Matrubhoomi | आर्यभट्ट से आदित्य एल-1 तक, ISRO की वो कहानी जिस पर हर भारतीय को है गर्व
इसरो की हम जब भी बात करते हैं तो ये सुनत हैं कि हमने पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट लॉन्च किया। लॉन्च व्हिकल की बात होती है तो कहा जाता है कि इसरो ने साउंडिग व्हीकल लॉन्च किए। फिर बाद में एसएलवी, पीएसएलवी, जीएसएलवी और एलवीएम मार्क-3 का नाम आता है। लेकिन कहानी इतनी सरल नहीं है। इसरो की सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए उसके पास इतने ताकतवर लॉन्च व्हिकल नहीं थे कि वो अच्छी खासी भारी भरकम सैटेलाइट को लेकर लिफ्ट ऑफ कर सके। उसे ऑर्बिट तक पहुंचा सके।
अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा जो नई नई जानकारियां यूनिवर्स के बारे में एकट्ठा करती रहती है। नासा ने पहला इंसान चांद पर भेजा था और अब वो मार्स पर भी जाने की तैयारी कर रहा है। लेकिन हमने भी अपने स्पेस एजेंसी के जरिए दिखाया कि विकसित देशों से कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने का माद्दा रखते हैं। भारत के अंतरिक्ष सफर की शुरुआत 1962 में विक्रम साराभाई के एक नामुमकिन से लगने वाले सपने के साथ हुआ और इंडियन स्पेस ऑर्गनाइजेशन यानी इसरो का जन्म हुआ। तब से अब तक इसरो ने साइकिल से चांद और मंगल तक का अपना सफर कई चुनौतियों को पार पाकर किया है। इसरो की हम जब भी बात करते हैं तो ये सुनत हैं कि हमने पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट लॉन्च किया। लॉन्च व्हिकल की बात होती है तो कहा जाता है कि इसरो ने साउंडिग व्हीकल लॉन्च किए। फिर बाद में एसएलवी, पीएसएलवी, जीएसएलवी और एलवीएम मार्क-3 का नाम आता है। लेकिन कहानी इतनी सरल नहीं है। इसरो की सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए उसके पास इतने ताकतवर लॉन्च व्हिकल नहीं थे कि वो अच्छी खासी भारी भरकम सैटेलाइट को लेकर लिफ्ट ऑफ कर सके। उसे ऑर्बिट तक पहुंचा सके। फिर हमें मदद के लिए अमेरिका, सोवियत और यूरोप की ओर देखना पड़ता था। उन्होंने मदद तो जरूर की लेकिन ये तो आपको भी पता है कि कुछ भी फ्री में नहीं होता है। हालांकि आर्यभट्ट का लॉन्च सोवियत ने फ्री में किया था।
राम के पिता दशरथ चन्द्रमा से मिलने गए
वैसे तो कहा जाता है कि भारत की अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव बहुत ही पुराना है। भारतीय धार्मिक पौराणिक कथाओं में अंतरिक्ष अनुसंधान और परिभ्रमण की कई कहानियां दर्ज हैं। एक जगह लिखा गया है कि राम के पिता दशरथ चन्द्रमा से मिलने गए थे। इसके अलावा आधुनिक विश्व में भी भारत ने ही इस तकनीक से दुनिया को परिचित कराया। 1947 में अंग्रेजों की बेड़ियों से मुक्त होने के बाद, भारतीय वैज्ञानिकों और राजनीतिज्ञों ने भारत की रॉकेट तकनीक के सुरक्षा क्षेत्र में उपयोग एवं अनुसंधान एवं विकास की योजना बनाई और उस पर काम प्रारंभ किया।
साइकिल पर रॉकेट
डॉक्टर विक्रम साराभाई और डॉक्टर रामानाथन ने 16 फरवरी 1962 को Indian National Committee for Space Research (INCOSPAR) की स्थापना की, जो आगे चलकर 15 अगस्त 1969 को इसरो (ISRO) बन गया। उस समय जिस रॉकेट को प्रक्षेपित किया गया था, उसे साइकिल के पीछे लगे कैरियर पर लादकर प्रक्षेपण स्थल तक ले जाया गया था। यानी सुविधा नहीं थी, लेकिन कहते हैं ना कि इरादों में दम हो तो चट्टानों से भी पानी निकाला जा सकता है। साइकिल पर रॉकेट ले जाने की तस्वीर इसरो के दृढ़ संकल्प को दिखाती है। इसरो के पहले ही मिशन का दूसरा रॉकेट भारी और काफी बड़ा था। इसे प्रक्षेपण स्थल तक ले जाने के लिए बैलगाड़ी का सहारा लिया गया।
भारत के ऐतिहासिक अंतरिक्ष मिशन
आर्यभट्ट: अंतरिक्ष अनुसंधान तथा उपग्रह तकनीक के क्षेत्र में भारत का प्रवेश 19 अप्रैल 1975 को आर्यभट्ट नामक उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के साथ हुआ था। भारत का पहला उपग्रह, 1975 में लॉन्च किया गया था। यह 358 किलोग्राम (787 पाउंड) का उपग्रह था जो पृथ्वी के वायुमंडल और विकिरण बेल्ट का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक उपकरण ले गया था। इस उपग्रह का नाम महान खगोल विद और गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर इंदिरा गांधी ने रखा था। इस उपग्रह का अंतरिक्ष में सफल प्रक्षेपण सोवियत रूस की सहायता से किया गया था। आर्यभट्ट प्रथम के माध्यम से खगोल विज्ञान एक्स रे और सौर भौति की बहुत जानकारी हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। आर्यभट्ट उपग्रह के लॉन्च होने के इस ऐतिहासिक अवसर पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 1976 में 2 रुपए के नोट पर इसकी तस्वीर छापी थी।
