प्रशासनिक प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिये आत्मचिंतन जरूरी: उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि प्रशासनिक सेवाओं को प्रभावी और कार्यकुशल बनाने के लिये लोकसेवकों को अपने दायित्व निर्वहन के बारे में आत्मचिंतन करने की जरूरत है।
नयी दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि प्रशासनिक सेवाओं को प्रभावी और कार्यकुशल बनाने के लिये लोकसेवकों को अपने दायित्व निर्वहन के बारे में आत्मचिंतन करने की जरूरत है। नायडू ने 12 वें लोक सेवा दिवस के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुये प्रशासनिक अधिकारियों से सरकारी योजनाओं को लागू करने की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी को भी सुनिश्चित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थिति में सरकारी योजनाओं की अवधारणा और इसके अनुरूप इन्हें लागू करने के तरीके में काफी अंतर है। उन्होंने कहा ‘‘शासन की मौजूदा व्यवस्था के बारे में पुनर्विचार करने की तात्कालिक जरूरत है। यह निरंतर स्पष्ट होता जा रहा है कि “सब चलता है” वाले रवैये से काम नहीं चलेगा।’’
नायडू ने कहा कि भारत में लोकसेवाओं की स्थापना ब्रिटिशराज में हुई थी और आजादी के बाद इसमें काफी बदलाव आया है। उन्होंने कहा ‘‘मुझे यह कहते हुये कोई संकोच नहीं है कि भारतीय लोकसेवा दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इसे बेहतर बनाने में श्रेष्ठ प्रतिभाशली लोग लगे हैं।’’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकसेवकों के लिये “कार्यक्रम संबंधी विषयवस्तु” में “विधायी भावना” का निरूपण करना समय की मांग है। जिससे जन सामान्य को यह महसूस होना चाहिए कि लोक प्रशासन में “सुराज्य” की भावना मौजूद है। उन्होंने कहा कि जनहितैषी, स्वच्छ, कुशल, और सक्रिय प्रशासनिक नेतृत्व समय की मांग है। “स्वराज्य” को हर भारतीय के लिए अर्थपूर्ण होना चाहिए और इसके लिए “सुराज्य” अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी कुशलता और प्रशासनिक प्रक्रियाओं की ईमानदारी से समीक्षा करनी चाहिए। इस अवसर पर कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मामलों के राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह भी उपस्थित थे।
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