Shaurya Path: Israel-Hamas, Russia-Ukraine, North-South Korea, NASA पर Brigadier Tripathi से बातचीत

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजराइल-हमास युद्ध पर भारत का रुख ‘रचनात्मक’ है और उन्होंने दो राष्ट्र के समाधान पर जोर दिया। उन्होंने हमास को एक ‘‘आतंकवादी समूह’’ कारार देते हुए कहा कि इजराइल को अपनी रक्षा करने का अधिकार है।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ इजराइल-हमास संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध, उत्तर और दक्षिण कोरिया में बढ़ते तनाव, पन्नू को लेकर भारत और अमेरिका के बीच हो रहे विवाद और नासा की ओर से भारत को दिये गये आश्वासन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-


प्रश्न-1. इजराइल और हमास संघर्ष में ताजा स्थिति क्या है?

उत्तर- इजराइल और हमास जिस तरह युद्धविराम खत्म होने की समयसीमा के अंतिम समय में उसे एक दिन और बढ़ाने पर राजी हुए हैं वह दर्शा रहा है कि दोनों पक्ष सिर्फ बंधकों को छुड़ाने और लड़ाई के अगले चरण के लिए हथियार और साजो सामान जुटाने में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि इस लड़ाई का दूसरा चरण ज्यादा घातक हो सकता है क्योंकि इजराइल प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को घरेलू मोर्चे पर राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि नेतन्याहू पर दबाव है कि वह बंधक इजराइलियों को सकुशल वापस लाएं और हमास को मिटाएं, इसलिए उन्हें किसी भी कीमत पर इस लक्ष्य को हासिल करना ही होगा। उन्होंने कहा कि लड़ाई के दूसरे चरण का खामियाजा गाजा की जनता को भुगतना पड़ेगा जोकि पहले ही बुनियादी जरूरतों का अभाव झेल रही है। उन्होंने कहा कि गाजा में 35 में से 27 अस्पताल खत्म हो चुके हैं जिससे लोगों को परेशानी उठानी पड़ रही है लेकिन हमास की कारगुजारियों के चलते आम लोग भी अंजाम भुगतने के लिए मजबूर हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हमास चूंकि आतंकवादी संगठन है इसलिए वह कभी नहीं सुधर सकता। उन्होंने कहा कि जिस तरह यरूशलम के एक बस स्टॉप पर फलस्तीनी बंदूकधारियों की गोलीबारी में तीन इजराइली मारे गए और छह अन्य घायल हो गए, उससे क्षेत्र में फिर से हिंसा फैल गयी है। उन्होंने कहा कि इजराइल की आंतरिक सुरक्षा एजेंसी शिन बेट ने दोनों हमलावरों की पहचान पूर्वी यरूशलम के 38 वर्षीय मुराद नाम्र और उसके भाई 30 वर्षीय इब्राहिम नाम्र के रूप में की है। एजेंसी ने कहा है कि दोनों हमास के सदस्य थे और पहले आतंकी गतिविधि के लिए जेल जा चुके