सोरेन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आदिवासियों के लिए सरना धार्मिक संहिता को मान्यता देने की मांग की

Hemant Soren
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पत्र में कहा गया है, ‘‘मुझे आदिवासी होने पर गर्व है और एक आदिवासी मुख्यमंत्री होने के नाते मैं आपसे विनम्र निवेदन करता हूं... इस आदिवासी/सरना धर्म संहिता की बहुप्रतीक्षित मांग पर जल्द से जल्द सकारात्मक निर्णय लें।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘आज पूरा विश्व बढ़ते प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंतित है। मौजूदा समय में एक ऐसे धर्म को मान्यता देना जिसका सार प्रकृति की रक्षा करना है, न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में प्रकृति प्रेम का संदेश फैलाएगा।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर आदिवासियों के लिए ‘सरना’ धार्मिक संहिता को मान्यता देने की मांग की। सोरेन ने दावा किया कि राज्य में आदिवासियों की आबादी पिछले आठ दशकों में 38 प्रतिशत से घटकर 26 प्रतिशत हो गई है। उन्होंने कहा, ‘‘आदिवासियों के पारंपरिक धार्मिक अस्तित्व की रक्षा की चिंता... निश्चित रूप से एक गंभीर प्रश्न है। आज आदिवासी/सरना धार्मिक संहिता की मांग उठ रही है ताकि प्रकृति की पूजा करने वाले ये आदिवासी समुदाय अपनी पहचान को लेकर आश्वस्त हो सकें।’’ सोरेन ने मोदी को लिखे पत्र में कहा, ‘‘वर्तमान में जब कुछ संगठन समान नागरिक संहिता की मांग उठा रहे हैं तो ऐसे में आदिवासी/सरना समुदाय की इस मांग पर सकारात्मक पहल उनके संरक्षण की दिशा में निश्चित रूप से अनिवार्य है।’’

सोरेन ने मोदी को पत्र में लिखा, ‘‘आप जानते हैं कि आदिवासी समुदाय में कई ऐसे समूह हैं जो विलुप्त होने के कगार पर हैं और अगर उन्हें सामाजिक न्याय के सिद्धांत पर संरक्षित नहीं किया गया, तो और संस्कृति के साथ-साथ उनका अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा।’’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आदिवासियों को अन्य धर्मों के अनुयायियों से अलग पहचान और उनके संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक सरना धार्मिक संहिता आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यदि ऐसी कोई संहिता अस्तित्व में आती है तो उनकी जनसंख्या का स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है और आदिवासियों की भाषा, संस्कृति, इतिहास को संरक्षित और बढ़ावा दिया जा सकता है।

पत्र में कहा गया है कि 1951 की जनगणना में आदिवासियों के लिए एक अलग संहिता का प्रावधान था, लेकिन कुछ कारणों से बाद के दशकों में यह व्यवस्था समाप्त कर दी गई। सोरेन ने कहा कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 12 करोड़ आदिवासी रहते हैं, जिनमें से एक करोड़ से अधिक झारखंड में हैं। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘झारखंड की एक बड़ी आबादी सरना धर्म को मानती है। इस धर्म के जीवंत ग्रंथ जल, जंगल, जमीन और प्रकृति ही हैं। सभी प्रचलित धर्मों की संस्कृति, पूजा-पद्धतियां, आदर्श एवं मान्यताएं भी भिन्न हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए न सिर्फ झारखंड, बल्कि पूरे देश का आदिवासी समुदाय अपने धार्मिक अस्तित्व की रक्षा के लिए पिछले कई वर्षों से संघर्ष कर रहा है।’’

इससे पूर्व झारखंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से जनगणना में ‘सरना’ को एक अलग धर्म के रूप में शामिल करने संबंधी प्रस्ताव को पारित किया था।सोरेन ने इस साल की शुरुआत में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से आग्रह किया था कि वो ‘सरना संहिता’ को एक विशिष्ट मान्यता प्राप्त धार्मिक श्रेणी के रूप में शामिल करने के प्रस्ताव को केंद्र की मंजूरी दिलाने में राज्य की सहायता करें। पत्र में कहा गया है, ‘‘मुझे आदिवासी होने पर गर्व है और एक आदिवासी मुख्यमंत्री होने के नाते मैं आपसे विनम्र निवेदन करता हूं... इस आदिवासी/सरना धर्म संहिता की बहुप्रतीक्षित मांग पर जल्द से जल्द सकारात्मक निर्णय लें।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘आज पूरा विश्व बढ़ते प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंतित है। मौजूदा समय में एक ऐसे धर्म को मान्यता देना जिसका सार प्रकृति की रक्षा करना है, न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में प्रकृति प्रेम का संदेश फैलाएगा।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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