर आ रहा अद्भुत-अद्भुतम्-अद्भुतास दृश्य
महाकुंभ कब होगा कहां होगा ये हम नहीं हमारा सोलर सिस्टम तय करता है। सन और जूपिटर तय करते हैं। जब सूर्य मकर राशी में और ब्रहस्पति वृषभ राशी में प्रवेश करते हैं तब प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर महाकुंभ आयोजित होता है।
30 लाख लोग भगवान सूर्य को जल देने के लिए एक साथ नदी में उतर जाएं तो क्या होगा? पांच करोड़ लोग एक साथ प्रचंड जय घोष के साथ हर हर महादेव का जयकारा लगाते नजर आए तो? 45 करोड़ लोग एक टेंट सिटी में 45 दिनों के लिए एक साथ ठहर जाए तो? आप इसे अजूबा या चमत्कार की कहेंगे। इसी चमत्कार का नाम महाकुंभ है। ये तो बस महाकुंभ की दो चार झलकियों को मैंने शब्द दिया है। अपनी पूर्णता में महाकुंभ का मनोरम दृश्य कैसा है ये बताने के लिए बाबा तुलसीदास और वेद व्यास की वाणी चाहिए जो मेरे पास नहीं है। 12 सालों की लंबी प्रतीक्षा के बाद महाकुंभ आता है। महाकुंभ कोई इंसानों का बनाया त्यौहार नहीं है। ये ब्रह्मांड के अनगणित ग्रहों-नक्षत्रों का दुर्लभ संयोग है। महाकुंभ कब होगा कहां होगा ये हम नहीं हमारा सोलर सिस्टम तय करता है। सन और जूपिटर तय करते हैं। जब सूर्य मकर राशी में और ब्रहस्पति वृषभ राशी में प्रवेश करते हैं तब प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर महाकुंभ आयोजित होता है।
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चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसत तिलक देत रघुबीर
जब संत शब्द सुनते हैं, तो दिमाग में ऐसे व्यक्ति का खाका खिंच जाता है जो दुनियादारी से दूर है। ‘कुछ लेना न देना मगन रहना’ वाली बात हो जिसमें। कबीर को संत कहते हैं लोग। कोई निर्मोही सा आदमी हुआ तो उसे कह देते हैं बड़ा संत आदमी है, किसी को कुछ नहीं कहता। जब जीवन में अपने लिए पाने का भाव खत्म हो जाता है, दूसरों के लिए काम करने का भाव जन्म लेता है। तब एक इंसान बनता है संत या फिर कहे योगी। महाकुंभ में आध्यात्म, संस्कृित के अलग अलग रंग देखने को मिल रहे हैं। ऐसे ही एक संत से जब उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने चेहरे पर मुस्कान लिए पलट कर कहा मसानी गोरख, बटुक भैरव, राघव, माधव, सर्वेश्वरी, जगदीश्वरी या फिर जगदीश, ये मेरे नाम हैं, कौन सा बताऊं। अभय सिंह के नाम से पढ़ाई लिखाई करने वाले आईआईटी मुंबई के इस एयरोस्पेस इंजनीयिर की कहानी जितनी उतार-चढ़ावों से भरी है उतना ही रहस्य उनकी जिंदगी को लेकर है। करोड़ों का पैकेज, कॉरपोरेट का आकर्षण छोड़कर प्रयागराज की रेती पर क्या कर रहा है ये युवा योगी? ऐसे ही कभी अमेरिकी सेना में अपनी सेवाएं देने वाले राइफल मैन लोगों के बीच चर्चा के केंद्र में हैं। बाबा का नाम बाबा मोक्षपुरी है।
कौन हैं आईआईटी बाबा अभय सिंह?
अभय सिंह मूल रूप से हरियाणा के निवासी हैं। उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री आईआईटी बॉम्बे से पूरी की। अपने शैक्षणिक जीवन के दौरान, उन्होंने दर्शनशास्त्र में गहरी रुचि विकसित की और प्लेटो, सुकरात के कार्यों का अध्ययन करके और उत्तर आधुनिकतावाद की खोज करके जीवन की गहरी समझ हासिल की। बाद में अभय सिंह ने अपना नाम बदलकर मसानी गोरख रख लिया और अपना जीवन भगवान शिव को समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें राघव और जगदीश जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। जेईई इंट्रेंस में 731वीं रैंक लाकर पास हुआ अभय अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद, आईआईटी बाबा ने डिजाइन में मास्टर डिग्री हासिल की और फोटोग्राफी के माध्यम से अपने रचनात्मक पक्ष का पता लगाया। अपनी शैक्षणिक और कलात्मक उपलब्धियों के बावजूद, उन्हें एहसास हुआ कि उनकी सच्ची पुकार आध्यात्मिकता थी और इससे उनके जीवन में बहुत बदलाव आया।
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शन्यू की अवस्था के बाद जागता है इंसान
