गोपीनाथ मुंडे की विरासत को आगे नहीं बढ़ा पाई पंकजा, भाई के हाथों गंवाया पिता का गढ़
पंकजा मुंडे का मुकाबला उनके चचेरे भाई और विधान परिषद में विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे से हुआ और हैरान करने वाली बात ये है कि पंकजा को उनके चचेरे भाई और एनसीपी प्रत्याशी धनंजय मुंडे ने 30768 वोटों से हरा दिया है।
चुनाव कोई भी हो, परली विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव जबर्दस्त खींचतान से भरा और संघर्षपूर्ण रहता है। चुनावों में सफलता और नाकामी का गणित दो बहन-भाई और मुंडे परिवार के लोगों के साथ जोड़कर देखा जाता है। राज्य की ग्रामीण विकास तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे और विधान परिषद में विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे के आमने-सामने होने की वजह से इस विधानसभा सीट एक बेहद ही रोमांचक मुकाबला देखने को मिला और सभी की निगाहें इसी सीट के नतीजे पर टिकी थी। बीड की परली विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी पंकजा गोपीनाथ मुंडे चुनाव हार गई हैं।
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पंकजा मुंडे का मुकाबला उनके चचेरे भाई और विधान परिषद में विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे से हुआ और हैरान करने वाली बात ये है कि पंकजा को उनके चचेरे भाई और एनसीपी प्रत्याशी धनंजय मुंडे ने 30768 वोटों से हरा दिया है। गौरतलब है कि दोनों के बीच लड़ाई केवल विधानसभा सीट के लिए नहीं है, बल्कि भाजपा के वरिष्ठ नेता (दिवंगत) गोपीनाथ मुंडे की राजनीतिक विरासत को लेकर भी थी। 2009 तक, धनंजय अपने चाचा के निर्वाचन क्षेत्र के कार्यों की देखरेख कर रहे थे। लेकिन जब गोपीनाथ मुंडे ने संसद के लिए चुने जाने पर अपनी बेटी को विधानसभा चुनाव के लिए नामित किया तब दोनों के बीच मतभेद पैदा हो गए। चाचा-भतीजे में दूरी इतनी बढ़ गई कि धनंजय ने राष्ट्रवादी पार्टी का दामन थाम लिया। जिसके बाद शुरूआत धनंजय के एनसीपी में शामिल होने और 2012 में अपने चाचा को चुनौती देने से हुई। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में धनंजय मुंडे अपनी बहन पंकजा के खिलाफ मैदान में उतरे, लेकिन पंकजा ने उन्हें 25,895 वोट से पराजित कर दिया। बाद में पंकजा को राज्य सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री बनाया गया। उधर, राकांपा ने भी धनंजय मुंडे को विधान परिषद में विपक्ष का नेता बनाते हुए मजबूती प्रदान की।
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