Shaurya Path: Bangladesh Crisis, Iran-Israel Tension और Russia-Ukraine War से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि देखा जाये तो शेख हसीना के शासनकाल के दौरान गबन के आरोप में उत्पीड़न का सामना करने वाले नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस का जीवन यकायक पूरी तरह से बदल गया है।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह बांग्लादेश में चल रहे घटनाक्रम और भारत के इस पड़ोसी देश के भविष्य, ईरान और इजराइल के बीच चल रहे तनाव और रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ बातचीत की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार
प्रश्न-1. बांग्लादेश में जो घटनाक्रम घटा है उसके कारण क्या थे?
उत्तर- मुख्य कारण तो छात्र आंदोलन के जन आंदोलन बन जाने के बाद उपजी परिस्थितियां ही थीं। हमें यह भी देखना चाहिए कि भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को बांग्लादेश मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में दिये गये बयान में कहा था कि शेख हसीना ने बहुत कम समय में कुछ वक्त के लिए भारत आने की अनुमति मांगी थी। उन्होंने कहा कि दरअसल हसीना ने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि पिछले रविवार शाम तक उन्हें भी नहीं पता था कि उनके लिए देश छोड़ने की नौबत आ जायेगी। उन्होंने कहा कि विदेशी मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि विरोध प्रदर्शनों को बढ़ते देख शेख हसीना ने रविवार रात सेना प्रमुख और अन्य जनरलों के साथ एक बैठक की थी। उन्होंने कहा कि बताया जाता है कि इस बैठक में कई सेना अधिकारी वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से भी जुड़े थे। उन्होंने कहा कि इस बैठक में सेना की ओर से साफ कर दिया गया था कि वह कर्फ्यू लागू करने के लिए नागरिकों पर गोलियां नहीं चलाएगी। उन्होंने कहा कि सेनाध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को यह भी बताया था कि उनके सैनिक देशव्यापी कर्फ्यू को लागू करने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा था कि कई सेना अधिकारियों ने तो शेख हसीना को स्पष्ट कह भी दिया कि वह सेना का समर्थन खो चुकी हैं। यह सुन कर शेख हसीना को अहसास हो गया था कि उनकी जमीन खिसक चुकी है और अब यहां से चले जाने में ही भलाई है।
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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस बैठक में सेना अधिकारियों की ओर से शेख हसीना को स्पष्ट कर दिया गया था कि अब उनके सामने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने का कोई विकल्प नहीं है। शेख हसीना ने सोच विचार के लिए कुछ समय मांगा था इसलिए उन्हें सुबह का वक्त दिया गया था। उन्होंने कहा कि मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सुबह तक शेख हसीना इस्तीफा देने और देश छोड़ने का फैसला कर चुकी थीं और उन्होंने पनाह के लिए भारत से संपर्क भी साध लिया था। यह बात जब उन्होंने सेना के अधिकारियों को बताई तो उन्हें सैन्य विमान से भारत तक छोड़ने पर सहमति बन गयी थी।
प्रश्न-2. बांग्लादेश में जिस तरह की अराजकता फैली हुई है उसको देखते हुए आपको भारत के इस पड़ोसी देश का क्या भविष्य नजर आ रहा है?
