देश के भूले गौरव को पुनर्स्थापित करने की जरूरत: भागवत

Mohan Bhagwat
ANI

यहां ‘राष्ट्रवादी विचारकों’ के सम्मेलन ‘लोकमंथन-2024’ के समापन कार्यक्रम में भागवत ने कहा, ‘‘इसके लिए हमें पहले जड़ से अध्ययन करना होगा और अपने विचारों को उसी दायरे में रखना होगा। खासकर नई पीढ़ी को इसके बारे में सोचने की जरूरत है।’’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को भारत के भूले गौरव को फिर से स्थापित करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि भारत दुनिया से अच्छी चीजें ले सकता है लेकिन उसे अपनी आत्मा और प्रकृति को बरकरार रखना चाहिए।

यहां ‘राष्ट्रवादी विचारकों’ के सम्मेलन ‘लोकमंथन-2024’ के समापन कार्यक्रम में भागवत ने कहा, ‘‘इसके लिए हमें पहले जड़ से अध्ययन करना होगा और अपने विचारों को उसी दायरे में रखना होगा। खासकर नई पीढ़ी को इसके बारे में सोचने की जरूरत है।’’

उन्होंने कहा कि ‘बाहर’ से आने वाले सवालों का जवाब देने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि देश व्यावहारिक और दार्शनिक दुनिया में पहले ही जीत चुका है। भागवत ने बिना ज्यादा कुछ बताए कहा, ‘‘हार को छिपाने के लिए दुरुपयोग की प्रवृत्ति है। कुछ ऐसा ही हो रहा है। कुछ दिन पहले चुनाव हुए थे। आप इसे देख सकते हैं।’’

उन्होंने कहा कि पिछले 2,000 वर्षों में किये गए सभी प्रयोग (जिनमें ईश्वर में विश्वास करने वाले और विश्वास नहीं करने वाले, व्यक्तिवादी और समाजवादी भी शामिल हैं) लड़खड़ा गए और भारत की ओर देख रहे हैं। आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘हमें उन सवालों का जवाब क्यों देना चाहिए? हमें उनके नियमों के अनुसार उनके मैदान में कबड्डी क्यों खेलनी चाहिए? हमें दुनिया को अपने मैदान में लाना है।’’

भागवत ने देश के दार्शनिक ज्ञान से समर्थित विज्ञान के महत्व के बारे में बात करते हुए कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग में नैतिकता पर जोर देने वाले वैज्ञानिकों का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि भारत की मूल्य प्रणाली व्यक्ति की बुद्धिमत्ता पर जोर देती है और मुद्दों के प्रति भारत के दृष्टिकोण में तर्क और बुद्धिमत्ता शामिल है।

उन्होंने कहा कि देश को समस्याओं के प्रति अन्य दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता नहीं है। भारत विदेशों से अच्छी चीजें ले सकता है लेकिन उसकी अपनी आत्मा और संरचना होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘हमें अपने सनातन धर्म और संस्कृति को समसामयिक स्वरूप देने पर विचार करना होगा।’’ भागवत ने कहा, ‘‘हमें जो करना है वह यह है कि हमें भारत के भूले हुए गौरव को फिर से स्थापित करना है।’’

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने धर्मग्रंथों का उदाहरण देते हुए कहा कि वनवासियों के साथ कभी कोई भेदभाव नहीं था। केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय कोयला और खान मंत्री जी किशन रेड्डी भी कार्यक्रम को संबोधित करने वालों में शामिल थे।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़