थे। इजराइली एजेंसी ने कहा है कि गाजा पट्टी में आतंकवादी तत्वों के निर्देशों के तहत आतंकवादी हमलों की साजिश रचने के लिए मुराद को 2010 और 2020 के बीच जेल में डाल दिया गया था और इब्राहिम को 2014 में अज्ञात आतंकवादी गतिविधि के लिए जेल की सजा हुई थी। वीडियो फुटेज से पता चला कि दोनों एम-16 असॉल्ट राइफल और एक हैंडगन से लैस थे। पुलिस को वाहन की तलाशी में भारी मात्रा में गोला-बारूद मिले। पुलिस किसी भी अतिरिक्त हमलावर से बचने के लिए इलाके की तलाशी ले रही है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह हमला इजराइल और हमास द्वारा युद्ध विराम को सातवें दिन बढ़ाने पर सहमति जताने के तुरंत बाद हुआ। उन्होंने कहा कि इजराइल के प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से एक घोषणा में कहा गया था कि युद्ध संबंधी मामलों के मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि समझौते की रूपरेखा में जिन मुद्दों पर सहमति बनी थी अगर उससे संबंधित एक सूची सुबह सात बजे (बृहस्पतिवार, 30 नवंबर 2023) तक नहीं दी गई तो लड़ाई तुरंत फिर से शुरू हो जाएगी। इजराइली पीएमओ ने अपने बयान में कहा कि रूपरेखा की शर्तों के अनुसार महिलाओं और बच्चों की एक सूची कुछ समय पहले इजराइल को सौंपी गई थी इसलिए विराम जारी रहेगा। पीएमओ ने कहा कि 30 नवंबर को रिहा होने वाले बंधकों की सूची प्राप्त होने के बाद, परिवारों को सूचित कर दिया गया है।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजराइल-हमास युद्ध पर भारत का रुख ‘रचनात्मक’ है और उन्होंने दो राष्ट्र के समाधान (टू-स्टेट सॉल्यूशन) पर जोर दिया। उन्होंने हमास को एक ‘‘आतंकवादी समूह’’ कारार देते हुए कहा कि इजराइल को अपनी रक्षा करने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि इजराइल पर हमास के हमले को लेकर भारत तटस्थ नहीं है और उसने इस आतंकवादी कृत्य की कड़े शब्दों में निंदा की है। उन्होंने कहा कि हमास एक आतंकवादी समूह है और उसने लोकतंत्र पर हमला किया है। हम इस संबंध में हमास के खिलाफ इजराइल की कार्रवाई का समर्थन करते हैं। लेकिन हम फलस्तीनी लोगों के खिलाफ उसकी कार्रवाई का समर्थन नहीं करते, जहां 20 लाख लोग रहते हैं। किसी व्यक्ति को इन दोनों के बीच अंतर करना होगा। उन्होंने कहा कि इस पर हमारा रुख रचनात्मक रहा है। हम आतंकवाद के खिलाफ हैं, क्योंकि इसने हमारे देश में भी तबाही मचाई है-- हम समस्या के लिए ‘दो राष्ट्र’ के समाधान का सुझाव देते हैं, जिसमें फलस्तीन और इजराइल दोनों को अपने-अपने देश की स्थापना का अधिकार होना चाहिए।