उत्तर- छात्र आंदोलन में जिस तरह से अन्य कट्टरपंथी संगठन शामिल हुए उससे लग गया था कि यह देश कट्टरपंथियों के हाथों में जा रहा है। उन्होंने कहा कि हालांकि अब अंतरिम सरकार का गठन हो चुका है। उम्मीद है कि यह सरकार व्यवस्था बहाल करेगी, दमन को समाप्त करेगी और सत्ता के लोकतांत्रिक हस्तांतरण के लिए निष्पक्ष चुनाव कराएगी। उन्होंने कहा कि अंतरिम सरकार का एक कर्तव्य व्यवस्था बहाल करना होगा, जो शेख हसीना सरकार के पतन के बाद पिछले कुछ दिनों से चरमरा गई है। उन्होंने कहा कि दूसरा काम नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि देखा जाये तो शेख हसीना के शासनकाल के दौरान गबन के आरोप में उत्पीड़न का सामना करने वाले नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस का जीवन यकायक पूरी तरह से बदल गया है। हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने और देश छोड़कर जाने के बाद अब यूनुस बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के मुखिया बन गए हैं। उन्होंने कहा कि मोहम्मद यूनुस को ‘‘सबसे गरीब लोगों का बैंकर’’ भी कहा जाता है। इसे लेकर उन्हें आलोचना का सामना भी करना पड़ा था और एक बार शेख हसीना ने यूनुस को ‘‘खून चूसने वाला’’ कहा था। उन्होंने कहा कि वह हसीना के कटु आलोचक और विरोधी माने जाते हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पेशे से अर्थशास्त्री और बैंकर यूनुस को गरीब लोगों, विशेष रूप से महिलाओं की मदद के लिए माइक्रोक्रेडिट के उपयोग में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने कहा कि यूनुस ने 1983 में ग्रामीण बैंक की स्थापना की थी ताकि उन उद्यमियों को छोटे ऋण उपलब्ध कराए जा सकें जो सामान्यतः उन्हें प्राप्त करने के योग्य नहीं होते। लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में बैंक की सफलता ने अन्य देशों में भी इसी तरह के लघु वित्त पोषण के प्रयासों को बढ़ावा दिया। उन्होंने कहा कि यूनुस को 2008 में हसीना सरकार की कार्रवाई का सामना करना पड़ा जब उनके प्रशासन ने यूनुस के खिलाफ कई जांच शुरू कीं। यूनुस ने पहले घोषणा की थी कि वह 2007 में एक राजनीतिक पार्टी बनाएंगे, हालांकि उन्होंने अपनी योजना पर अमल नहीं किया। उन्होंने कहा कि जांच के दौरान हसीना ने यूनुस पर ग्रामीण बैंक के प्रमुख के तौर पर गरीब ग्रामीण महिलाओं से ऋण वसूलने के लिए बल और अन्य तरीकों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि हालांकि यूनुस ने आरोपों से इंकार किया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हसीना की सरकार ने 2011 में बैंक की गतिविधियों की समीक्षा शुरू की और यूनुस को सरकारी सेवानिवृत्ति नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में प्रबंध निदेशक के पद से हटा दिया गया। 2013 में उन पर बिना सरकारी अनुमति के पैसे लेने के आरोप में मुकदमा चलाया गया, जिसमें उनका नोबेल पुरस्कार और एक किताब से रॉयल्टी भी शामिल थी। उन्होंने कहा कि इस साल की शुरुआत में बांग्लादेश में एक विशेष न्यायाधीश की अदालत ने यूनुस और 13 अन्य लोगों पर 20 लाख अमेरिकी डॉलर के गबन के मामले में आरोप तय किए थे। यूनुस ने खुद को निर्दोष बताया और फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। उन्होंने कहा कि यूनुस के समर्थकों का कहना है कि हसीना के साथ उनके खराब संबंधों के कारण उन्हें निशाना बनाया गया है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि बांग्लादेश का भविष्य अब युवा ही तय करेंगे। उन्होंने कहा कि अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने भी कहा है कि देश अब युवाओं के हाथ में है। उन्होंने कहा कि लेकिन देखना यह होगा कि यह युवा वाकई अपने देश का उत्थान चाहते हैं या वह किसी और देश के इशारों पर नाच रहे हैं। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश को फिर से स्थिर होने में अभी कुछ समय लगेगा इसलिए हमें अंतरिम सरकार को काम करके दिखाने के लिए कुछ समय देना ही चाहिए।
प्रश्न-3. ईरान और इजराइल के बीच युद्ध की जो आशंका जताई जा रही थी उस पर क्या ताजा अपडेट है?
