भगत सिंह को पकड़ने वालों के नाम पर वेलफेयर स्कीम के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका, जेपी सांडर्स और चानन सिंह के नाम पर मेमोरियल फंड
हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को पंजाब पुलिस नियमों में संशोधन की मांग करने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है कि भगत सिंह को पकड़ने वाले ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी सॉन्डर्स और हेड कांस्टेबल चानन सिंह के नाम पर कल्याण कोष दिया जाता है। जो शहीद ए आजम का अपमान है।
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में शहीद ए आजम भगत सिंह से जुड़ा एक अनोखा मामला सामने आया है। जिसमें भगत सिंह को पकड़ने वालों के नाम पर फंड के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका डाली गई। हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को पंजाब पुलिस नियमों (हरियाणा के लिए लागू) में संशोधन की मांग करने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है कि भगत सिंह को पकड़ने वाले ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जे पी सॉन्डर्स और हेड कांस्टेबल चानन सिंह के नाम पर कल्याण कोष दिया जाता है। जो शहीद ए आजम का अपमान है।
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याचिका एक किताब के हवाले से दाखिल की गई है। इस याचिका में पुस्तक के हवाले से कहा गया है कि यदि चानन सिंह भगत सिंह को पकड़ने में कामयाब हो जाता है तो भगत सिंह एसेंबली में बम फेंकने जैसे बड़े मिशन को अंजाम नहीं दे पाते। याचिका में कहा गया कि चानन सिंह और सांडर्स के नाम पर मेमोरियल फंड दिया जा रहा है। याचिकाकर्ता एलएलबी के छात्र द्वारा उठाया गया मुख्य कानूनी मुद्दा यह है कि क्या पंजाब पुलिस नियम, 1934 के नियम 14.29 के प्रावधानों को बनाए रखना, वह भी आजादी के 75 साल बाद असंवैधानिक है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) का उल्लंघन है। पंजाब सरकार ने 2003 में पंजाब पुलिस के दिवंगत डीआईजी अवतार सिंह अटवाल के नाम पर पहले ही स्मारक कोष का नाम बदल दिया है। हालाँकि, हरियाणा (जिस पर पंजाब पुलिस के नियम लागू हैं) अभी भी पंजाब पुलिस नियमों के 14.29 के प्रावधानों को बरकरार रखा हुआ है।
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हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने याचिका पर संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया है। सॉन्डर्स-चनन सिंह मेमोरियल फंड का उद्देश्य उन पुलिस अधिकारियों के परिजनों की शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करना है जो अपने परिवारों को बेसहारा छोड़कर सेवा में रहते हुए मर जाते हैं या मारे जाते हैं। चिकाकर्ता ने कहा कि देशभक्ति और राष्ट्रवादी भावनाओं के साथ याचिकाकर्ता सहित नागरिकों की भावनाएं इस तरह के प्रावधानों से आहत होती हैं, क्योंकि ऐसे प्रावधान असंवैधानिक घोषित किए जाने के लायक हैं।
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