हिमाचल उप चुनावों में भाजपा को पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की अनदेखी भारी पडी
भाजपा नेता दबी जुबान में मानते हैं कि चुनाव प्रचार में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार की अनदेखी पार्टी के लिये नुकसानदायक ही साबित हुई। चुनावी हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नाम पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है। हालांकि प्रदेश भाजपा हार के कारणों को तलाशने और 2022 के चुनाव से पूर्व इन कमियों को दूर करने की बातें कर रही है।
शिमला। हिमाचल प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले मंडी लोकसभा सहित प्रदेश के तीन अन्य विस क्षेत्रों में भाजपा को मिली करारी हार के बाद भाजपा में मौजूदा नेतृत्व को लेकर सवाल उठने लगे हैं। वहीं उप चुनावों में अपनाई गई चुनावी रणनीति पर भी पार्टी के भीतर असंतोष उभरा हैं। सोशल मीडिया पर अपने अपने तरीके से भाजपा के लोग अपने नेताओं को निशाने पर ले रहे हैं। भाजपा को जो दर्द इस बार मिला है उसकी गूंज साफ तौर पर सत्ता व संगठन में महसूस की जा रही है।
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उप चुनावों में इस बार भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। लेकिन इसके बावजूद जनादेश पार्टी के खिलाफ आया। हालांकि चुनावों से पहले धर्मशाला से लेकर शिमला तक कई दौर की मैराथन बैठकें हुईं। जिनमें सौदान सिंह, अविनाश राय खन्ना से लेकर कई नेता मौजूद रहे। पार्टी टिकट आवंटन में इस बार सीएम जय राम ठाकुर व संगठन महामंत्री पवन राणा की ही चली। लेकिन टिकट आवंटन से लेकर चुनाव प्रचार तक जो रणनीति अपनाई गई व कारगर साबित नहीं हुई। दरअसल, मौजूदा दौर में हिमाचल भाजपा में धूमल की तरह जनाधार वाले नेता का अभाव है। धूमल आज भी पार्टी के भीतर व बाहर कद्दावर नेता हैं। जिनका किलाड से लेकर पांगी तक व लाहौल से लेकर उना तक खासा जनाधार है।
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भाजपा नेता दबी जुबान में मानते हैं कि चुनाव प्रचार में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार की अनदेखी पार्टी के लिये नुकसानदायक ही साबित हुई। चुनावी हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नाम पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है। हालांकि प्रदेश भाजपा हार के कारणों को तलाशने और 2022 के चुनाव से पूर्व इन कमियों को दूर करने की बातें कर रही है। लेकिन भाजपा की इस शर्मनाक हार के पीछे दो बार मुख्यमंत्री रहे प्रेम कुमार धूमल की अनदेखी को भी एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।
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मंडी लोकसभा सीट समेत सोलन के अर्की, शिमला के जुब्बल-कोटखाई और कांगड़ा के फतेहपुर सहित चारों सीटों में भाजपा के चुनाव प्रचार में धूमल ने बिल्कुल भी भाग नहीं लिया। धूमल की अनुपस्थिति पार्टी कार्यकर्ताओं को खली। वहीं धूमल फैक्टर को हाशिये पर धकेलने के तथाकथित प्रयासों से पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच एक गलत संदेश भी गया। आरोप तो यह भी लग रहा है कि चेतन बरागटा का टिकट इस लिये काटा गया कि उन्हें धूमल समर्थक के तौर पर देखा जा रहा था। इसी तरह फतेहपुर में किरपाल परमार हो या फिर अर्की में गोविंद राम का टिकट कटना।
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पार्टी में गुटबाजी और सरकार में काम न होने के आरोप आए दिन कई कार्यकर्ता लगाते रहे। 2017 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा गया। जिसकी बदौलत प्रदेश में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा सत्ता की दहलीज तक पहुंची। धूमल की जहां पार्टी के शीर्ष नेताओं से लेकर आम कार्यकर्ताओं में एक मजबूत पकड़ है। तो वहीं अफसरशाही पर भी धूमल सरकार में पूरा तरह नियंत्रण रहा है। ऊपरी हिमाचल समेत सेब बेल्ट में धूमल की मजबूत पकड़ किसी से छिपी नहीं है। पूर्व के चुनाव में जुब्बल-कोटखाई से स्वर्गीय नरेंद्र बरागटा की जीत एक स्पष्ट उदाहरण है। इन उपचुनाव में मिली हार से जहां वर्तमान प्रदेश सरकार को सबक मिला है। वहीं हाईकमान को भी एक बार फिर से सोचने पर मजबूर किया है।
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