इंस्टा: 1983 से भारत द्वारा प्रक्षेपित भूस्थैतिक उपग्रहों की एक श्रृंखला। इंस्टा उपग्रहों का उपयोग दूरसंचार, प्रसारण, मौसम विज्ञान और आपदा प्रबंधन के लिए किया जाता है। इसे अमेरिकी कंपनी फोर्ड एयरोस्पेस ने बनाया था। इसका प्रक्षेपण द्रव्यमान 1152 किलोग्राम था और इसमें बारह 'सी' और तीन 'एस' बैंड ट्रांसपोंडर थे।
ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी): 1990 के दशक में भारत द्वारा विकसित एक प्रक्षेपण यान। पीएसएलवी उपग्रहों को निचली पृथ्वी कक्षा, जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर कक्षा और कम पृथ्वी ध्रुवीय कक्षा में लॉन्च करने में सक्षम है।
जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी): 2000 के दशक में भारत द्वारा विकसित एक प्रक्षेपण यान। जीएसएलवी उपग्रहों को भूतुल्यकाली कक्षा में प्रक्षेपित करने में सक्षम है।
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चंद्रयान-1: भारत का चंद्रमा पर पहला मिशन, 2008 में लॉन्च किया गया। चंद्रयान-1 ने 10 महीने तक चंद्रमा की परिक्रमा की और पानी की बर्फ की उपस्थिति सहित चंद्रमा की सतह के बारे में महत्वपूर्ण खोजें कीं। इस अंतरिक्ष यान में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में बने 11 वैज्ञानिक उपकरणों को भी लगाया गया था। इस अंतरिक्ष यान का वजन 1380 किलोग्राम था। आज चांद पर पानी की संभावना खोजने का श्रेय भारत को देते हुए चंद्रयान 1 को याद किया जाता है। 14 नवंबर 2008 को चंद्रयान 1 ने मून इंपैक्ट क्राफ्ट नाम का 29 किलोग्राम का एक भारी उपकरण चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव पर गिराया। इस उपकरण ने गिरते समय चंद्रमा के परी सतह के अनेक चित्र लिए।
मंगलयान: भारत का पहला अंतरग्रहीय मिशन, 2013 में लॉन्च किया गया। मंगलयान ने सितंबर 2014 में मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश किया और अभी भी चालू है। यह अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला पहला और एकमात्र अंतरिक्ष यान है। इसरो ने इस मानवरहित सैटेलाइट को मार्स ऑर्बिटर मिशन नाम दिया। इसकी कल्पना, डिजाइन और निर्माण भारतीय वैज्ञानिकों ने किया और इसे भारत की धरती से भारतीय रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा गया। भारत के पहले मंगल अभियान पर 450 करोड़ का खर्च आया और इसके विकास पर 500 से अधिक वैज्ञानिकों ने काम किया था।
चंद्रयान-2: चंद्रमा पर भारत का दूसरा मिशन, 2019 में लॉन्च किया गया। चंद्रयान -2 को चंद्रमा पर एक रोवर उतारना था, लेकिन लैंडर विक्रम का अंतिम वंश के दौरान जमीनी नियंत्रण से संपर्क टूट गया। ऑर्बिटर अभी भी चालू है और चंद्रमा के बारे में बहुमूल्य डेटा प्रदान कर रहा है। इस ऑर्बिटर का चंद्रयान 3 से भी संपर्क हुआ है। विक्रम लैंडर के संपर्क टूटने के बाद ये आम धारणा बनी की भारत का मिशन चंद्रयान 2 विफल हो गया, पर ये सच नहीं है। इसरो के एक अधिकारी बातते हैं कि विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर मिशन का पांच प्रतिशत हिस्सा थे। 95 प्रतिशत हिस्सा ऑर्बिटर का है, जो सुरक्षित चक्कर लगा रहा है। इससे जो जानकारियां मिली वो चंद्रायन 3 के काम आ रही हैं।
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चंद्रयान-3: भारत का तीसरा चंद्र मिशन, 2022 में लॉन्च किया गया। इसमें एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर शामिल है। चंद्रयान-3 का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर और रोवर की सॉफ्ट लैंडिंग कराना है। चंद्रयान 3 तीन लाख किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करते हुए चांद के करीब पहुंचा है। चंद्रयान 3 मिशन में लैंडर, रोवर और प्रॉपल्शन मॉड्यूल शामिल है। भारत के इस महत्वकांक्षी मिशन में केवल 615 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। चंद्रयान 3 का मकसद चांद के दक्षिणि ध्रुव पर ऑक्सीजन और पानी की खोज करना है।
आदित्य एल-1: सितबंर 2023 में सूर्य के रहस्यों को जानने के लिए इसरो ने आदित्य एल1 लॉन्च किया था। हालांकि, इसे इसी साल चार जनवरी 2024 को हेलो कक्षा में स्थापित किया गया। भारत का यह पहला ऐसा मिशन था, जिसके तहत सूर्य की निगरानी करनी थी। इसरो का इस मिशन के माध्यम से पता लगाने का मकसद था कि जब सूर्य एक्टिव होता है तो क्या होता है।
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