प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध अब किस मोड़ पर पहुँचा है? फिनलैंड ने रूस के साथ लगी सीमा को पूरी तरह बंद क्यों कर दिया है?

उत्तर- रूस की ओर से यूक्रेन पर जिस तरह ड्रोन हमले बढ़ाये गये हैं उससे प्रतीत होता है कि सर्दियों की शुरुआत से पहले पुतिन यूक्रेन में बिजली और पानी की कमी खड़ी कर देना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि पुतिन चाहते हैं कि यूक्रेनी सरकार का सारा ध्यान बुनियादी सुविधाओं को हासिल करने पर ही लग जाये जिससे युद्ध मैदान से उसका ध्यान हटे। उन्होंने कहा कि हालांकि एक चीज साफ है कि काला सागर में फिलहाल यूक्रेन को कई तरह की बढ़त हासिल है। उन्होंने कहा कि जहां तक फिनलैंड का मामला है तो उसने अपनी सीमाओं पर सतर्कता अवैध आव्रजन से बचने के लिए बढ़ाई है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चूंकि दुनिया का ध्यान गाजा में युद्ध पर केंद्रित है, इसलिए लग रहा है कि यूक्रेन में युद्ध दुनिया के लिए एक गतिरोध बनता जा रहा है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन के बहुप्रतीक्षित ग्रीष्मकालीन जवाबी हमले से कोई महत्वपूर्ण लाभ नहीं हुआ है, और रूस ने भी कोई प्रगति नहीं की है। उन्होंने कहा कि युद्ध मैदान में आई स्थिरता गोला-बारूद के भंडार को फिर से भरने या युद्ध के अगले चरण के लिए नई प्रमुख हथियार प्रणालियों की खरीद का मौका है। उन्होंने कहा कि हालांकि काला सागर में हाल की सफलताएँ यूक्रेन को पर्याप्त सामरिक, रणनीतिक और राजनीतिक लाभ प्रदान करती प्रतीत होती हैं। उन्होंने कहा कि कीव का दावा है कि युद्ध की शुरुआत के बाद से, यूक्रेनी सेना ने रूस के काला सागर बेड़े से संबंधित 27 युद्धपोतों और जहाजों को क्षतिग्रस्त या नष्ट कर दिया है, जिसमें बेड़े का प्रमुख, 11,000 टन का क्रूजर मोस्कवा, साथ ही रूस की किलो-श्रेणी की पनडुब्बियां, जो क्रूज़ मिसाइल वाहक हैं, वह भी शामिल हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि कई सफल यूक्रेनी हमलों के बाद सेवस्तोपोल में रूस के नौसैनिक अड्डे को अब सुरक्षित नहीं माना जा रहा है क्योंकि रूस के अधिकांश काला सागर बेड़े को रूसी मुख्य भूमि पर नोवोरोस्सिएस्क के बंदरगाह पर स्थानांतरित करना पड़ा है। उन्होंने कहा कि अपनी शेष किलो श्रेणी की पनडुब्बियों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना रूस के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वह इन महंगे और दुर्लभ वाहनों को और अधिक खोने का जोखिम नहीं उठा सकता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस सर्दी में, हम फिर से उम्मीद कर सकते हैं कि रूस यूक्रेन के ऊर्जा बुनियादी ढांचे को ख़राब करने की कोशिश करेगा, जैसा कि उसने पिछले साल करने का प्रयास किया था। उन्होंने कहा कि रूस ने इस रणनीति के हिस्से के रूप में काला सागर से लॉन्च की गई कलिब्र क्रूज़ मिसाइलों का इस्तेमाल किया, जिससे यूक्रेन की वायु रक्षा क्षमताओं को संतृप्त करने के लिए प्रवेश के अतिरिक्त वैक्टर तैयार किए गए। उन्होंने कहा कि लेकिन काला सागर बेड़े को यूक्रेन से और दूर स्थानांतरित करने से इस बार मॉस्को के रसद और सामरिक विकल्पों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। और एक लंबे युद्ध में दुश्मन को एक भी सामरिक विकल्प से वंचित करने से समग्र संचालन पर सहक्रियात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि रूस की काला सागर संपत्तियों- इसके युद्धपोतों, शिपयार्ड, कमांड सेंटर और वायु रक्षा स्थलों- के खिलाफ यूक्रेन के सफल हमलों का प्रभाव काला सागर से परे स्पष्ट है। उन्होंने कहा कि इसका कारण यह है कि यूक्रेन में जमीनी स्तर पर स्थिति कठिन हो गई है, क्योंकि रूस और यूक्रेन दोनों एक-दूसरे को और अपने सहयोगियों को थका देने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए काला सागर में यूक्रेन का अभियान, जिसने क्रीमिया की भेद्यता को बढ़ा दिया है, वह बहुत महत्व रखता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हालांकि इससे कीव को प्रायद्वीप पर दोबारा कब्ज़ा करने का सीधा अवसर प्रदान करने की संभावना नहीं है, लेकिन कथित खतरा मॉस्को को क्रीमिया की रक्षा के लिए ध्यान और सीमित संसाधनों को समर्पित करने के लिए बाध्य करता है, जो इसकी समग्र रणनीति को प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा कि उत्तर-पश्चिमी काला सागर में यूक्रेन के मुख्य व्यापारिक मार्गों से दूर रूस के नौसैनिक संसाधनों के स्थानांतरण ने यूक्रेन की रूस की नाकाबंदी की कोशिश को कमजोर कर दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रिटेन सहित कीव के प्रमुख सहयोगी उस लाभ को समझते हैं जो अब यूक्रेन के पास काला सागर में है। ज़मीन पर स्पष्ट गतिरोध के बावजूद, समुद्र में यूक्रेन की सफलताएँ दीर्घावधि में उसका प्रतिरोध सुनिश्चित करेंगी।

प्रश्न-3. उत्तर कोरिया की ओर से दक्षिण कोरियाई सीमा पर गार्ड पोस्ट्स का निर्माण किये जाने से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है। क्या जल्द ही एक और युद्ध देखने को मिल सकता है?