उत्तर- ईरान ने इजराइल पर हमले के लिए प्रचार तो जोरशोर से किया था लेकिन वह हिम्मत नहीं दिखा पाया क्योंकि इजराइल के पास एक तो अमेरिका का सुरक्षा कवच है। दूसरा ईरान को पता है कि यदि उसने इजराइल को हाथ भी लगाया तो उस पर दोतरफा वार हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि ईरान चुप बैठ जायेगा इसके आसार कम हैं लेकिन वह सीधा हमला करने से बचना चाहेगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि तेहरान में हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हनियेह की हत्या के साथ-साथ बेरूत में प्रमुख हिजबुल्लाह नेता फुआद शुक्र की हत्या ने पूरे मध्य पूर्व में सदमे की लहर पैदा कर दी है इसलिए ईरान पर दबाव बढ़ गया है कि वह इजराइल को जवाब दे। उन्होंने कहा कि लेकिन सभी को आशंका है कि इससे क्षेत्रीय युद्ध शुरू हो सकता है। उन्होंने कहा कि व्यापक रूप से माना जाता है कि इज़राइल ने हनियेह की हत्या को अंजाम दिया था। उन्होंने कहा कि इसके अलावा गाजा पर विनाशकारी हमलों में लगभग 40,000 फिलिस्तीनी मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि हनियेह और शुक्र को मारे हुए अब लगभग एक सप्ताह हो गया है, लेकिन अभी तक इज़राइल पर कोई बड़ा हमला नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि राजनयिक किसी भी तनाव को रोकने के प्रयास में क्षेत्र के चारों ओर घूम रहे हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह भी खबर है कि ईरानियों ने जोर देकर कहा है कि वे जवाब देंगे। उन्होंने कहा कि ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी ने इस सप्ताह कहा था कि क्षेत्रीय स्थिरता केवल आक्रामक को दंडित करने और इज़राइल के दुस्साहस के खिलाफ प्रतिरोध पैदा करने से ही आ सकती है। उन्होंने कहा कि अब सवाल यह है कि यह प्रतिक्रिया क्या रूप लेगी? उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि हनियेह की हत्या ने पिछले अक्टूबर के बाद से तनाव को अपने उच्चतम बिंदु पर ला दिया है। उन्होंने कहा कि हनियेह की हत्या से 24 घंटे से भी कम समय पहले इज़राइल ने हिज़्बुल्लाह के सशस्त्र विंग के संस्थापक सदस्य फुआद शुक्र और बेरूत के दक्षिणी उपनगरों में कम से कम पांच नागरिकों को मार डाला था। उन्होंने कहा कि इज़राइल ने अपने कब्जे वाले गोलान हाइट्स में हमले के लिए शुक्र को दोषी ठहराया है जिसमें 12 बच्चे और युवा लोग मारे गए थे।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हमें यह भी समझना होगा कि इज़राइल ने हनीयेह की हत्या पर आधिकारिक तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की है। उन्होंने कहा कि हालांकि हत्या के अगले दिन, इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरानी प्रतिक्रिया की संभावना को स्वीकार करते हुए एक भाषण दिया था। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि ईरान शायद इजराइल पर हमले के लिए सही वक्त का इंतजार कर रहा है।
प्रश्न-4. यूक्रेन ने रूस के एक क्षेत्र में बड़ी घुसपैठ की है और वहां दोनों सेनाओं के बीच लड़ाई जारी है। यह यूक्रेन की ओर से तीसरे साल में पहली ऐसी आक्रामकता है। इसे कैसे देखते हैं आप? इसके अलावा यूक्रेन के पास अब एफ-16 विमान आ गये हैं। इससे रूस के साथ उसके युद्ध में क्या परिवर्तन आ सकता है?
