राज्य सरकार का महत्वाकांक्षी एस्टोल प्रोजेक्ट हुआ पूरा, 4.50 लाख लोग होंगे लाभान्वित, 10 जून को पीएम करेंगे उद्घाटन
राज्य सरकार का कहना है कि यह परियोजना वलसाड जिले के पहाड़ी इलाके के दूरदराज आदिवासी क्षेत्र के 174 गाँवों और 1028 हेमलेट्स (मुख्य गाँव से दूर 10-15 घरों के समूह वाले क्षेत्र) जिन्हें गुजराती में फलिया कहते हैं, में रहने वाले 4.50 लाख लोगों के जीवन में एक नया बदलाव लेकर आएगी।
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर 10 जून को गुजरात के दौरे पर हैं और अपनी इस यात्रा के दौरान वे कई बड़ी परियोजनाओं को गुजरात की जनता को समर्पित करेंगे। इसी में एस्टोल प्रोजेक्ट का उद्घाटन भी शामिल है। राज्य सरकार का कहना है कि यह परियोजना वलसाड जिले के पहाड़ी इलाके के दूरदराज आदिवासी क्षेत्र के 174 गाँवों और 1028 हेमलेट्स (मुख्य गाँव से दूर 10-15 घरों के समूह वाले क्षेत्र) जिन्हें गुजराती में फलिया कहते हैं, में रहने वाले 4.50 लाख लोगों के जीवन में एक नया बदलाव लेकर आएगी। गुजरात सरकार के इस महत्वपूर्ण परियोजना के संदर्भ में जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल ने कहा, ‘‘वलसाड जिले के धरमपुर और कपराडा क्षेत्र में एस्टोल प्रोजेक्ट को पूरा करना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन मुझे खुशी है कि हमारे इंजीनियर्स ने सभी चुनौतियों को पार करते हुए इसे पूरा कर लिया है। इंजीनियरिंग के नज़रिए से भी एस्टोल प्रोजेक्ट एक बड़ी चमत्कारिक उपलब्धि है। इससे लगभग 200 मंजिल (1875 फीट) की ऊँचाई तक पानी को ऊपर उठाकर इस पहाड़ी इलाके में जल वितरण को हमने संभव बनाया है। माननीय प्रधानमंत्री द्वारा इसके उद्घाटन के बाद धरमपुर और कपराडा क्षेत्र के 174 गाँवों में रहने वाले 4.50 लाख लोगों का जीवन पूरी तरह से बदल जाएगा।’’
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गुजरात के लिए एस्टोल प्रोजेक्ट क्यों है विशेष
आदिवासी क्षेत्र धरमपुर और कपराडा की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि वहाँ न तो बरसात की पानी संचय हो पाता है और न ही भूजल की स्थिति अच्छी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहाँ की अधिकतर ज़मीन पथरीली है और इस वजह से बरसात के समय में यहाँ मौजूद जलाशयों में पानी तो भर जाता है लेकिन वह पानी ज़मीन के नीचे नहीं जा पाता, जिस कारण बरसात के कुछ महीने बाद ही यहाँ के जलाशय पूरी तरह से सूख जाते हैं। साल 2018 में 586.16 करोड़ रुपए की लागत से इन पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों तक रोजाना पीने का पानी पहुँचे, इस उद्देश्य के साथ राज्य सरकार ने एस्टोल प्रोजेक्ट की शुरुआत की।
क्या है एस्टोल परियोजना
मधुबन बाँध (वॉटर होल्डिंग ग्रॉस कैपेसिटी 567 मिलियन क्यूबिक मीटर) के पानी को पंपिंग स्टेशन्स से ऊपर उठाकर (Lift Technique) लोगों के घरों तक पानी पहुँचाना की योजना है
इस प्रोजेक्ट के तहत 28 पंपिंग स्टेशन्स स्थापित किए गए, जिनकी क्षमता 8 मेगावॉट वोल्ट एम्पियर (MVA) है जो रोज़ाना लगभग 7.5 करोड़ लीटर पीने का पानी 4.50 लाख लोगों तक पहुँचाएंगे।
इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत 81 किमी. की पंपिंग लाइन और 855 किमी. की डिस्ट्रिब्यूशन लाइन और 340 किमी. लंबी छोटी-छोटी बस्तियों तक पानी पहुँचाने के लिए पाइपलाइन बिछाई गई
शुद्ध पीने के पानी की उपलब्धता के लिए दो फिल्टर प्लान्ट (प्रत्येक की क्षमता 3.3 करोड़ लीटर पानी प्रति दिन) की स्थापना, जिसकी कुल क्षमता 6.6 करोड़ लीटर पानी प्रति दिन है।
पानी को स्टोर करने के लिए इन क्षेत्रों में 6 ऊँची टंकियों (0.47 करोड़ लीटर की क्षमता), 28 अंडर ग्राउंड टैंकियों (7.7 करोड़ लीटर की क्षमता) और गाँवों व बस्तियों में ज़मीन स्तर के 1202 टंकियों (4.4 करोड़ लीटर की क्षमता) का निर्माण किया गया है।
पाइपलाइन को बिछाने में भी किया गया है विशेष तकनीक का उपयोग
यहाँ ज़मीन की संरचना के अनुसार ही यहाँ पाइपें बिछाई गईं जो कि कहीं पर ऊंची हैं तो कहीं पर नीची हैं
इस वजह से इन पाइपों में कुछ-कुछ स्थानों पानी का दबाव सामान्य है तो कुछ स्थानों में पानी का दबाव सामान्य की अवस्था बहुत अधिक (40 प्रति किग्रा. सेन्टीमीटर स्कॉयर) है। यह दबाव इतना अधिक है कि पाइपलाइनों को काफी अधिक नुकसान पहुंचा सकता है
इस समस्या के समाधान के रूप में मुख्य पाइप के अंदर इसमें 12 मिमी. मोटाई की माइल्ड स्टील पाइप का उपयोग किया है, ताकि मुख्य पाइप को फटने से बचाया जा सके।
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अभियंत्रिकी के क्षेत्र में एक बड़ा चमत्कार है एस्टोल प्रोजेक्ट
गुजरात सरकार का एस्टोल प्रोजेक्ट इंजीनियरिंग के नज़रिए से किसी चमत्कार से कम नहीं है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस प्रोजेक्ट के तहत मधुबन बाँध के पानी को लगभग 200 मंजिला की उँचाई तक पानी को ऊपर उठाकर (Lift Technique) धरमपुर के 50 गाँवों और कपराडा के 124 गाँवों (कुल 174 गाँवों) तक पहुँचाया जाएगा। यह पहली बार होगा, जब मधुबन बाँध के पानी को पीने के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। इसके पहले इस बाँध का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता था। हालाँकि, पीने के पानी के साथ-साथ इस बाँध के पानी को सिंचाई के लिए भी पहले की तरह ही उपयोग में लाया जाता रहेगा।
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