उत्तर- फिलहाल युद्ध के आसार तो नहीं दिख रहे हैं लेकिन अगर दोनों कोरियाई देशों के बीच तनाव बढ़ा तो युद्ध की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि सियोल में रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया के साथ अपनी सीमा पर गार्ड चौकियों का पुनर्निर्माण और भारी हथियार तैनात करना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा तब हुआ है जब युद्ध को रोकने के लिए बनाए गए एक प्रमुख विश्वास-निर्माण समझौते से दोनों देश पीछे हट गये थे। उन्होंने कहा कि मीडिया रिपोर्टों में दक्षिण कोरियाई सेना का हवाला देते हुए कहा गया है कि उसने उत्तर कोरिया के सैनिकों को गुप्त रक्षक चौकियों की मरम्मत करते हुए पाया था, जिन्हें शासन ने 2018 में एक व्यापक सैन्य समझौते के हिस्से के रूप में नष्ट कर दिया था।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दक्षिण की सेना ने कहा है कि उत्तर कोरियाई सैनिकों को सीमा से लगे स्थानों पर खाई खोदते हुए देखा गया था और शासन ने क्षेत्र में भारी हथियार भेजे थे। उन्होंने कहा कि उस क्षेत्र में 1950-53 के कोरियाई युद्ध की समाप्ति के बाद से दोनों देश विभाजित हो गये और इस क्षेत्र को भविष्य के किसी भी अंतर-कोरियाई संघर्ष में संभावित फ्लैशप्वाइंट के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कहा कि दोनों पड़ोसियों ने 2018 के समझौते के हिस्से के रूप में 11 गार्ड चौकियों को नष्ट या निरस्त्र कर दिया था, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों की अवहेलना में उत्तर द्वारा पिछले मंगलवार को एक जासूसी उपग्रह के प्रक्षेपण से उत्पन्न तनाव में हाल ही में वृद्धि के बाद दोनों पक्ष समझौते को खत्म करने के लिए तैयार दिखाई दे रहे हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जासूसी उपग्रह के प्रक्षेपण के बाद सियोल ने कहा कि वह समझौते के कुछ हिस्सों को निलंबित कर देगा और सीमा के पास हवाई निगरानी फिर से शुरू करेगा। इसके जवाब में प्योंगयांग ने कहा कि वह सीमा के पास शक्तिशाली हथियार तैनात करेगा और समझौते से दूर चला जाएगा। उन्होंने कहा कि यह समझौता दक्षिण कोरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति, मून जे-इन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन के बीच मेल-मिलाप की अवधि के दौरान हुआ था जिसमें दोनों पक्षों ने सीमा के 1 किमी के भीतर गार्ड चौकियों को ध्वस्त करने, सैन्य अभ्यास और युद्धाभ्यास पर प्रतिबंध लगाने की प्रतिबद्धता जताई थी।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दक्षिण कोरियाई रक्षा मंत्रालय ने पत्रकारों को जो तस्वीरें वितरित कीं, उसमें दिख रहा था कि उत्तर कोरियाई सैनिक एक अस्थायी गार्ड पोस्ट का निर्माण कर रहे हैं और एक पोर्टेबल एंटी-व्हीकल हथियार या हल्के तोपखाने के टुकड़े को नवनिर्मित खाई में ले जाते दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर कोरिया ने और अधिक उपग्रह लॉन्च करने की धमकी दी है, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों का उल्लंघन है क्योंकि उनमें लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक शामिल है।

प्रश्न-4. अमेरिका ने आरोप लगाया है कि खालिस्तानी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश की गयी जिसमें भारतीय अधिकारी की संलिप्तता रही। भारत ने इस संबंध में जांच बैठा दी है। अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने के लिए अपने दो अधिकारी भी दिल्ली भेजे थे। इस बीच खबर है कि कनाडा के प्रधानमंत्री ने कहा है कि यही बात जब मैं कह रहा था तब कोई नहीं मान रहा था। इस सब को कैसे देखते हैं आप? 

