Marital Rape को अपराध बनाने की जरूरत नहीं, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का हलफनामा, कहा- ये कानूनी से ज्यादा सामाजिक मुद्दा
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि संसद ने वर्तमान मुद्दे पर सभी पक्षों की राय से अवगत होने और अवगत होने के बाद वर्ष 2013 में उक्त धारा में संशोधन करते हुए आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को बरकरार रखने का निर्णय लिया है।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करते हुए कहा कि वैवाहिक बलात्कार से संबंधित मामलों के देश में बहुत दूरगामी सामाजिक-कानूनी प्रभाव होंगे और इसलिए, सख्त कानूनी दृष्टिकोण के बजाय एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। केंद्र का कहना है कि मौजूदा कानूनों में महिलाओं के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं। विवाह पारस्परिक दायित्वों की संस्था है। भारत में शादी को पारस्परिक दायित्वों की संस्था माना जाता है, जहां कसमों को अपरिवर्तनीय माना जाता है। धारा 375 के अपवाद 2 को खत्म करने से विवाह की संस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि संसद ने वर्तमान मुद्दे पर सभी पक्षों की राय से अवगत होने और अवगत होने के बाद वर्ष 2013 में उक्त धारा में संशोधन करते हुए आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को बरकरार रखने का निर्णय लिया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि संवैधानिक वैधता के आधार पर आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को रद्द करने से विवाह संस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि इससे वैवाहिक रिश्ते पर गंभीर असर पड़ सकता है और विवाह संस्था में गंभीर गड़बड़ी हो सकती है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि तेजी से बढ़ते और लगातार बदलते सामाजिक और पारिवारिक ढांचे में, संशोधित प्रावधानों के दुरुपयोग से भी इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि किसी व्यक्ति के लिए यह साबित करना मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होगा कि सहमति थी या नहीं।
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