एससी/एसटी कानून, आईपीसी का दुरुपयोग न्याय प्रणाली को अवरुद्ध कर रहा है : कर्नाटक उच्च न्यायालय
दोनों भाइयों के वकील ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि याचिकाकर्ताओं के पास पिछले 50 साल से इस संपत्ति का मालिकाना हक है तथा शिकायतकर्ता का परिवार इन सभी बातों को अच्छी तरह जानता है। न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा कि दीवानी मुकदमे को आपराधिक रंग दिया गया। अदालत ने कहा कि आपराधिक मुकदमे को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती। पुरुषोत्तम ने दावा किया था कि संपत्ति के 50 साल पहले हुए लेनदेन में फर्जी कागजात का इस्तेमाल किया गया था। उच्च न्यायालय ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि ये दस्तावेज 50 वर्ष से सार्वजनिक हैं तथा इन्हें कभी चुनौती नहीं दी गयी। उच्च न्यायालय ने पटेल बंधुओं की याचिका मंजूर कर ली तथा उनके खिलाफ आपराधिक मामला रद्द कर दिया।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने संपत्ति विवाद को लेकर दो भाइयों के खिलाफ दायर एक मुकदमे को रद्द करते हुए कहा कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) कानून के दुरुपयोग का इससे बेहतर कोई और उदाहरण नहीं हो सकता। अदालत ने कहा कि एससी/एसटी कानून और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत झूठे मामले आपराधिक न्याय प्रणाली को अवरुद्ध कर रहे हैं। अदालत ने कहा, ‘‘यह मामला इस कानून के प्रावधानों तथा आईपीसी के दंडात्मक प्रावधानों के दुरुपयोग का ‘अनोखा’ उदाहरण बनेगा। यह उन मामलों में से है जो आपराधिक न्याय प्रणाली को अवरुद्ध करते हैं और अदालतों का अच्छा-खासा समय बर्बाद करते हैं, चाहे वह मजिस्ट्रेट अदालत हो, सत्र अदालत या यह अदालत (उच्च न्यायालय), जबकि वे मुकदमे अटके रह जाते हैं जिनमें वादी वाकई पीड़ित होते हैं।’’
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने रसिक लाल पटेल और पुरुषोत्तम पटेल की याचिका पर हाल में दिये फैसले में कहा, ‘‘मामले के सारे पहलुओं पर गौर करने के बाद यह सामने आया कि इस कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग किया गया है। यह मामला उन सैकड़ों मामलों का सबसे अच्छा उदाहरण है, जिनमें गलत उद्देश्यों या समानांतर चलने वाले मुकदमों में आरोपियों पर दबाव बनाने के लिए इस कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग किया गया।’’ याचिकाकर्ताओं के पिता के. जे. पटेल ने 50 साल पहले कृष्णमूर्ति नामक एक व्यक्ति से संपत्ति खरीदी थी। कृष्णमूर्ति का बेटा पुरुषोत्तम दोनों भाइयों (याचिकाकर्ताओं) के खिलाफ संपत्ति को लेकर एक दीवानी मुकदमा लड़ रहा है। उसने 2018 में पटेल बंधुओं के खिलाफ एक शिकायत दर्ज करायी और उन पर एससी/एसटी अत्याचार कानून तथा आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया।
दोनों भाइयों ने उच्च न्यायालय में इसे चुनौती दी। दोनों भाइयों के वकील ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि याचिकाकर्ताओं के पास पिछले 50 साल से इस संपत्ति का मालिकाना हक है तथा शिकायतकर्ता का परिवार इन सभी बातों को अच्छी तरह जानता है। न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा कि दीवानी मुकदमे को आपराधिक रंग दिया गया। अदालत ने कहा कि आपराधिक मुकदमे को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती। पुरुषोत्तम ने दावा किया था कि संपत्ति के 50 साल पहले हुए लेनदेन में फर्जी कागजात का इस्तेमाल किया गया था। उच्च न्यायालय ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि ये दस्तावेज 50 वर्ष से सार्वजनिक हैं तथा इन्हें कभी चुनौती नहीं दी गयी। उच्च न्यायालय ने पटेल बंधुओं की याचिका मंजूर कर ली तथा उनके खिलाफ आपराधिक मामला रद्द कर दिया।
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