उत्तर- यूक्रेनी सैनिकों ने पश्चिमी रूस में प्रवेश किया है जिसने मॉस्को को हतप्रभ कर दिया है। उन्होंने कहा कि यह रूस की कमजोर सीमा सुरक्षा को भी दर्शाता है और इससे यूरोप को प्राकृतिक गैस आपूर्ति को झटका लग सकता है। उन्होंने कहा कि रूसी अधिकारियों, यूक्रेनी सैनिकों और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, कीव ने इस सप्ताह मंगलवार को बख्तरबंद वाहनों, तोपों और ड्रोन के साथ सैंकड़ों सैनिकों को कुर्स्क क्षेत्र में भेजा था। उन्होंने कहा कि यह छापेमारी यूक्रेन के लिए लड़ने वाले रूसी नागरिकों के कई प्रयासों के बाद संभव हो पाई है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस सप्ताह मंगलवार की सुबह यूक्रेनी सेनाएं सीमा पार कर लड़ीं और 5,000 लोगों की आबादी वाले सुद्ज़ा शहर के पास पहुंच गईं, जिसके मुख्य चौराहे पर अभी भी सोवियत संघ के संस्थापक व्लादिमीर लेनिन की मूर्ति लगी हुई है। उन्होंने कहा कि सुद्ज़ा एकमात्र पंपिंग स्टेशन है जो यूरोप में रूसी प्राकृतिक गैस पहुंचाता है। उन्होंने कहा कि युद्ध के बावजूद, यूक्रेन अभी भी अपनी सोवियत काल की गैस पाइपलाइन को रूस की गैस एकाधिकार कंपनी गज़प्रॉम को प्रति वर्ष $ 2 बिलियन के हिसाब से किराए पर देता है। उन्होंने कहा कि अब ऐसा लगता है कि यूरोपीय संघ को रूस की प्राकृतिक गैस की आपूर्ति रुकने का खतरा है। उन्होंने कहा कि कुर्स्क परमाणु ऊर्जा स्टेशन, दुनिया के सबसे पुराने में से एक है जोकि सुद्ज़ा से लगभग 70 किमी पूर्व में कुरचटोव शहर में स्थित है। उन्होंने कहा कि कुरचटोव में यूक्रेनी ड्रोन देखे गए हैं और कुछ विश्लेषकों ने कहा है कि कीव रूसी ऊर्जा प्रणाली को उसी तरह अस्थिर करना चाहता है जिस तरह से मास्को ने यूक्रेनी बिजली स्टेशनों और उसके ऊर्जा ग्रिड को लक्षित किया है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रूसी अधिकारियों और मीडिया ने बताया है कि बुधवार दोपहर तक यूक्रेनियों ने सुद्ज़ा को घेर लिया था और उन्होंने तीन गांवों पर कब्ज़ा कर लिया और 10 और गांवों के पास देखे गए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसको "कीव शासन द्वारा पूर्ण पैमाने पर उकसावे की कार्रवाई" बताया है और यूक्रेनी सैनिकों पर आवासीय क्षेत्रों और नागरिकों पर अंधाधुंध गोलीबारी करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि कीव में अधिकारियों ने हमले पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन यूक्रेनी रिपोर्टों में रूसी पक्ष को भारी नुकसान का दावा किया गया है। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि यूक्रेनी सेना ने एक चारदीवारी वाले रूढ़िवादी मठ में छिपे रूसी सैनिकों के एक समूह को मार डाला, एक Ka-52 हेलीकॉप्टर को मार गिराया और दो टैंकों को नष्ट कर दिया। उन्होंने कहा कि इसके अलावा कम से कम तीन रूसी सैनिकों को यूक्रेन ले जाया गया है। उन्होंने कहा कि वे सिपाही थे जिन्हें सीमा पर भेजे जाने से पहले अधूरा प्रशिक्षण दिया गया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हालांकि यूक्रेन का यह हमला अप्रत्याशित है, लेकिन इसका ज्यादा रणनीतिक महत्व नहीं है। उन्होंने कहा कि यूक्रेनी सैनिकों के लिए यह हमला जनता को खुश करने के लिए "ध्यान भटकाने" के अलावा और कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि इस बीच, रूसी सेना धीरे-धीरे डोनेट्स्क के पूर्वी क्षेत्र में आगे बढ़ी रही है। उन्होंने कहा कि जहां तक यूक्रेन को एफ-16 लड़ाकू विमान मिलने की बात है तो मुझे नहीं लगता कि इससे युद्ध के परिदृश्य में कोई ज्यादा बदलाव आ सकता है। उन्होंने कहा कि रूस तो चाह ही रहा है कि वह अमेरिका के एफ-16 विमान को मार गिराये।
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