अस्तित्व संकट से जूझ रही एनसीपी में पार्टी पर कब्जे को लेकर चाचा-भतीजे में संघर्ष

maharashtra-politics-sharad-pawar-and-ajit-pawar-fight-for-party-ncp
अभिनय आकाश । Aug 28 2019 6:11PM

शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार का कई अवसरों पर अलग-अलग मत होना यूं ही नहीं है। इसके पीछे की वजह पार्टी पर कब्जे और एकाधिकार की चाह है। शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को राजनीति में उतार कर अजीत पवार की ताकत को कम करने की कोशिश की जिसके बाद से ही अजीत पवार लगातार राज्य की सियासत में खुद की पहचान बनाने में लग गए।

देश की आर्थिक राजधानी महाराष्ट्र जहां विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं। लेकिन लगातार अपने बुरे दौर से गुजर रही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी लगातार रसातल की ओर जा रही है। पार्टी के विधायक एक-एक कर पार्टी छोड़ भाजपा और शिवसेना की ओर रूख कर रहे हैं। वहीं मुंबई पुलिस की ओर से करीब एक हजार करोड़ रुपये के महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाले में एनसीपी प्रमुख शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार समेत कई लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर ली गई है। लोकसभा चुनाव में बुरी तरह विफल रही एनसीपी के महाराष्ट्र की 4 लोकसभा सीटों पर सिमट जाने के बाद से ही पार्टी के भविष्य को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगातार लगनी शुरू हो गई थीं। बीच-बीच में ऐसी भी ख़बर आईं कि एनसीपी का कांग्रेस में विलय हो जाएगा। हालांकि बाद में इसे नकार दिया गया। लेकिन वर्तमान दौर में पार्टी के अस्तित्व और भविष्य पर गहरा प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। 

लगभग 20 वर्ष पूर्व 20 मई 1999 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व करने वाली इटली में जन्मीं सोनिया गांधी के अधिकार पर सवाल करने से निष्कासित होने के बाद शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर द्वारा 25 मई 1999 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया गया था। भारत के निर्वाचन आयोग ने एनसीपी को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी। देश के इतिहास में, इतने कम समय में राष्ट्रीय पार्टी की स्थिति प्राप्त करने वाली यह एकमात्र पार्टी थी। लेकिन पवार और संगमा के रास्ते 2004 में ही अलग हो गए थे। संगमा ने मेघालय में नेशनल पीपल्स पार्टी प्रादेशिक पक्ष की स्थापना की और तारिक अनवर हाल ही में कांग्रेस मे लौट आए। 

इसे भी पढ़ें: HC ने अजीत पवार समेत 70 अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया

मोदी सरकार के आने के बाद से वैसे तो क्षेत्रीय पार्टियों पर अस्तित्व का संकट लगातार कई दलों को अवसरवादिता का बेमेल गठबंधन करने पर मजबूर करता रहा है। लेकिन एनसीपी जैसी राष्ट्रीय पार्टियां के भी अस्तित्व पर मंडराता संकट पार्टी के लिए गंभीर विषय है। वैसे तो पार्टी के दोनों शीर्ष नेता शरद और अजीत पवार भ्रष्टाचार के मामले में खुद पर केस दर्ज कराने में साथ हैं लेकिन कई बार ऐसा हुआ है कि चाचा और भतीजे की सोच में फर्क और अंतर सामने आया है। लोकसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष शरद पवार ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर सवालिया निशान लगाया था जबकि इसके विपरीत उनके भतीजे और महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने कहा था कि ईवीएम मशीन में अगर छेड़छाड़ किया जा सकता था तो भाजपा पांच राज्यों में चुनाव नहीं हारती। वहीं अनुच्छेद 370 को लेकर भी जहां पार्टी अध्यक्ष शरद पवार और उनकी बेटी ने इस बिल का विरोध किया था वहीं अजीत पवार इस बिल का समर्थन करते दिखे।

शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार का कई अवसरों पर अलग-अलग मत होना यूं ही नहीं है। इसके पीछे की वजह पार्टी पर कब्जे और एकाधिकार की चाह है। शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को राजनीति में उतार कर अजीत पवार की ताकत को कम करने की कोशिश की जिसके बाद से ही अजीत पवार लगातार राज्य की सियासत में खुद की पहचान बनाने में लग गए। परिणाम स्वरूप समय-समय पर दोनों के विचार अलग होने लगे। बहरहाल, वर्तमान में अस्तित्व संकट और भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रहे शरद और अजीत पवार के सामने खुद की राजनीति के साथ ही पार्टी की राजनीति को बचाने की दोहरी चुनौती है।  

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़