पीएम मोदी की ओर से दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई, भारत की तिब्बत नीति में बदलाव का संदेश
दलाई लामा की जब भी बात होती है चीन चौकन्ना हो जाता है। लामा दुनिया में जिस भी देश में जाते हैं। वहां से चीन की आपत्ति से दो-चार होना पड़ता है। पीएम मोदी की तरफ से दलाई लामा को फोन करके जन्मदिन की बधाई दी गई, प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार बधाई संदेश को सार्वजनिक किया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलाई लामा को 86वें जन्मदिन की बधाई दी। इस बधाई संदेश को चीन के लिए कड़ा कूटनीतिक संदेश माना जा रहा है। प्रधानमंत्री ने अपने ट्विट में लिखा है कि 86वें जन्मदिन पर मैंने दलाई लामा से फोन पर बात की और उन्हें शुभकामनाएं दीं। हम उनके लंबे व स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं।’’2013 में अपने जन्मदिन पर दलाई लामा के बधाई संदेश पर शुक्रिया अदा करने के बाद से प्रधानमंत्री मोदी ने दलाई लामा से अपने किसी संदेश को पहली बार सार्वजनिक किया है।
चीन द्वारा तिब्बत का अतिक्रमण
दलाई लामा की जब भी बात होती है चीन चौकन्ना हो जाता है। लामा दुनिया में जिस भी देश में जाते हैं। वहां से चीन की आपत्ति से दो-चार होना पड़ता है। सबसे बड़ा सवाल है कि एक 86 साल के बौद्ध धर्म गुरु से चीन क्यों डरता है? इस सवाल का जवाब जानना है तो तिब्बत के इतिहास में झांकना होगा। अक्टूबर 1949 में माओ द्वारा, महज 15 साल के संघर्ष और हिंसक लड़ाई के बाद, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की स्थापना के साथ हुई। चेयरमैन माओत्से तुंग के एजेंडे में तिब्बत को हड़पना (और दंडित करना) शामिल था, जिसे उन्होंने ’चीन की दाहिनी हथेली’ कहा था, जबकि लद्दाख, सिक्किम, भूटान, नेपाल और अरुणाचल प्रदेश हथेली की ‘पांच अंगुलियां’ हैं। चीन ने 7 अक्टूबर 1950 को तिब्बत पर अपने आक्रमण के साथ भारत का सामना किया और न केवल तिब्बत और भारत की बल्कि पूरे एशिया की स्थिरता को खतरे में डाल दिया।
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दलाई लामा से क्यों घबराता है चीन
दलाई लामा के नेतृत्व में चीन के खिलाफ आजादी के लिए विद्रोह हुआ। बाद में 14वें दलाई लामा तेंजिन ग्यात्सो को तिब्बत छोड़ना पड़ा। 1959 में दलाई लामा अपने कई समर्थकों के साथ भारत आए। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 23 साल की थी। दलाई लामा को भारत में शरण मिलना चीन को अच्छा नहीं लगा। तब चीन में माओत्से त्युंग का शासन था। चीन और दलाई लामा के बीच तनाव बढ़ता गया और उसे डर सताता रहा कि वो भारत के साथ मिलकर कोई साजिश न रचें।
भारत की तिब्बत नीति में बदलाव का संदेश
1 जुलाई को कम्युनिस्ट पार्टी के 100 साल पूरे होने पर भी भारत ने चीन को बधाई नहीं दी थी। लेकिन पिछले साल दलाई लामा के जन्मदिन के ही दिन चीन ने गलवान से पीछे हटने का वादा किया था और प्रधानमंत्री की ओर से उन्हें जन्मदिन की बधाई नहीं दी गई थी। ऐसा नहीं है कि पीएम मोदी की तरफ से दलाई लामा को फोन करके जन्मदिन की बधाई नहीं दी गई, लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार बधाई संदेश को सार्वजनिक किया गया। इसके साफ मायने ये हैं कि भारत अब इस सोच से बाहर निकल रहा है कि चीन उसका कभी हितैषी हो सकता है। पिछले महीने ही राजनाथ सिंह ने 63 पूलों और 12 सड़कों का उद्धाटन किया। इसके साथ ही रक्षा मंत्री सैनिकों का हौसला भी बढ़ाते हुए देखे गए थे। अब प्रधानमंत्री ने बधाई संदेश देकर उसे सार्वजनिक किया। इसके अलावा चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ द्वारा भी बताया गया है कि अब पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है। पीएम मोदी के संदेश के सीधे मायने यही है कि वो चीन को इस बात का अहसास कराना चाहते हैं कि आपके पास अगर ये रास्ता है तो हमारे पास भी इसकी काट मौजूद है। भारत चीन को ये बता रहा है और यही काम ताईवान ने भी किया है।
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