उत्तर- सबसे बड़ा सवाल यह है कि अमेरिका को पन्नू की इतनी चिंता क्यों हो रही है? उन्होंने कहा कि भारत ने साल 2020 में ही पन्नू को आतंकवादी घोषित कर दिया था और उस पर तमाम आरोप लगाये थे जिनके बारे में अमेरिका को जानकारी थी। उन्होंने कहा कि पन्नू अमेरिका में बैठा बैठा भारत सरकार को धमकी देता रहता है, कभी एअर इंडिया को धमकी देता है तो कभी कनाडा में भारतीय अधिकारियों को धमकी देता है तो कभी विदेशों में अन्य भारतीयों को धमकी देता है लेकिन यह सब अमेरिका देखता रहता है। उन्होंने कहा कि एक ओर अमेरिका आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई की बात करता है और दूसरी ओर आतंकियों और अलगाववादियों को पनाह देता है, यह तो साफ दोगलापन है। उन्होंने कहा कि यदि पन्नू भारत सरकार को धमकाये तो क्या भारत सरकार चुपचाप बैठी रहे? उन्होंने कहा कि यदि पन्नू भारत में रह कर इसी तरह अमेरिका को धमका रहा होता तो अमेरिका क्या करता? अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां क्या करतीं? 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका ने जो आरोप लगाये हैं भारत ने उस पर जांच बैठा दी है क्योंकि जो कुछ सामने दिख रहा है वह भारत सरकार की नीति नहीं है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और कनाडा का मामला बिल्कुल अलग है क्योंकि अमेरिका ने जो मामला उठाते हुए उसके कुछ सबूत पेश किये हैं उस पर भारत ने चिंता जताते हुए जांच बैठा दी है और कनाडा ने जो मामला उठा कर भारत पर आरोप लगाये उसके सबूत कई बार मांगे गये लेकिन कनाडा ने कोई जानकारी नहीं दी। उन्होंने कहा कि कनाडा के प्रधानमंत्री मौके का फायदा उठा कर अपने झूठ को सच बनाना चाहते हैं लेकिन इसमें उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि चाहे पन्नू हो या हरदीप सिंह निज्जर, इन सभी की कई अन्य अलगाववादी गुटों के साथ प्रतिद्वंद्विता है। उन्होंने कहा कि आतंकी और अलगाववादी गुटों की आपसी प्रतिद्वंद्विता में यदि कोई एक दूसरे को नुकसान पहुँचाता है तो इसमें भारत पर सवाल कहां से उठ गये?

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि कनाडा के साथ मुख्य मुद्दा उस देश में भारत विरोधी तत्वों की गतिविधियां है। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा कहा है कि कनाडा ने सतत रूप से भारत विरोधी चरमपंथियों को और हिंसा को जगह दी है और मुख्य मुद्दा दरअसल यही है। कनाडा में हमारे राजनयिक प्रतिनिधियों ने इसके दंश को झेला है। उन्होंने कहा कि हम कनाडा की सरकार से अपेक्षा करते हैं कि वह राजनयिक संबंधों पर विएना समझौते के तहत वचनबद्धताओं का पालन करे। हमने अपने आंतरिक मामलों में कनाडाई राजनयिकों के हस्तक्षेप को भी देखा है। उन्होंने कहा कि जाहिर तौर पर यह अस्वीकार्य है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका के आरोप पर भारत ने जोर देकर कहा है कि एक उच्च स्तरीय समिति इस मामले के सभी पहलुओं की जांच करेगी। उन्होंने कहा कि भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि अमेरिकी पक्ष ने संगठित अपराधियों, अवैध हथियार रखने वालों और आतंकवादियों के बीच सांठगांठ के संबंध में कुछ जानकारी साझा की है। भारत इस तरह की जानकारी को गंभीरता से लेता है क्योंकि यह हमारे राष्ट्रीय हितों पर भी अतिक्रमण है और संबंधित विभाग इस मुद्दे को देख रहे हैं।

प्रश्न-5. नासा ने कहा है कि वह भारत के अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण में सहयोग करेगा। क्या अमेरिका की इस बात पर विश्वास किया जा सकता है? यह सवाल इसलिए क्योंकि अभी तक दुनिया के बड़े देश भारत को तमाम तरह की तकनीकें मुहैया कराने से बचते थे।

उत्तर- अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के प्रशासक बिल नेल्सन ने कहा है कि भारत के खुद के अंतरिक्ष स्टेशन निर्माण में नयी दिल्ली का सहयोग करने के लिए वाशिंगटन तैयार है। उन्होंने कहा कि यह बड़ी बात है कि अमेरिका और भारत अगले साल के अंत तक एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन भेजने की योजना पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने घोषणा की है कि अंतरिक्ष यात्री का चयन इसरो द्वारा किया जाएगा। नासा चयन नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में अब तक जो सफलता हासिल की है वह अपने बलबूते की है। भले पूर्व में किसी ने हमें तकनीक नहीं दी हो लेकिन आज समय बदल चुका है। उन्होंने कहा कि अमेरिका चाहे सहयोग करे या नहीं करे, भारत चंद्रयान-3 के सफल मिशन के जरिये दुनिया को यह दर्शा चुका है कि वह किसी भी उपलब्धि को हासिल करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि आप भारत की सफलता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2040 तक 40 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की ओर अग्रसर है।

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