भाजपा छोड़ने वाले नेताओं की स्क्रिप्ट एक जैसी, क्या योगी सरकार की छवि खराब करने की हो रही कोशिश?
सभी के इस्तीफे में जो एक बात सामान्य थी वह यह थी कि बीजेपी सरकार ने पिछले 5 वर्षों के अपने कार्यकाल में दलितों, पिछड़ों, वंचितों, किसानों और अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं व जनप्रतिनिधियों को महत्व नहीं दी और ना ही उन्हें उचित सामान्य दिया।
विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। अब तक तीन मंत्री और कई विधायकों ने पार्टी का दामन छोड़ दिया है। आज धर्म सिंह सैनी और स्वामी प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है। हालांकि, एक सवाल जरूर उठ रहा है, वह सवाल यह है कि अब तक जितने भी नेताओं ने भाजपा को छोड़ा है, उन सभी के इस्तीफे में भाषा एक जैसी लिखी हुई है। वह भाषा ऐसी है जो कि भाजपा के सोशल इंजीनियरिंग को डैमेज कर सकती है। इस्तीफे की शुरुआत स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ हुई। स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद आयुष मंत्री धर्म सिंह सैनी और उसके बाद फिर दारा सिंह चौहान ने भी अपना इस्तीफा दे दिया।
इसे भी पढ़ें: वंशवाद और परिवारवाद की राजनीति करने वाले सामाजिक न्याय के समर्थक नहीं हो सकते : योगी आदित्यनाथ
स्क्रिप्ट एक जैसी
सभी के इस्तीफे में जो एक बात सामान्य थी वह यह थी कि बीजेपी सरकार ने पिछले 5 वर्षों के अपने कार्यकाल में दलितों, पिछड़ों, वंचितों, किसानों और अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं व जनप्रतिनिधियों को महत्व नहीं दी और ना ही उन्हें उचित सामान्य दिया। जिन विधायकों ने भी भाजपा को छोड़ा उन्होंने भी योगी सरकार पर यह आरोप लगाए। सबके इस्तीफा पत्र में दलित, पिछड़ों, वंचित, किसान और अल्पसंख्यक समुदाय का जिक्र था। स्वामी प्रसाद मौर्य जब समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहे थे तो उस दौरान उन्होंने दावा किया कि वोट दलितों और पिछड़े वर्गों का चाहिए और मुख्य मंत्री पांच परसेंट वाले बनेंगे, यह कैसा न्याय है।
छवि खराब करने की हो रही कोशिश
यह बात भी सच है कि ज्यादातर इस्तीफा देने वाले नेता 2017 चुनाव से पहले बसपा से भाजपा में आए थे। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि कहीं ना कहीं यह नेता भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग को खराब करने में जुटे हुए हैं। भाजपा बिना सोशल इंजीनियरिंग के तीन चौथाई बहुमत के साथ सत्ता में वापस नहीं आ सकती है और यही कारण है कि वह दलितों और ओबीसी पर लगातार अपनी पकड़ को मजबूत कर रही है। लेकिन इन नेताओं ने जिस तरीके से योगी सरकार की छवि को खराब करने की कोशिश की है उससे कहीं ना कहीं भाजपा को नुकसान जरूर हो सकता है। भाजपा छोड़ने वाले नेता योगी सरकार पर पिछड़ों, दलित और सामाजिक न्याय की राजनीति को कमजोर करने का लगातार आरोप लगा रहे हैं। कहीं ना कहीं यह बात साफ है कि उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से जाति की राजनीति हावी होती दिखाई दे रही है।
इसे भी पढ़ें: समर्थक विधायकों के साथ साइकिल पर सवार हुए स्वामी प्रसाद मौर्य, कहा- यूपी को भाजपा से कराएंगे मुक्त
भाजपा का तर्क
भाजपा के लिए चिंता की बात यह है कि कई नेता उसका साथ छोड़ कर जा रहे हैं। कहीं ना कहीं इससे उसके सामाजिक समीकरणों पर असर पड़ सकता है। भाजपा का एक तबका यह भी मानता है कि कहीं ना कहीं इन नेताओं के जाने से पार्टी को नुकसान होगी। लेकिन दूसरे तबके का यह कहना है कि भाजपा कैडर आधारित पार्टी है और नरेंद्र मोदी के नाम पर वर्तमान में इसे वोट मिल रहा है। भाजपा यह दावा भी कर रही है कि समाजवादी पार्टी सिर्फ मुसलमान और यादवों को साथ लेकर चलती है। उनकी सरकार में दलितों पर जो अत्याचार हुए हैं वह उसे नहीं भूलते हैं। यही कारण है कि भले ही नेता चले गए हो लेकिन पिछड़ों और दलितों का वोट भाजपा को ही मिलेगा।
अन्य न्यूज़