Pashmina Knitting की कला को संरक्षित करने के लिए Kashmiri महिलाएं चला रही हैं अभियान
हम आपको बता दें कि श्रीनगर में बड़ी संख्या में महिलाओं को पश्मीना ऊन कताई शिल्प का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। श्रीनगर में कुशल महिलाओं का एक समूह पश्मीना ऊन कताई की पारंपरिक कला को संरक्षित करने और उसे बढ़ावा देने का बीड़ा उठा रहा है और इस काम में उन्हें प्रशासन का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है।
कश्मीर में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए चौतरफा अभियान चलाया जा रहा है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद से अब केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में केंद्र की सभी कल्याणकारी योजनाएं लागू हो चुकी हैं साथ ही उपराज्यपाल प्रशासन की ओर से भी कई योजनाएं शुरू की गयी हैं। इन सभी योजनाओं का उद्देश्य है कि कश्मीर की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाये और उनका आर्थिक तथा सामाजिक सशक्तिकरण किया जाये। इस कड़ी में चल रहे विभिन्न अभियानों में से एक है उन्हें हस्तशिल्प का प्रशिक्षण देना।
हम आपको बता दें कि श्रीनगर में बड़ी संख्या में महिलाओं को पश्मीना ऊन कताई शिल्प का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। श्रीनगर में कुशल महिलाओं का एक समूह पश्मीना ऊन कताई की पारंपरिक कला को संरक्षित करने और उसे बढ़ावा देने का बीड़ा उठा रहा है और इस काम में उन्हें प्रशासन का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। प्रभासाक्षी संवाददाता ने जब यहां महिला प्रशिक्षक से बात की तो उन्होंने कहा कि हमारे प्रयास न केवल महिलाओं को सशक्त बनाते हैं बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत में भी योगदान देते हैं। उन्होंने कहा कि पश्मीना ऊन बुनाई की कला एक प्राचीन शिल्प है जिसकी उत्पत्ति कश्मीर में ही हुई थी इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम इसे संरक्षित रखें।
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उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से कश्मीर में युवा लड़कियों को उनकी मां और दादी द्वारा पश्मीना बुनाई की तकनीक सिखाई जाती है। यह ज्ञान पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है और इसे उनके समुदायों में एक मूल्यवान कौशल माना जाता है। पश्मीना शॉल बनाने की जटिल प्रक्रिया में कई बातों का ध्यान देने की आवश्यकता होती है, जिससे यह एक ऐसी कला बन जाती है जिसमें महिलाओं को वर्षों में महारत हासिल होती है। उन्होंने कहा कि पश्मीना बुनाई में पहला कदम कच्चे माल का संग्रह है यानि इसके लिए बढ़िया पश्मीना ऊन चाहिए होता है। उन्होंने कहा कि यह ऊन पश्मीना बकरी नामक बकरियों की एक विशेष नस्ल के पेट के नीचे से आता है, जो हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं। उन्होंने कहा कि यह बकरियां नरम, गर्म और हल्के ऊन का उत्पादन करती हैं जो शानदार शॉल की बुनाई के लिए जरूरी है।
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