Jan Gan Man: BJP ने Karnataka में NRC लाने का वादा तो कर दिया है लेकिन पिछले अनुभव को देखते हुए क्या ऐसा कर पाना संभव है?

ashwini upadhyaya
ANI

जहां तक एनआरसी पर मोदी सरकार के रुख की बात है तो हम आपको याद दिला दें कि भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणा पत्र में एनआरसी बनाने और संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) लागू करने का वादा किया था।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम जन गण मन में आप सभी का स्वागत है। कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपने विजन डॉक्यूमेंट के जरिये राज्य की जनता से जो वादे किये हैं उनमें पार्टी के सत्ता में लौटने पर “सभी अवैध प्रवासियों” को वापस भेजने का वादा किया गया है। इस तरह 2021 के असम विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार किसी विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का मुद्दा फिर चर्चा में आ गया है। हम आपको बता दें कि भाजपा ने अब तक असम को छोड़कर विभिन्न विधानसभा चुनावों के घोषणापत्रों में एनआरसी के मुद्दे से परहेज किया था।

जहां तक एनआरसी पर मोदी सरकार के रुख की बात है तो हम आपको याद दिला दें कि भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणा पत्र में एनआरसी बनाने और संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) लागू करने का वादा किया था। सीएए को 2019 में संसद से मंजूरी मिल गई थी, लेकिन नियमों के अभाव के चलते इसे लागू नहीं किया गया। मोदी सरकार ने दिसंबर 2019 में एनआरसी और सीएए को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच कहा था कि उसका देशव्यापी एनआरसी लाने का कोई इरादा नहीं है। अब जिस तरह असम के बाद कर्नाटक में एनआरसी का वादा किया गया है उससे कई सवाल भी उठे हैं। भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि कमजोर कानून होने के चलते एनआरसी कभी सफल नहीं हो पायेगा? इसलिए सवाल यह भी उठता है कि वर्तमान कानून के तहत एनआरसी की बात कर कहीं भाजपा सिर्फ खानापूर्ति तो नहीं कर रही है?

इसे भी पढ़ें: Jan Gan Man: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के पक्ष में दलीलें दे रहे लोग क्या इन सवालों के जवाब देंगे?

जहां तक एनआरसी पर आरएसएस के रुख की बात है तो आपको बता दें कि संघ प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का हिंदू-मुसलमान विभाजन से कोई लेना-देना नहीं है और कुछ लोग अपने राजनीतिक हित साधने के लिए इन दोनों मामलों को साम्प्रदायिक रंग देते हैं। मोहन भागवत ने ‘सिटिजनशिप डिबेट ओवर एनआरसी एंड सीएए-असम एंड द पॉलिटिक्स ऑफ हिस्ट्री’ शीर्षक वाली पुस्तक के विमोचन के बाद कहा था, ‘‘स्वतंत्रता के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री ने कहा था कि अल्पसंख्यकों का ध्यान रखा जाएगा और अब तक ऐसा ही किया गया है। हम ऐसा करना जारी रखेंगे। किसी मुसलमान को कोई नुकसान नहीं होगा।’’

देखा जाये तो हमारे देश में सुधार संबंधी हर कदम को संदिग्ध बनाया जाता है। सीएए और एनआरसी के विरोध के नाम पर देश में कैसी राजनीति हुई यह सबने देखा। यहां तक कि जब मोदी सरकार ने नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) को अपडेट करने की मंजूरी दी थी तब भी अफवाह फैलाने वाले गैंग से जुड़े लोगों ने इसे NRC का अगला कदम बता दिया था। लेकिन अफवाह फैलाने वालों को एनपीआर और एनआरसी में बुनियादी अंतर भी पता नहीं था और लोग उनकी बातों पर विश्वास कर रहे थे। दरअसल एनआरसी घुसपैठियों की पहचान करता है तो NPR के जरिये तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ पात्र व्यक्तियों को मिलने का रास्ता खुलता है। साथ ही इससे अगले दस सालों के विकास का रोडमैप तैयार किया जाता है। साथ ही नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर भारतीय नागरिकों का नहीं बल्कि यहां रहने वाले लोगों यानि निवासियों का रजिस्टर होता है। इसे ग्राम पंचायत, तहसील, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाता है। 

जहां तक एनआरसी की बात है तो आपको बता दें कि देश में पहली बार एनआरसी यानि देश का पहला नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में 1951 में असम में बना था। तत्कालीन नेहरू सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान से आए अवैध आप्रवासियों को भारतीय नागरिकों से अलग करने के लिए असम में पहले राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) की प्रक्रिया शुरू की थी। लेकिन कानून कमजोर होने के कारण असम में पहले भी एनआरसी की प्रक्रिया सफल नहीं हो पाई थी और हाल के वर्षों में उच्चतम न्यायालय के निर्देश और निगरानी पर असम में हुई एनआरसी की प्रक्रिया भी सफल नहीं हो पाई थी। इसलिए सवाल उठता है कि जब कानून ही कमजोर है तो उसका क्रियान्वयन कैसे सशक्त होगा?

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़