इसे कहते हैं जैसी करनी वैसी भरनी, Sharad Pawar ने 1978 में जो बोया था उसे 2023 में काटना पड़ा

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ANI

अजित पवार समेत कुछ नेताओं के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल होने के कदम ने 1978 में हुए उस राजनीतिक घटनाक्रम की यादें ताजा कर दी, जब शरद पवार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंत दादा पाटिल की सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका था।

कहा जाता है कि जो जैसा करता है एक दिन वैसा ही परिणाम उसके सामने भी आता है। महाराष्ट्र में अजित पवार 40 विधायकों के साथ शिंदे-फडणवीस सरकार में शामिल हो गये तो राष्ट्रवादी कांग्रेस प्रमुख शरद पवार को तगड़ा झटका लगा। लेकिन इस झटके ने शरद पवार की ओर से की गयी उस बगावत की याद दिला दी जब पवार ने 40 विधायकों को साथ लेकर 1978 में वसंत दादा पाटिल की सरकार गिरा दी थी और खुद मुख्यमंत्री बन गये थे।

हम आपको बता दें कि महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता अजित पवार समेत कुछ नेताओं के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल होने के कदम ने 1978 में हुए उस राजनीतिक घटनाक्रम की यादें ताजा कर दी, जब शरद पवार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंत दादा पाटिल की सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका था। शरद पवार लगभग 45 साल पहले कांग्रेस से बगावत करते हुए 40 विधायकों को लेकर अलग हो गए थे, जिसके चलते पाटिल नीत तत्कालीन सरकार गिर गई थी। पवार ने 18 जुलाई 1978 को प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, जिसमें कई विपक्षी दल शामिल थे। बताया जाता है कि 1978 में विधानमंडल सत्र चल रहा था और तत्कालीन गृह मंत्री नासिक राव तिरपुडे ने मुख्यमंत्री पाटिल को उद्योग मंत्री पवार से उनकी सरकार को खतरे के बारे में चेतावनी दी थी। तब वसंतदादा ने तिरपुडे को जवाब दिया था कि शरद अभी मुझसे मिले थे। उसी दिन बाद में वसंतदादा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और पवार ने सत्ता संभाल ली थी।

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दूसरी ओर, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में अप्रत्याशित टूट से न केवल महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आया है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसका असर पड़ेगा। आइये इस घटनाक्रम से जुड़े कुछ पहलुओं पर नजर डालते हैं-

विपक्ष की एकता पर सवाल : एकनाथ शिंदे नीत सरकार में शामिल होने के लिए अजित पवार द्वारा अपने चाचा एवं राकांपा प्रमुख शरद पवार का साथ छोड़ने से विपक्षी एकता कायम करने के 15 पार्टियों के कदम को बड़ा झटका लगा है। इन विपक्षी दलों ने पिछले महीने पटना में एक बैठक की थी। हालांकि, रविवार के घटनाक्रम से पहले ही विपक्ष में एकता कायम करने की कोशिशें बड़े विपक्षी दलों के बीच मतभेदों से प्रभावित हुईं। इनमें आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के बीच खुला बैर तथा पश्चिम बंगाल में तृणमूल और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप शामिल हैं। केरल में भी कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) चिर प्रतिद्वंद्वी हैं। अजित पवार के हालिया कदम ने विपक्षी एकता की कोशिशों को बड़ा नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि विपक्षी पार्टियां 2024 के लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी नीत भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सामूहिक रूप से कड़ी चुनौती देने की उम्मीद कर रही हैं।

महाराष्ट्र में भाजपा का फिर से उभरना: भाजपा और शिंदे नीत शिवसेना से हाथ मिलाने के अजित पवार के फैसले ने संक्षिप्त अवधि के लिए दरकिनार रहने के बाद, एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति में इसे (भाजपा को) स्थिति को नियंत्रित करने वाली पार्टी की भूमिका में ला दिया है। अब यह (भाजपा) एक बहुत मजबूत गठबंधन बनाने की स्थिति में है, जिससे लोकसभा चुनावों के दौरान राज्य में उसकी पकड़ मजबूत हो सकती है। इस घटनाक्रम ने उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), शरद पवार की राकांपा और कांग्रेस की भागीदारी वाले महाविकास आघाडी (एमवीए) गठबंधन को मिली किसी भी तरह की बढ़त को समाप्त कर दिया है।

कांग्रेस अलग-थलग पड़ी: सूत्रों के मुताबिक, अजित पवार के समर्थक कांग्रेस नेता राहुल गांधी के पटना में शरद पवार और सुप्रिया सुले के साथ मंच साझा करने को लेकर नाराज हैं। यह घटनाक्रम और कांग्रेस एवं शक्तिशाली क्षेत्रीय दलों के बीच तकरार से यह सवाल पैदा होता है कि क्या क्षेत्रीय क्षत्रप विपक्षी गठबंधन में राहुल के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे।

शरद पवार की भूमिका घटी: किसी समस्या का समाधान करने के लिए चतुराई से और अप्रत्याशित कदम उठाने वाले एक मंझे हुए राजनेता माने जाने वाले शरद पवार के बारे में ऐसा प्रतीत होता है कि अजित पवार की मदद से भाजपा द्वारा चली गई राजनीतिक चाल से उन्हें शिकस्त मिली है। शरद पवार की रणनीति और विचार सोमवार को स्पष्ट होंगे, जब वह सार्वजनिक रूप से बयान देने वाले हैं।

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