बाबा अभय सिंह ने अपने सपनों को पूरा करने कि लिए आईआईटी की इंटर्नशिप के दौरान 2 महीने तक उत्तराखंड में फोटोग्राफी की. फिर फैशन जगत की प्रसिद्ध पत्रिका वोग और जीक्यू के लिए काम किया। डिजाइनिंग के बाद जब नौकरी के क्षेत्र में आए तो पहली नौकरी 12 लाख की मिली। कुंभ मेले में अभय सिंह ने कहा कि उनकी आंतरिक खोज ने उन्हें अपना वैज्ञानिक करियर छोड़कर एक भिक्षु का जीवन अपनाने के लिए प्रेरित किया। महाकुंभ मेला 2025 में उन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन करते हुए कहा कि यह मंच सबसे अच्छा मंच है। अभय सिंह की कहानी ने कई लोगों को प्रेरित किया है और उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. एक सफल इंजीनियर से एक भिक्षु के रूप में उनका परिवर्तन अर्थ और पूर्ति की सार्वभौमिक खोज पर प्रकाश डालता है जो भौतिकवादी लाभ से परे है। अभय सिंह कहते हैं कि उन्होंने सारी धर्मों की किताबें पढ़ी हैं। कुरान, हदीस, बौद्ध धर्म की किताबें. चीन, इजिप्ट का इतिहास, भौतिकी, विज्ञान, गणित, सांख्यिकी, वास्तुशास्त्र, ज्योतिषी सब कुछ पढ़ डाला. ये है क्या? मैं ठंडे पानी से नहाने का अभ्यास करता। हाथ सिकुड़ जाता, कांपने लगता।
कभी अमेरिकी सेना के सिपाही अब बन गए बाबा मोक्षपुरी
अमेरिकी सेना के पूर्व सैनिक बाबा मोक्षपुरी, जिन्हें माइकल के नाम से जाना जाता है, ने अपनी पत्नी और बेटे के साथ भारत की पहली यात्रा के बाद आध्यात्मिकता को अपनाया। इसी यात्रा के दौरान बाबा मोक्षपुरी ने ध्यान और योग की खोज की और उन्हें सनातन धर्म की शिक्षाओं से परिचित कराया गया। भारत की सांस्कृतिक समृद्धि ने आध्यात्मिक जागृति पैदा की और अब उनका मानना है कि यह एक दैवीय आह्वान था। उन्होंने कहा कि मैं अलग नहीं हूं। दरअसल, एक समय ऐसा भी था जब मैं भी किसी आम आदमी की तरह ही था। मुझे बाहर जाना, अपनी पत्नी और परिवार के साथ समय बिताना बहुत पसंद था। उन्होंने कहा कि मेरे जीवन में बड़ा बदलाव तब आया जब मेरे बेटे की अकाल मौत हो गई। मुझे लगा कि संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है। ऐसे समय में ध्यान और योग ने मुझे काफी सहारा दिया। मुझे इसके जरिए ही कठिन समय से बाहर निकलने में मदद मिली।
2016 के उज्जैन कुंभ से हर महाकुंभ में शामिल होने का लिया संकल्प
माइकल उर्फ बाबा मोक्षपुरी ने बताया कि उनका जन्म अमेरिका में हुआ था। साल 2000 में वह पहली बार पत्नी और बेटे के साथ भारत आए थे। उन्होंने इसे अपने जीवन की सबसे यादगार घटना बताया और कहा कि भारत आकर मैंने ध्यान और योग के बारे में जाना। उन्होंने कहा कि पहली बार इस दौरान सनातन धर्म के बारे में उन्हें समझने का मौका मिला। भारतीय संस्कृति ने मुझे काफी प्रभावित किया। यहीं से मेरी आध्यात्मिक जागृति प्रारंभ हुई। बाबा मोक्षपुरी ने साल 2016 के उज्जैन कुंभ से हर महाकुंभ में शामिल होने का संकल्प लिया। इसके बाद से वह हर महाकुंभ में हिस्सा लेते रहे हैं।
पर्यावरण बाबा
पर्यावरण बाबा या आचार्य महामंडलेश्वर अरुणा गिरि भी उन बाबाओं में से हैं जिनके महाकुंभ मेले में आगमन ने ध्यान खींचा। अगस्त 2016 में बाबा ने वैष्णो देवी से कन्याकुमारी तक 27 लाख पौधे वितरित किए, और तब से वह अपने अनुयायियों को दो पेड़ एक अंतिम संस्कार के लिए और एक पीपल का पेड़ ऑक्सीजन के लिए लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। मैं अब तक 82 अनुष्ठान कर चुका हूं। लगभग 30 देशों के मेरे भक्तों ने हमारे देश में 1 करोड़ से अधिक पेड़ लगाने का संकल्प लिया है। 2016 में वैष्णो देवी से कन्याकुमारी तक मार्च के दौरान, हमने 27 राज्यों में पेड़ लगाए। तभी से भक्त मुझे पर्यावरण बाबा कहने लगे।
चाय वाले बाबा
चाय वाले बाबा के नाम से मशहूर, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के पूर्व चाय विक्रेता दिनेश स्वरूप ब्रह्मचारी ने सिविल सेवा के उम्मीदवारों को मुफ्त कोचिंग देने के लिए 40 साल से अधिक समय समर्पित किया है। उल्लेखनीय रूप से, वह ऐसा बिना एक शब्द बोले और चाय के अलावा कुछ भी खाए बिना करता है। बाबा ने मौन व्रत ले रखा है और प्रतिदिन केवल दस कप चाय पर जीवित रहते हैं। एबीपी न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, उनका मानना है कि चाय में मौजूद दूध उन्हें सभी आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है।
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